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________________ दशरथ दान साधारण व्यक्तियोको दिया जाता है जैसे समदत्ति, करुणादत्ति, औषधालय, स्कूल, सदाबत, प्याऊ आदि खुलवाना इत्यादि । निरपेक्ष बुद्धिसे सम्यक्त्व पूर्वक सद्भपात्रको दिया गया अलौकिक दान दातारको परम्परा मोक्ष प्रदान करता है। पात्र, कुपात्र व अपात्रको दिये गये दान में भावोकी विचित्रताके कारण फल में बड़ी विचित्रता पड़ती है। **GMSunn दान सामान्य निर्देश दान सामान्यका लक्षण । दानके भेद। औषधालय सदाव्रतादि खुलवानेका विधान । दया दत्ति आदिके लक्षण । सात्त्विक राजसादि दानोंके लक्षण। सात्त्विकादि दानोंमें परस्पर तरतमता। तियचोंके लिए भी दान देना सम्भव है। दान कथंचित् क्षायोपशमिक भाव है। -दे०क्षायोपशमिक । दान भी कथंचित सावध योग है। -दे० साबद्य/७ । * | विधि दान क्रिया। -दे० संस्कार/२॥ स्थानकवाली आम्नायमें प्रचलित है) (व्रतविधान संग्रह/१२६) (नवलसाहकृत बर्द्धमान पुराण )। दशरथ-१. पंचस्तूप संघको गुर्वावलीके अनुसार (दे० इतिहास) आप धवलाकार वीरसेन स्वामोके शिष्य थे। समय-ई०८२०.८७० (म. पु./प्र.३१ पं० पन्नालाल)-दे० इतिहास/७/७। २. म. पु./६१) २-६ पूर्वधातकीखण्ड द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें वत्स नामक देशमें सुसीमा नगरका राजा था। महारथ नामक पुत्रको राज्य देकर दीक्षा धारण की। तब ग्यारह अंगोंका अध्ययन कर सोलह कारणभावनाओं का चिन्तवन कर तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया। अन्तमें समाधिमरण पूर्वक सर्वार्थ सिद्धिमें अहमिन्द्र हुआ। यह धर्मनाथ भगवानका पूर्वका तीसरा भव है। (दे० धर्मनाथ) ३. प. पु./सर्ग/श्लोक रघुवंशी राजा अनरण्यके पुत्र थे (२२/१६२)। नारद द्वारा यह जान कि 'रावण इनको मारनेको उद्यत है (२३/२६ ) देशसे बाहर भ्रमण वरने लगे । वह केकयीको स्वयवरमें जीता (२४/१०४)। तथा अन्य राजाओंका विरोध करनेपर केकयीकी सहायतासे विजय प्राप्त की, तथा प्रसन्न होकर केकयोको वरदान दिया (२४/१२०)। राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न यह इनके चार पुत्र थे (२५/२२-३६)। अन्तमे केकयोके वरके फल में रामको बनवास मांगनेपर दीक्षा धारण कर ली। ( २५/८०)। दशलक्षणव्रत-इस व्रतकी विधि तीन प्रकारसे वर्णन की गयी है-उत्तम, मध्यम ब जघन्य । उत्तम-१० वर्ष तक प्रतिवर्ष तीन बार माघ, चैत्र व भाद्रपदकी शु०५ से शु०१४ तकके दश दिन दश लक्षण धर्मके दिन कहलाते हैं। इन दश दिनों में उपवास करना। मध्यम-वर्ष में तीन बार दश वर्ष तक ५, ८, ११, १४ इन तिथियों को उपवास और शेष ६ दिन एकाशन । जघन्य-वर्ष में तीन बार दश वर्ष तक दशों दिन एकाशन करना। जाप्य-ओं ह्रीं अर्हन्मुखकमलसमुद्भूतोत्तमक्षमादिदशलक्षणे कधर्माय नमः'का त्रिकाल जाप्य । वशवकालिक द्वादशांग ज्ञानके चौदह पूर्वो में से सातवां अंग बाह्य। -दे० श्रुतज्ञान/IIII वशाणं-१. मालवाका पूर्व भाग। इस देशमें वेत्रवती ( बेतवा । नदी बहती है। कुछ स्थानोंमें दशार्ण (धसान) नदी भी बहती है और अन्तमें चलकर वेत्रवती में जा मिलती है। विदिशा ( भेलसा) इसकी राजधानी है। २. भरतक्षेत्र आर्य खण्डका एक देश -दे० मनुष्य/४ वशाणक-भरत क्षेत्र विन्ध्याचलका एक देश। -दे० मनुष्य/४ । दशोक्त-भरत क्षेत्र उत्तर आर्य खण्डका एक देश । -दे० मनुष्य/४ । दही शुद्धि- दे० भक्ष्याभक्ष्य/३ दांडोक-भरत क्षेत्र दक्षिण आर्य खण्डका एक देश । -दे० मनुष्य/४। दांत-१. दांनका लक्षण दे० साधु/१ उत्तम चारित्रवाले मुनियोंके ये नाम हैं-श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदंत, दांत और यति ।... पंचेन्द्रियोंके रोकने में लीन वह दांत कहा जाता है । * औदारिक शरीर से दांतोंका प्रमाण-दे० औदारिक |१७| वाता-आहार दानके योग्य दातार - दे० आहार/11/५ । वात-वस्तिकाका एक दोष - दे० बस्तिका । दान-शुद्ध धर्मका अवकाश न होनेसे गृहस्थ धर्म में दानकी प्रधानता है । वह दान दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-अलौकिक व लौकिक । अलौकिक दान साधुओंको दिया जाता है जो चार प्रकारका है--आहार, औषध, ज्ञान व अभय तथा लौकिक दान क्षायिक दान निर्देश क्षायिक दानका लक्षण। क्षायिक दान सम्बन्धी शंका समाधान । सिद्धोंमें क्षायिक दान क्या है। GMSAnd Me गृहस्थोंके लिए दान धर्मकी प्रधानता सत् पात्रको दान देना ही गृहस्थका परमधर्म है। दान देकर खाना ही योग्य है। दान दिये बिना खाना योग्य नहीं। दान देनेसे ही जीवन व धन सफल है। दानको परम धर्म कहनेका कारण। दान दिये बिनाधनको खाना महापाप है। -दे. पूजा/२/१। दानका महत्त्व व फल पात्रदान सामान्यका महत्त्व । आहार दानका महत्व। औषध व शान दानका महत्त्व। अभयदानका महत्त्व। सत्पात्रको दान देना सम्यग्दृष्टिको मोक्षका कारण है। सत्पात्र दान मिथ्यादृष्टिको सुभोग भूमिका कारण है। कुपात्र दान कुभोग भूमिका कारण है। अपात्र दानका फल अत्यन्त अनिष्ट है। | विधि, द्रव्य, दाता व पात्रके कारण दानके फलमें विशेषता आ जाती है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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