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________________ गणित २३० il गणित (प्रक्रियाएँ) (111) यदि, मुख, गच्छ और चम दिया हो तो "पदमेगेण विहीणं दुभाजिदं उत्तरेण संगुणिदं । पभवजुदं पदगुणिदं पदगुणिदं तं विजाणीहि (त्रि. सा/१६४)। (४) मुख या आदि निकालो यदि सर्वधन, उत्तरधन व गच्छ दिया हो तो (1) वेगपदं चयगुणिदं भूमिम्हि रिणधणं चकए। (त्रि.सा./१६३) । भूमि -चय (गच्छ - १)-T.-d (n--1) -मुख [{गच्छ-चय } +मुख ] » गच्छ-सर्वधन २ गच्छ ( iv) यदि मुख भूमि और गच्छ दिया हो तो"मुखभूमिजोगदले पदगुणिदे पदधनं होदि" (त्रि सा/१६३) मुख भूमि सर्वधन ( सर्वधन =S , गच्छ -n; मुख=Tभूमि-T; चय=d) तो s - +(T+d)+(T, +२d ) + (T, +३d )+ । (T -३d ) + (Tn -२d) + ( T. -d)+Tr २९. - TET, + T+T, + T+T, + T, +7, ... T, +T, +7, +T. + T, +T, + T+T. -n(T+T). T+T. मुख+भूमि on- २ - = -~xगच्छ। (11) सर्वधन-उत्तरधन - - गच्छ (गो.जी./भाषा/४६/१२२/६) । (५) अन्त या भूमि निकालो (1) यदि गच्छ, चम, व मुख दिया हो तोव्येकं पदं चयाभ्यस्तं तदादिसहितं अंतधनं (गो.जी./भाषा/ ४६/१२२) (गच्छ -१) चय+मुख -T, +d (n-1) - भूमि (६) उत्तरधन निकालो (i) यदि गच्छ व चय दिया हो तोव्येकपदार्थप्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनं । (गो.जी./भाषा/४६/१२३) - -xचयगच्छ- 7.nd=चयधन । (11) यदि गच्छ, चय व मुरब दिया हो तो पदमेगेण विहीणं दुभाजिदं उत्तरेण संगुणिदं । पभवजुदं पदगुणिदं पदगुणिदं होदि सव्वत्थ । (गो.क./भाषा/६०४/१०८१) S(गच्छ - १)xचय + चय?x गच्छ- -उत्तरधन (७) आदिधन निकालो यदि गच्छ व मुख दिया हो तो(1) पदहतमुखमादिधनं । (गोजो./भाषा/४६/१२२) मुखरगच्छ == आदिधन n 1 STम (१) गच्छ निकालो (i) यदि मुख भूमि और चय दिया हो तो "आदी अंते सुद्ध' बढिहिदे इगिजुदे ठाणा । ( त्रि,सा/५७)" भूमि - मुख T.-T. 7 -+1= गच्छ (1) २ + चय १४ ग +१०n-T चय (३)चय निकालो (1) यदि गच्छ और सर्वधन दिया हो तो "पदकदिसंखेण भाजियं पचयं ।' (गो.जी./भाषा/४६/१२३) सर्वधन -चय (d) (1) यदि सर्वधन, आदिधन व गच्छ दिया हो तो "आदिधनोन गुणितं पदोनपद कृतिदलेन सभाजतं पचयं (गो. जी./भाषा/४६/१२३) गच्छ२ -संख्यात ५.गुणन व्यवहार श्रेणी (Geometrical Progression ) सम्बन्धी प्रक्रियाएँ (१) गुणकाररूप सर्वधन निकालो अंतधणं गुणगुणिय आदिविहीणं रुऊणुत्तरपदभजियं-- गुणकार करता अंतविधैं जो प्रमाण होइ ताको जितनेका गुणकार होइ ताकरि गुणिए, तिस विषै पहिले जितना प्रमाण होइ सो घटाइए। जो प्रमाण होइ ताको एकघाटि गुणकारका भाग दीजिये। यो करता जो प्रमाण होइ सो ही गुणकार रूप सर्व स्थाननिका जोड जानना। २ ( सर्वधन-आदिधन) - गच्छ --चय (4) (सर्वधन - Sn; मुख = T, भूमि =T, ; गच्छ =n; चय=d s. T, + Than "T, +T, + d(n-')} ___.2T +n(n-1d T, =T.xn-l 7-1 2nt .+(n - 2 -n NT ) s, T, (1 -") or 7, (n" -1 ) । यथाSa = a+ar+ar" + ars . art-1 r. Sa = ar+at+6, +a, ... a"-1+a Sn - r. S. a-ar" Sn ( 1-7 } = a ( 1-," ) (11) यदि सर्वधन, मुख व गच्छ दिया हो तो चय 1- 1-1 Where a =T1 = मुख; = गुणाकार जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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