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________________ ज्योतिष लोक ५. ज्योतिषी देवोंका परिवार व्यन्तर त. सू. /४/५ त्रास्त्रिशलोकपालवर्ज्या व्यन्तरज्योतिष्काः । और ज्योतिषदेव प्रायस्त्रि और लोकपाल इन दो भेदोंसे रहिव है (सामानिक आदि दोष आठ विकल्प (दे० देव/१) यहाँ भी पाये जाते हैं।) (त्रि.सा./२२४) वि.प./गा. प्रत्येक चना के परिवार में एक सूर्य (१४)ग्रह (१४)। २८ नक्षत्र । (२५) । और ६६६७५ कोड़ाकोड़ी तारे होते हैं । (३१) । (.पू./६/२०-२१) (ज.प./१२/८७-८८) (त्रि.सा./३६२) ति देवका जुँगा नाम ४ २७-६३ | चन्द्र ७६-८१ सूर्य ४ ८७ ग्रह १०७ नक्षत्र देवियाँ सामा अभियोग्य अनीक निक प्रकीर्णक प्रत्येक दिशा- कुल किल्विष में विमान वाहक पट प्रत्येक देवी देवीका पारिषद परिवार | आत्मरक्ष ४००० संख्य. संख्य. ४००० ३२७ ३२* Jain Education International 11 19 ४००० ४००० २००० १००० अभियोगोंका निर्देश है और त्रि सा./४४० (ज.प./१०/६१२ मे ४४८ में केवल देवियोंका निर्देश है) *प्रि.सा./४४१ सम्बनिगिट्टहरामा बसीसा होति देवीओ - सबसे ३२.३२ देवांगना होती हैं। ६. चन्द्र सूर्यकी पटदेवियोंके नाम वि. प./७/१८००६ चंदासुसीमाओ पहुंकरा अधिमातीत दिपकराज सुरपहा अनि मालिनीको वि पत्ते चतारो दुमणीणं अग्गदेवीओ 1७६ | चन्द्राभा, प्रभंकरा, सुसीमा और मालिनी से उनकी (चन्द्रकी) अग्रदेवियोंके नाम है। इ ति पुति प्रभंकरा, सूर्यप्रभा और अभिमातिनी ये चार प्रत्येक सूर्यको अभियाँ होती है। त्रि.सा.४४७४४८) ७. अन्य सम्बन्धित विषय १. ज्योतिषी देवोंकी संख्या ३० ज्योतिषी २. ग्रह व नक्षत्रोंके भेद व लक्षण ३. ज्योतिषी देवोंका शरीर, आहार, सुख, दु:ख सम्यक्त्व आदि ४. ज्योतिष देवोंमें सम्भव कषाय, वेद, लेश्या, पर्याप्त आदि ५. ज्योतिषी देव मरकर कहाँ उत्पन्न हो, और कौन-सा गुण या पद पाने /२/३-41 || ८००० ४००० ९. ज्योतिष देबोंमें कमका बन्ध उदय सत्त्व ज्योतिष लोक ज्योतिष देवों के विमान - दे० वह वह नाम । - दे० देव / II / २,३ - दे० वह वह नाम । -२०६/११। -दे० अवगाहना / २० ६. ज्योतिष देवोंकी अवगाहना ७. ज्योतिष देवोंमें मार्गणा, गुणस्थान, जीव समास आदि के स्वामित्व विषयक २० प्ररूपणाएँ - दे० सद 1 ८. ज्योतिष देवों सम्बन्धी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ -दे० वह वह नाम । दे० वह वह नाम । मध्य लोक के ही ज्योतिष लोक अन्तर्गत चित्रा पृथिवी से ७६० योजन ऊपर जाकर स्थित हैं। इनमें से कुछ चर हैं और कुछ अचर । १. ज्योतिष लोक सामान्य निर्देश स.सि./२/१२/२४४/१३ स एम ज्योतिर्गणगोचरो नमोऽवकाशो दशाधियोजना महल स्तिर्यगामाणो धनोदधिपर्यन्तः । - ज्योतिषियोंसे व्याप्त नभःप्रदेश १९० योजन मोटा और घनोदधि पर्यंत असंख्यात द्वीपसमुद्र प्रमाण सम्मा है। .प./०५८ १रा११० - अनम्यक्षेत्र १३०३२६२२०१५ योजन प्रमाण क्षेत्रमें सर्व ज्योतिषी देव रहते हैं सोकके अन्तमें पूर्वपश्चिम दिशामें घनोदधि बातमल को छूते हैं। उत्तर-दक्षिण दिशामें नहीं ते। भावार्थ-१ राजू लम्बे चौड़े सम्पूर्ण मध्यलोककी चित्रा पृथिवीसे ७६० योजन ऊपर जाकर ज्योतिष लोक प्रारम्भ होता है, जो उससे ऊपर ११० योजन तक आकाशमें स्थित है। इस प्रकार चित्रा पृथिवीसे ७६० योजन ऊपर १ राजू लम्बा, १ राजू चौड़ा ११० योजन मोटा आकाश क्षेत्र ज्योतिषी देवोंके रहने व संचार करनेका स्थान है, इससे ऊपर नीचे नहीं । तिसमें भी मध्यमें मेरुके चारों तरफ १३०३२२५०१५ योजन अगम्य क्षेत्र है, क्योंकि मेरुसे ११२१ योजन परे रहकर के संचार करते हैं, उसके भीतर प्रवेश नहीं करते। ज्योतिष लोकमें चन्द्र सूर्यादिका अवस्थान ३४६ ति. प०/७/ चित्रा पृथिवीसे ऊपर निम्न प्रकार क्रमसे स्थित है । तिसमें भी दो दरियाँ हैं दृष्टि नं. १० (स.सि./४/१२/२४४/८) (ति ५ / ०/३६-१००) (६. ५/६/१-६); (त्रि. सा / ३३२-३३४); (ज. प./१२/१४); (द्र.सं./ टी./२५/१२४/२)। दृष्टि नं. २- (रा.वा./४/१२/१०/२१६/९)। E १०८ ६ ३६ १०४ ८३ ८६ ६३ ६६ १०१ कितने ऊपर जाकर दृष्टि ०१ ७६० यो. ८०० ८८० 11 ८८४ " CKC 11 ८६१ " ८६४ " ८६७११ १०० ११ ८८८-६००, कौन विमान तारे सूर्य जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only चन्द्र नक्षत्र बुध शुक्र बृहस्पति मंगल शनि शेष ग्रह لامل (रा० वा. /४/१२/१०/२१६/१ ) कितने ऊपर जाकर दृष्टि नं० २७१० यो, ८०० " ८८० ११ ८८३ ८८६ ११ ८८६ ८६२" ८६६ ११ ६०० कौन विमान तारे सूर्य चन्द्र नक्षत्र बुध 힘 बृहस्पति मंगल शनि त्रि.सा./३४० राहुअरि विमाणधयादुवरि पमाणअंगुल चउक्कं । तुण ससिविमाणा सूर विमाणा कमे हौति । -राहु और केतुके विमान - निका जो ध्वजादण्ड ताके ऊपर च्यार प्रमाणांगुल जाइ क्रमकरि चन्द्र विमान र सूर्यके विमान हैं। राहु विमानके ऊपर चन्द्रमाका और केतु विमानके ऊपर सूर्यका विमान है ति १०/०/२०१, २७२ ) । नोट-विशेष के लिए दे० पृ० ३४०वाता चित्र २. ज्योतिष - विमानोंमें चर-अचर विभाग स.सि./४/१२/२४६/८ अर्थतृतीयेषु द्वीपेषु प्रयोथ समुद्रयोज्यौतिष्का निस्पगतयो नान्यत्रेति अडाई द्वीप और दो समूहों (अर्थात् www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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