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________________ झंझावात ३५२ तत्व दिगम्बर पंच संग्रहके आधारपर एक संस्कृत पंचसंग्रह नामक ग्रन्थ लिखा है। समय-वि० श०१७। (पं.सं.प्र.४१/ A. N.up) वि. श, ११ पूर्वार्ध (जै./१/३७५) । ढूंढिया मत-दे० श्वेताम्बर। झझावात--(भ० आ०/ भाषा/६०८/८०६/१८)-जलवृष्टि सहित जो वायु बहती है उसे झंझावात कहते हैं। झष-वें नरकका ३रा पटल-दे० नरक/५/११ झाव दशमीव्रत-भाव दशमीत्रत दश दशपुरी। दश श्रावक दे भोजन करी। नोट-यह व्रत श्वेताम्बर व स्थानकवासी आम्नायमें प्रचलित है। (नवलसाह कृत वर्धमान पुराण ); (व्रत विधान संग्रह/पृ० १३०) झूठ-दे० असत्य। [८] णमोकार पैंतीसी व्रत-आषाढ शुरु से आसौज शु ७ तक ७ सप्तमियाँ; कार्तिक कृ०५ से पौष कृ०५ तक ५ पंचमियाँ; पौष कृ० १४ से आषाढ़ शु०१४ तक १४ चतुर्दशियाँ; श्रावण कृ०६ से आसौज कृ०६ तक हनवमियाँ. इस प्रकार ३५ तिथियों में ३५ उपवास करे। णमोकार मन्त्रकी त्रिकाल जाप्य करे। नमस्कार मन्त्रकी ही पूजा करे। (व्रत विधान संग्रह/प. ४५)। णमोकार मन्त्र-दे० मन्त्र/२ । णिक्खोदिम-दे निक्षेप//ह । टक-(ध.१४/५,६,६४१/४६08)-सिलामयपव्वएसु उक्किण्णवावीकूव-तलाय-जिणधरादीणि टंकाणि णाम |--शिलामय पर्वतोंमे उकीरे गये वापी, कुंआ, तालाब, और जिनघर आदि टंक कहलाते है। टकण-ऐरावती नदी व गिरिकूट पर्वतके निकट स्थित एक नगर -दे० मनुष्य/४। टकोत्कोण-(प्र.सा./त.प्र./५१) क्षायिकं हि ज्ञानं.. तट्टकोत्कीर्णन्यायावस्थित समस्तवस्तुज्ञेयाकारतयाधिरोपितनित्यत्वम् । = वास्तव में क्षायिक ( केवल ) ज्ञान अपने में समस्त वस्तुओके शेयाकार टंकोत्कीर्ण न्यायसै स्थित होनेसे जिसने नित्यत्व प्राप्त किया है। टिप्पणी-गणित विषयक Notes (ध.५/प्र. २७)। टीका-(क. पा. २/१,२२/5२६/१४/८) वित्तिमुत्तविवरणाए टीकाव वएसादो। वृत्तिसूत्रके विशद व्याख्यानको टीका कहते हैं।। टोडर मल-नगर जयपुर, पिताका नामजोगीदास, माताका नाम रम्भादेवी, गोत्र गोदीका (बड़ जातीया), जाति खण्डेलवाल, पंथतेरापंथ, गुरु वंशीधर थे। व्यवसाय साहूकारी था। जैन आम्नायमें आप अपने समयमें एक क्रान्तिकारी पण्डित हुए हैं। आपके दो पुत्र थे हरिचन्द व गुमानीराम। आपने निम्न रचनाएँ की है-१. गोमट्टसार; २. लब्धिसार; ३. क्षपणसार; ४. त्रिलोकसार; ५. आत्मानुशासन, ६. पुरुषार्थ सिद्धयु पाय-इन छह ग्रन्थों की टीकाएँ । ७. गोमट्टसार व लब्धिसारकी अर्थ संदृष्टियाँ, ८. गोम्मट्टसार पूजा, ६. मोक्षमार्ग प्रकाशक; १०. रहस्यपूर्ण चिट्ठी । आप शास्त्र रचनामें इतने संलग्न रहते थे कि ६ महीने तक, जब तक कि गोम्मट्टसारकी टीका पूर्ण न हो गयी, आपको यह भी भान न हुआ कि माता भोजन में नमक नहीं डालती है। आप अत्यन्त विरक्त थे। उनकी विद्वत्ता व अजेय तर्कोसे चिडकर किसी विद्वेषीने राजासे उनकी चुगुली खायी। फल स्वरूप केवल ३२ वर्ष की आयुमे उन्हे हाथीके पाँव तले रौदकर मार डालनेका दण्ड दिया गया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार हो न किया नसिक इस पापकार्यमे प्रवृत्ति न करते हुए हाथीको स्वयं सम्बोधकर प्रवृत्ति भी करायी। समयजन्म वि. १७६७ मृत्यु वि. १८२४ (ई १७४०-१७६७)। (मो. मा. प्र./प्र.६/५० परमानन्द जी शास्त्री), (ती४/२८३)। तंडुल मत्स्य-दे० सम्मुर्छन्/७ तंतुचारण ऋद्धि-दे० ऋद्धि/४ । तंत्र-दे० मंत्र। तत्र सिद्धात-तंत्र सिद्धांतके लक्षण व भेदादि-दे० सिद्धांत। तक्षशिला-वर्तमान टैक्सिला । उत्तर पंजाबका एक प्रसिद्ध नगर । (म.पु /प्र.४६ पं. पन्नालाल)। सिन्ध नदीसे जेहलम तकके समस्त प्रदेशका नाम तक्षशिला था। जिसपर सिकन्दरके समय राजा अम्भी राज्य करता था। (वर्तमान भारतका इतिहास) ततक-द्वितीय नरकका प्रथम पटल । दे० नरक/५ । तत्-स.सि./१/२//३ तदिति सर्वनामपदम्। सर्वनाम च सामान्ये वर्तते । = 'तत' यह सर्वनाम पद है। और सर्वनाम सामान्य पदमें रहता है। (रा.वा/१/२१५/१६/१६); (ध.१३/५,५०६०/२८५/११) ध.१/१,१,३/१३२/४ तच्छब्दः पूर्वप्रक्रान्तपरामर्शी इति। -'तत्' शब्द पूर्व प्रकरणमें आये हुए अर्थका परामर्शक होता है। पं.ध./३१२ 'तद...भावविचारे परिणामो "सदृशो वा । - तत्के कथनमें सदृश परिणाम विवक्षित होता है। २. द्रव्यमें तत धर्म-दे० अनेकान्त/४। तत्त्व-चौथे नरकका चौथा पटल-दे० नरक/५। तत्त्व-प्रयोजनभूत वस्तुके स्वभावको तत्त्व कहते हैं। परमार्थ में एक शुद्धामा ही प्रयोजनभूत तत्व है। वह संसारावस्थामैं कर्मोंसे बंधा हुआ है। उसको उस बन्धनसे मुक्त करना इष्ट है। ऐसे हेय व उपादेयके भेदसे वह दो प्रकारका है अथवा विशेष भेद करनेसे वह सात प्रकारका कहा जाता है। यद्यपि पुण्य व पाप दोनों ही आस्रव हैं, परन्तु संसारमें इन्ही दोनोंकी प्रसिद्धि होनेके कारण इनका पृथक निर्देश करनेसे वे तत्त्व नौ हो जाते हैं। [ढ] हडा-चित्रकूट (चित्तौड़गढ़ ) के निवासी एक पण्डित थे। श्रीपलाके पुत्र तथा प्राग्वाट (पोरवाड या परवार ) जातीय वैश्य थे। आपने जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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