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________________ T गणितज्ञ . (४) विवक्षित द्वीप सागरके क्षेत्रफलमें जम्बूद्वीप समान खण्ड (1) बाह्य सूची - अभ्यन्तर सूची२ ___ जम्बूद्वीपका व्यास (त्रि.सा./३१६) बलय व्यासकी शलाका- १२ वलय व्यास (शलाका जैसे २००,००० की शलाका-२) (त्रि. सा /३१८) (बाह्य सूची-वलय व्यास )x४ वलय व्यास १००,०००२ (त्रि. सा./३१७) (५) विवक्षित द्वीप या सागरकी बाह्य परिधिसे घिरे हुए सर्व क्षेत्रमें जम्बू द्वीप समान खण्ड (बाह्य सूचीको शलाका)२ (शलाका जैसे २००,००० की शलाका-२) (त्रि. सा./३१७) * * *MS Kan गमनार्थ गति निर्देश गति सामान्यका लक्षण । गतिके भेद व उसके लक्षण। ऊर्ध्वगति जीवकी स्वभावगति है। पर ऊर्ध्वगमन जीवका त्रिकाली स्वभाव नहीं। दिगन्तर गति जीवकी विभाव गति है। पुद्गलोंकी स्वभाव विभाव गतिका निर्देश। सिद्धोंका ऊर्ध्वगमन। -दे० मोक्ष/५। विग्रह गति। -दे० विग्रहगति। जीव व पुद्गलकी स्वभावगति तथा जीवकी भवान्तरके प्रति गति अनुश्रेणी ही होती है। -दे० विग्रह गति । * जीव व पुद्गलकी गमनशक्ति लोकान्ततक सीमित | नहीं है बल्कि असीम है। -दे० धर्माधर्म/२/३ । ६.बेलनाकार (cylinderical) सम्बन्धी (१) क्षेत्र फल-गोल परिधि ऊँचाई (२) घन फल-मूल क्षेत्रफलxऊँचाई ( अर्थात् area of thebasexheight) ७. अन्य आकारों सम्बन्धी (१) मृदंगाकारका क्षेत्रफल मुख ____ मुख+भूमि २-xऊंचाई भूमि (ति. प./१/१६६) (२) शंखका क्षेत्रफल २ मोटाईलम्बाई मुख व्यास' ७ जीवको भवान्तरके प्रति गति छह दिशाओंमें होती है। ऐसा क्यों। गमनार्थगतिकी ओघ आदेश प्ररूपणा-दे० क्षेत्र/३,४ । नामकर्मज गति निर्देश गतिसामान्यके निश्चय व्यवहार लक्षण। गति नामकर्मका लक्षण। क, ख-गति व गति नामकर्मके भेद । नरक, तियच, मनुष्य व देवगति । -दे० 'वह वह नाम। सिद्ध गति। -दे० मोक्ष। जीवकी मनुष्यादि पर्यायोको गति कहना उपचार है। कम दयापादित भी इसे जीवका भाव कैसे कहते हो। यदि मोहके सहवर्ती होनेके कारण इसे जीवका भाव कहते हो तो क्षपक आदि जोवोंमें उसकी व्याप्ति कैसे होगी। -दे० क्षेत्र/३/१। प्राप्त होनेके कारण सिद्ध भी गतिवान् बन जायेंगे। प्राप्त किये जानेसे द्रव्य ब नगर आदिक भी गति बन जायेंगे। गतिकर्म व आयुबन्धमें सम्बन्ध । -देव आयु/६ । गति जन्मका कारण नहीं आयु है। - आयु/२ । कौन जीव मरकर कहों उत्पन्न हो ऐसी गति अगति सम्बन्धी प्ररूपणा। -दे० जन्म/६॥ गति नामकमकी बन्ध-उदय-सत्त्व प्ररूपणाएँ। -दे० 'वह वह नाम'। सभी मार्गणाओंमें भावमार्गणा इष्ट होती है तथा | वहाँ आयके अनुसार ही व्यय होनेका नियम है। -दे० मार्गणा। चारों गतियोंमें जन्मने योग्य परिणाम । -दे० आयु/३ । (त्रि. सा./३२७) गणितज्ञ-Mathematicians (ध./५/प्र./२७) गणित शास्त्र-Mathematics (घ./५/प्र./२१) गणितसार संग्रह-महावीराचार्य (ई. ८००-८३० ) द्वारा संस्कृत भाषामै रचित गणित विषयक एक ग्रन्थ । (ती./३/३६)। गणा-(ध./१४/५,६,२०/२२/७) एकादशांगविद्गणी । -ग्यारह अंगका ज्ञाता गणी कहलाता है। गात-गति शब्दका दो अर्थोंमे प्रायः प्रयोग होता है-गमन व देवादि चार गति। छहों द्रव्यों में जीव व पुदगल ही गमन करनेको समर्थ हैं। उनकी स्वाभाविक व विभाविक दोनों प्रकारको गति होती है। नरक, तिथंच, मनुष्य व देव ये जीवोंकी चार प्रसिद्ध गतियाँ हैं, -जिनमे संसारी जीव नित्य भ्रमण करता है। इसका कारणभूत कर्म गति नामकर्म कहलाता है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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