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________________ गणित २२९ II गणित (प्राक्रयाएँ) ३. सर्वधन आदि शब्दोंका परिचय गो. जी./भाषा/४९/१२१ १. सर्वधारी, २. समधारा, 3. विषमधारा, ४. कृतिधारा, ५. अकृति- धारा, ६. घनधारा,७. अघनधारा, ८. कृतिमातृकधारा, ६.अकृतिमातृकधारा, १०, धनमातृकधारा, ११. अधनमातृकधारा, १२. द्विरूपवर्गधारा, १३. द्विरूपधनधारा, १४. द्विरूपधनाधनधारा। इनके आदि अर अंत स्थानभेद है ते सर्वत्र धारानि विषै कहिए है। (गो. जी./भाषा/२१८ का उपोद्घात पृ. २६६/१०)। संकेत- केवलज्ञानप्रमाण उ. अनन्तानन्त । (संकलन व्यव---४+८+१२+१६+२०+२४+२८+३२-१४४ रहारकी श्रेणी & ८४ d.२ | R क्रम धाराका नाम विशेषता. कुलस्थान १ सर्वधारा | १,२,३,४........... a २ समधारा २,४,६,८................ विषमधारा १,३,५,७..... ............. ४) कृतिधारा | १,४,६,१६ ( १२ , २२ , ३२ , ४२)... (३) अकृतिधारा| कृतिधाराकी राशियों से हीन सर्वधारा अर्थात्x,२,३,४,५,६,७,८४,१०............ ६. धनधारा | १.८,२७ ( १३ , २३ , ३३ ) (43)| a3 अघनधारा धनधाराकी राशियोसे हीन सर्वधारा अर्थात्x,२,३,४,५,६,७,४,६,१० ... ..... Jara.3 । कृतिमातृक | १,२,३ १( १२ ) ३, ( २२ ), धारा अकृतिमातृक २ +१, २ +२, ४३ +३......... -३ धारा (कृतिमातृकसे आगे जितने स्थान तक शेष रहे वे सर्व ) | १० घन मातृक १,२,३, ( १३)3 ; ( २३ ); १० घन मातृक १.२ धारा गुणन व्यव- =४+१६+६४+ १२० + २५६+ ५१२+ १०२४ । हारकी श्रेणी २०४८-४०५२ । स्थान प्रथम अंकसे लेकर अन्तिम तक पृथक-पृथक अंकोंका अपना-अपना स्थान । पदधन या -विवक्षित सर्व स्थानकनि सम्बन्धी सर्व द्रव्य र सर्वधन जोडनेसे जो प्रमाण आवे । जैसे उपरोक्त श्रेणियो में-१४४, ४०५२। पद, गच्छ स्थानकनिका प्रमाण। यथा उपरोक्त श्रेणियों में ८ रस्थान (स्थान) (मुख, आदि, आदि स्थान विषै जो प्रमाण होइ। जैसे उपरोक्त प्रथम श्रेणियों में ४। भूमि या अन्त-अन्त स्थान विषै जो प्रमाण होइ। जैसे उपरोक्त श्रेणियोंमे ३२,२०४८ मध्यधन -सर्व स्थानकनिके बीचका स्थान । जहाँ स्थानकनिका प्रमाण सम होइ तहाँ बीचके दोय स्थानकनिका द्रव्य जोड आधा कीए जो प्रमाण आवे तितना मध्य धन है। जैसे उपरोक्त श्रेणी नं.१ मे १६+२०-१८ २१८ आदिधन -जितना मुखका प्रमाण होइ तितना तितना सर्व स्थानकनिका ग्रहण करि जोड जो प्रमाण होई। जैसे ऊपरोक्त श्रेणी नं.१ मे (४४८)-३२।। उत्तर, चय =स्थान-स्थान प्रति जितना-जितना बधै । जैसे वृद्धि, विशेष उपरोक्त श्रेणी नं.१ मे ४। (उत्तरधन या सर्व स्थानकनिविषै जो-जो चय बधै उन सब (चयधन चयों को जोड जो प्रमाण होइ । जैसे उपरोक्त श्रेणी नं.१ मे १४४-३२-११२ । धारा मथ्य चयधन- बोचके स्थानपर प्रथम स्थानकी अपेक्षा वृद्धि । या मध्यमधन जैसे उपरोक्त श्रेणी नं.१ मे मध्यधन १८ है। (ज.प/१२/४८) तहाँ प्रथमकी अपेक्षा १४ की वृद्धि है। ११अघन मातृक धनमातृकसे आगे जितने स्थान 4 तक शेष | रहे वे सर्व अर्थात् 4.3 +९,43 +२, a3 +३.. ... ... a. la-0.3 १२ द्विरूप वर्ग धारा २२ , २२४२, २२४२४२....२ लरि लरि लरि लरिक्ष १३ द्विरूप घन- २३, २२४३.२२४२४३......... या २२२१२२४२२२२२४२४२+४३ २२x२x२x२+८ .....२ लरि लरित (लरि १४ द्विरूपधना-(२६),( २९ )२४२.४ २६ )२४२४२ एलरिघनधारा Ca.४ १६ अर्धच्छेद- =२,४,८,१६,३२,६४......१६. धारा ४.संकलन व्यवहार श्रेणी ( Arithematical Progression ) सम्बन्धी प्रक्रियाएँ (त्रि.सा/गा.नं); ( गो जी/भाषा/४६/१२१-१२४ उद्धृतसूत्र ) लरिव राशि १.सर्वधन निकालो (i) यदि आदिधन और उत्तरधन दिया हो तोआदिधन+उत्तरधन =सर्वधन (ii) यदि मध्यधन और गच्छ दिया हो तोमध्यधन गच्छ == सर्वधन १६ वर्गशलाका =४,१६,२५६, पणट्ठी......d. लरि लरित जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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