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________________ चंद्रगिरि २७६ चक्रवान् ११००-११३० ( ई० १०४३-१०७३ )-दे० इतिहास/0/५। २ वि -दे० इतिहास/0/५। २ वि १६५४ -१६८१(ई० १५१७ -११२४) के एक भट्टारक थे जिन्होने वृपभ देवपुराण, पद्मपुराण पार्श्व पुराण और पार्श्व पूजा लिखे । (ती./२/४४१) चंद्रगिरि- श्रवणबेलगोलामे दो पर्वत स्थित हैं-एक विन्ध्य और दूसरा चन्द्र गिरि । इस पर्वतपर आचार्य भद्रबाहू द्वितीय और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त ( सम्राटू ) की समाधि हुई थी। चन्द्रगुप्त १-मालवा के राजा थे जिन्होंने मन्त्री शाकटाल तथा चाणक्य की सहायता से बो. नि. २१५ में नन्दवंश का नाश करके मौर्यवंश की स्थापना की थी। (भद्रमाहु. चारित्र/३/८) । (दे, इतिहास/३/४)। ई.पू. ३०५ (वि. नि. २२२) में पजाब प्रान्त में स्थित सिकन्दर के सूबेदार सिलोकस को परास्त करके उसकी कन्या से विवाह किया था। ति. प./४/१४८१ के अनुसार ये अन्तिम मुकुटधारी राजा थे जिन्होंने जिनदीक्षा धारण की थी। हरिषेण कृत कथा कोष में कथा नं० १३१ के अनुसार आप पंचम श्रुतकेवली भद्रबाहु प्र के शिष्य विशाखाचार्य थे। (कोश १ परिशिष्ट/२/३) तिल्लोय पण्णति में तथा नन्दि संघ को पट्टावली में कथित श्रुतधरी की परम्परा से इस मत की पुष्टि होती है। (दे. इतिहास/४/४)। श्रवण बेल गोल से प्राप्त शिलालेख नं. ६४ में भी इन्हें भद्रबाहु प्र का शिष्य बताया गया है (ष. ख, २/प्र.४/H. L. Jain) सम्भवत. जैन होने के कारण इनको हिन्दू पुराणों ने मुरा नामक दासी का पुत्र कह दिया है, और मुद्रा राक्षस नाटक में चाणक्य के मुख से इन्हे वृषल कहलाया गया है। परन्तु वास्तव में ये ब्राह्मण थे। (जै०/पी./३५२) । इनसे पूर्ववर्ती नन्द वंश के राजाओं को भी शुद्राका अथवा नाई का पुत्र कहा गया है । दे आगे नन्दवंश । समय -जैनागम के अनुसार मो. नि. २१५-२५५ (ई०पू० ३१२-२७२); जैन इतिहास के अनुसार ई. पू. ३२६-३०२, भारतीय इतिहास के अनुसार ई.पू ३२२-२६८ । (दे० इतिहास/३/४) । चन्द्रगुप्त २-मगध सम्राट अशोक के प्रपौत्र सम्प्रतिका अपर नाम । समय-जैन इतिहास के अनुसार ई.पू. २२०-२११ (दे. इति/३/४ चंद्रप्रज्ञप्ति- अंग, वद्रप्रज्ञाप्त-१. अंग श्रुतज्ञानका एक भेद-दे० श्रुतज्ञान III/ १/४२ । २. सूर्य प्रज्ञप्ति की नकल मात्र एक श्वेताम्बर ग्रन्थ । जै./२/ १६.६०) ३. आ० अमितगति (ई०६१३-२०१६) द्वारा रचित सस्कृत ग्रन्थ। चंद्रप्रभ-आप जयसिह सुरिके शिष्य थे। आपने प्रमेयरस्नकोष तथा दर्शनशुद्धि नामक न्याय विषयक ये दो ग्रन्थ लिखे है। समय ई० ११०२-(पायावतार/४/ सतीशचन्द्र विद्या भूषण )। चंद्रप्रभ चरित्र.-१ आ. वीरनन्दि (ई. १५०-६EE) कृत महर काव्य (तो /३/१५) २. आ. श्रीधर (ई० श०१४ ) का प्राकृत रचना। ३. आ. शुभचन्द्र (ई० १५१६-१५५६) की संस्कृत रचना (ती/३६७) चंद्रप्रभु-(म.पु./५४/श्लोक न.) पूर्वभव नं०७ मे पुष्वरद्वीप पूर्वमेरु के पश्चिममें सुगन्धि देशके श्रीवर्मा नामके राजा थे।७३-७६। पूर्व भव नं०६ मे श्रीप्रभ विमानमे श्रीधर नामक देव हुए ।८पूर्वभव नं०५ मे धातकीरखण्ड द्वीप पूर्वमेरुके भरत क्षेत्रमें अलकादेशरथ अयोध्याके अजितसेन नामक राजा हुए 1६६-६७) पूर्वभव न०४ मे अच्युतेन्द्र हुए ।१२२-१२६। पूर्व भव न ० ३ मे पूर्वधातकीरवण्डमे मंगलावती देशके रत्नसंचय नगरके पद्मनाभ नामक राजा हुए ।१४३। पूर्व भव नं०२ मे वैजयन्त विमानमे अहमिन्द्र हुए ।१५८-१६२। और वर्तमान भवमे आठवें तीर्थ कर चन्द्रप्रभुनाथ हुए- दे० तीर्थकर/५ । चंद्रभागा-पंजाबको वर्तमान चिनाब नदी (म.पु /प्र.५०/पं. पन्नालाल)। चंद्रवंश-दे० इतिहास/RBT चंद्रशेखर--(पा.पु./१७/श्लोक नं) विशालाक्ष विद्याधरका पुत्र था 1४६। अर्जुनने वनवास के समय इसक) हराकर अपना सारथी बनाया था ।३७-३८ तब इसकी सहायतारो विजया पर राजा इन्द्रकी सहायता की थी। चंद्रसेन-पंचस्तुप संघकी गुर्वावलीके अनुसार आप आर्य नन्दिके गुरु थे। समय-ई० ७४२-८७३ । ( आ. अनु/प्र ८JA, N Up); (सि.वि /प्र./४२ पं महेन्द्र), (और भी दे० इतिहास/9/७)। चंद्राभ-१ विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । २, लौकान्तिक देवोंकी एक जाति-दे० लौकान्तिक । ३. ११वें कुलकर-दे० शलाका पुरुष/६ । चन्द्रगुप्त ३-गुप्तव श का प्रथम राजा जिसने गुप्तों की बिखरी हुई शक्ति को समेट कर मगध को विस्तृत भूमि पर एक छत्र साम्राज्य की स्थापना की और उसके उपलक्ष्य में गुप्त संवत् प्रचलित किया। समय-ई. ३२०-३३० । (दे. इतिहास/३/४) चन्द्रगुप्त ४-गुप्त वंश का तृतीय पराक्रमी सम्राट, अपर नाम विक्रमादित्य । समय---बी. मि. १०१-१३६ (ई. ३७५-४१३) । (दे० इतिहास/३/४)। चंद्रबह-उत्तरकुरुके दस बहोमेसे दोका नाम चन्द्र है-दे० लोक/१६ चद्रनदि-१. भगवती आराधनाकार शिवार्य के दादागुरु। अपर नाम कर्म प्रकृत्याचार्य। समय-ई. श. १ का प्रारम्भ । (भ. आ./ प्र १६/प्रेमी जी) । २. कुमारनन्दि के गुरु । शक ६३८ (ई.७१६)।। (जै ०/२/८७)। चंद्रोदय---आ. प्रभाचन्द्र नं. ६ ( ई०७६७)का न्याय विषमक ग्रन्थ । चंपा-१. विजया की उत्तरश्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । २. वर्तमान भागलपुर (म.पु./प्र.४६/पं. पन्नालाल)। चक्र-१, सनत्कुमार स्वर्गका प्रथम पटल-दे० स्वर्ग 1४३:२, चक्रवर्ती का एक प्रधान रन-दे० शलाका पुरुष/२, ३. धर्मचक्र-दे० धर्मचक्र । चक्रक-वादोका बात करते हुए पुनः-पुनः घूमकर वहीं आ जाना चक्रक दोष है : ( श्लो. वा/४/न्या. ४५६/५५५) । चक्रपुर-भरतक्षेत्रका एक नगर- दे. मनुष्य ४ । चक्रपुरी-अपर विदेहके वल्गु क्षेत्रकी प्रधान नगरी-दे० लोक/५/२। चक्रवर्ती-बारह चक्रवर्तियो का परिचय-दे० शलाकापुरुष/ । चक्रवान-विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर। चंद्रनखा-(पपु./७/२२५ ) रत्नप्रवाकी पुत्रो और रावणकी बहन थी । ( प.पु/७/४३ ) खरदूषण की स्त्री थी। (प पु/७८/६५) रावणको मृत्युपर दीक्षा धारण कर ली। चंद्रपर्वत--विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । चंद्रपुर-विजया की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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