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________________ तीर्थकर ३७२ अनुक्रम सभी तीर्थ कर आठ वर्षकी आयुमें अणुव्रती हो जाते है। * सभी तीर्थ करोंने पूर्वभवोंमें ११ अंगका शान प्राप्त किया था। -दे० वह वह तीर्थकर। * स्त्रीको तीर्थंकर कहना युक्त नहीं ---दे. वेद । * तीर्थ करोंके गुण अतिशय १००८ लक्षणादि। -दे० अर्हत/१॥ तीर्थ करोंके साता-असाताके उदयादि सम्बन्धी । -दे० केवली/४। मनुष्य व तिर्यगायुका बन्धके साथ इसकी प्रतिष्ठापना का विरोध है। | सभी सम्यक्त्रोंमें तथा ४-८ गुणस्थानोंमें बँधनेका नियम। तीर्थ कर बन्धके पश्चात् सम्यक्त्व च्युतिका अभाव । ९ बद्ध नरकायुष्क मरणकालमें सम्यक्त्वसे च्युत होता है। १० उत्कृष्ट आयुवाले जीवोंमें तीर्थकर संतकर्मिक मिथ्या दृष्टि नहीं जाते। ११ नरकमें भी तीसरे नरकके मध्यम पटलसे आगे नहीं जाते। १२ वहाँ भी अन्तिम समय नरकोपसर्ग दूर हो जाता है। | तीर्थ कर संतकर्मिकको क्षायिक सम्यक्त्वकी प्राप्ति स्वतः हो जाती है। १४ | नरक व देवगतिसे आये जीव ही तीर्थकर होते है। १ तीर्थकर प्रकृति बन्ध सामान्य निर्देश तीर्थकर प्रकृतिका लक्षण । तीर्थ कर प्रकृतिकी बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ। -दे० वह वह नाम । तीर्थकर प्रकृतिके बन्ध योग्य परिणाम -दे० भावना/२॥ * | दर्शनविशुद्धि आदि भाबनाएँ -दे०वह बह नाम । इसका बन्ध तीनों वेदोंमें सम्भव है पर उदय केवल ___पुरुष वेदमें ही होता है। परन्तु देवियोंके इसका बन्ध सम्भव नहीं। ४ | मिथ्यात्वके अभिमुख जीव तीर्थकर प्रकृतिका उत्कृष्ट बन्ध करता है। ५ अशुभ लेश्याओंमें इसका बन्ध सम्भव है। तीर्थकर प्रकृति संतकर्मिक तीसरे भव अवश्य मुक्ति प्राप्त कर लेता है। ७ तीर्थकर प्रकृतिका महत्त्व । * | तीर्थकर व आहारक दोनों प्रकृतियोंका युगपत् सत्त्व मिथ्यादृष्टिको सम्भव नहीं - दे० सत्त्व/२ । * तीर्थ कर प्रकृतिवत् गणधर आदि प्रकृतियोंका भी __उल्लेख क्यों नहीं किया। -दे० नामकर्म। * तीर्थकर प्रकृति व उच्चगोत्रमें अन्तर । -दे० वर्णव्यवस्था/१। तीर्थकर प्रकृति सम्बन्धी शंका-समाधान मनुष्य गतिमें ही इसकी प्रतिष्ठापना क्यों ? केवलीके पादमूलमें ही बंधनेका नियम क्यों ? अन्य गतियों में तीर्थ करका बन्ध कैसे सम्भव है। तिर्यचतिमें उसके बन्धका सर्वथा निषेध क्यों ? | नरकगतिमें उसका बन्ध कैसे सम्भव है। कृष्ण व नील लेश्यामें इसके बन्धका सर्वथा निषेध न क्यों ? प्रथमोपशम सम्यक्त्वमें इसके बन्ध सम्बन्धी दृष्टि-भेद ।। तीर्थकर प्रकृति बन्धमें गति, आयु व सम्य वत्व सम्बन्धी नियम तीर्थ कर प्रकृति बन्धकी प्रतिष्ठापना संबन्धी नियम । २ । प्रतिष्ठापनाके पश्चात् निरन्तर बन्ध रहनेका नियम । नरक तिर्यचगति नामकर्मके बन्धके साथ इसके बन्ध का विरोध है। ४ | इसके साथ केवल देवगति बॅधती है। इसके बन्धके स्वामी। तीर्थकर परिचय सूची भूत, भावी तीर्थं कर परिचय । २ वर्तमान चौबीसीके पूर्वभव नं० २ का परिचय । वर्तमान चौबीसीके वर्तमान भवका परिचय (सामान्य) १ गर्भावतरण। २जन्मावतरण। ३दीक्षा धारण । ४ ज्ञानावतरण । ५ निर्वाण-प्राप्ति । ६ संघ। | वर्तमान चौबीसीके आयुकालका विभाव परिचय। वर्तमान चौबीसीके तीर्थकाल व तत्कालीन प्रसिद्ध । पुरुष। ६ विदेह क्षेत्रस्थ तीर्य करोंका परिचय । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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