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________________ गुह्यक २५४ गोशाल गुह्यक भगवान् महावीरका शासक यक्ष-दे० तीर्थकर १/३। गूढ ब्रह्मचारी-दे० ब्रह्मचारी। गद्धापच्छ-१. कुन्दकुन्दका अपर नाम-दे० कुन्दकुन्द । २. उमा स्वामीका अपर नाम (ध.१/५६) H.I. Jain); (तत्त्वार्थ सूत्र प्रशस्ति) (विशेष वे कोश भाग १ परिशिष्ट/४/४) गद्धपिच्छ मरण-दे० मरण/१। गृह-(ध.१४/५,६,४१/३६/३) कट्ठियाहि बद्धकुडा उवरि वंसिकच्छण्णा गिहा णाम । जिसकी भींत लकड़ियोंसे बनायी जाती हैं। और जिसका छप्पर बाँस और तृणसे छाया जाता है, वह गृह कहलाता हैं। गह कर्म-दे० निक्षेप/४। -दे० संस्कार /२। गृहपति-चक्रवर्तीका एक रत्न-दे० शलाका पुरुष /२॥ गृहस्थ धर्म-दे० सागार। गृहस्थाचार्य-दे० आचार्य २ । गृहीत मिथ्यात्व-दे० मिथ्यादर्शन /१। गृहीता स्त्री-दे० स्त्री। गृहीशिता क्रिया-दे० संस्कार (२। गोक्षीर फेन-विजयाको उत्तर श्रेणीका एक नगर--दे० । विद्याधर। गोचरी वृत्ति-दे० भिक्षा /११७ । गोणसेन-द्रविड संघकी गुर्वावलीके अनुसार आप सिद्धान्त देवके शिष्य तथा अनन्तवीर्य के गुरु थे। समय-ई० ६६०-१००० -दे. इतिहास/६३ चक्रवर्ती ( ई० श ११ पूर्वार्ध) द्वारा रचित कर्म सिद्धान्त प्ररूपक प्राकृत गाथाबद्ध ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है-जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड । जीवकाण्डमे जीवका गति आदि २० प्ररूपणाओं द्वारा वर्णन है और कर्मकाण्डमें कर्मोंकी ८ व १४८ मूलोत्तर प्रकृतियोंके बन्ध, उदय, सत्त्व आदि सम्बन्धी वर्णन है। कहा जाता है कि चामुण्डराय जो आ. नेमिचन्द्रके परम भक्त थे, एक दिन जब उनके दर्शनार्थ आये तब वे धवला शास्त्रका स्वाध्याय कर रहे थे। चामुण्डरायको देखते ही उन्होंने शास्त्र बन्द कर दिया। पूछनेपर उत्तर दिया कि तुम अभी इस शास्त्रको पढ़नेके अधिकारी नहीं हो। तब उनकी प्रार्थनापर उन्होंने उस शास्त्रके संक्षिप्त सारस्वरूप यह ग्रन्थ रचा था। जीवकाण्डमें २० अधिकार और ७३५ गाथाएं हैं तथा कर्मकाण्डमें ८ अधिकार और १७२ गाथाएँ हैं। इस प्रन्थपर निम्न टीकाएँ लिखी गयौं-१. अभयनन्दि आचार्य (ई. श. १०-११) कृत टीका । २. चामुण्डराय (ई. श. १०-११) कृत कन्नड़ वृत्ति 'वीर मार्तण्डी।' ३. आ. अभयचन्द्र (ई० १३३३-१३४३) कृत मन्दप्रबोधिनी नामक संस्कृत टीका । ४. न. केशव वर्णी ( ई० १३५६)कत कर्णाटक वृत्ति। ५. आ. नेमिचन्द्र नं०५ (ई. श. १६ पूवाध) कृत जीवतत्त्व प्रमाधिनी नामकी संस्कृत टीका । ६.५० हेमचन्द्र(ई०१६४३-१६७०) कृत भाषा वचनिका । ७.५० टोडरमल्ल (ई०१७३६) द्वारा रचित भाषा वचनिका। (जै./१/३८१, ३८५-३६३) । गोमट्टसार पूजा-पं० टोडरमल्ल ( ई० १७३६) कृत गोमट्टसार ग्रन्थको भाषा पजा। गोमती-भरतक्षेत्र पूर्वी मध्य आर्यखण्डकी एक नदी।-दे० मनुष्य /४। गोमूत्रिका-दे० विग्रहगति /२ । गामष-नमिनाथ भगवानका शासक यक्ष-दे० तीर्थ कर//३ गोरस-दे० रस। गोरस शुद्धि-दे० भक्ष्याभक्ष्य /३। गोलाचार्य-नन्दिसंघ देशीयगणकी गुर्वावलीके अनुसार आप देशीय गण के अग्रणी थे। गोलव देशके अधिपति होनेके कारण आपका नाम गोलाचार्य प्रसिद्ध हुआ। आप त्रैकाल्य-योगीके गुरु और आविद्धकरण-पद्मनन्दि-कौमारदेव-सैद्धान्तिकके दादा गुरु थे । समय-वि०६५७-१७७ (ई०१००-१२०)।-दे० इतिहास /७५ । गोत्र कर्म-दे० वर्ण व्यवस्था ।। गोदावरी-भरत क्षेत्र आर्यखण्डकी एक नदी-दे० मनुष्य /४ । गापसन-लाडबागडसंघकी पट्टावलीके अनुसार आप शान्तिसेनके शिष्य और भावसेनके गुरु थे। समय-वि, १००५ ( ई०६४८)-दे० इतिहास /७/१०। गोपुच्छक-दिगम्बर साधुओं का एक संघ-दे० इतिहास / गोपुच्छा -क्ष सा/भाषा/५६३)-(गुणश्रेणी क्रमको छोड़) जहाँ विशेष (चय ) घटता क्रम लीएँ ( अल्पबहुत्व) होइ तहाँ गोपुच्छा संज्ञा है । (क्ष.सा/भाषा/५२४)-विवक्षित एक संग्रह कृष्टिविषै जो अन्तरकृष्टीनिके विशेष (चय) घटता क्रम पाइये है सो यहाँ स्वस्थान गोपुच्छा कहिए है। और निचली विवक्षित संग्रह कृष्टिकी अन्तकृष्टितै ऊपरकी अन्य संग्रहकृष्टिकी आदि कृष्टिके विशेष घटता क्रम पाइए है सो यहाँ परस्थान गोपुच्छा हिए। गोपुर-ध./१४।५,६,४२/३६/४ पायाराणं वारे घडिदगिहा गोवुर णाम । कोटोंके दरवाजोंपर जो घर बने होते हैं-वह गोपुर कहलाते है। गोप्य-दिगम्बर साधुसंघ-दे० इतिहास /६/७ । गोमट्ट-दे० चामुण्डराय। गोमट्टसार-मन्त्री चामुण्डरायके अर्थ आ. नेमिचन्द्र सिद्धान्त गोवदन-भगवान् ऋषभदेवका शासक यक्ष-दे० तीर्थकर/५/३ गोवद्धन-श्रुतावतारको गुर्वावली के अनुसार भगवान् वीरके पश्चात चौथे श्रुतकेवली हुए। समय-वी. नि ११४-१३३ (ई० पू० ४१३ ३६४)-दे० इतिहास /४/४। गोवर्द्धन दास-पानीपत निवासी एक प्रसिद्ध पण्डित थे। पिता नन्दलाल थे। शिष्यका नाम लक्ष्मीचन्द था। शकुन विचार' नामकी एक छोटी-सी पुस्तक भी लिखी है। समय वि० १७६२ (ई० १७०५) । (हिन्दी जैन साहित्य इतिहास पृ १७६/ कामताप्रसाद)। गाविन्द-१-कृष्णराज प्रथमका ही दूसरा नाम गोविन्द प्रथम थादे० कृष्णराज प्रथम । २-राजा कृष्णराज प्रथमका पुत्र 'श्री वल्लभ' गोविन्द द्वि० प्रसिद्ध हुआ-दे० श्री वल्लभ । ३-गोविन्द द्वि० के राज्यपर अधिकार कर लेनेके कारण राजा अमोघवर्ष के पिता जगतुंगको गोविन्द तृ० 'जगतुंग' कहते हैं। (दे० जगतुंग)। ४-शंकराचार्य के गुरु । समय-ई०७८०-दे० वेदांत । गोशाल- एक मिथ्यामत प्रवर्तक-दे० पूरनकश्यप। जैनेन्द्र सिदान्तकोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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