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________________ उदय २८८६.कर्म प्रकृतियोंकी उदय न उदास्थान प्ररूपणाएं प्रति गुण | कल प्रति -ranarranorm xxxxxxxxxxxxxx २. मूल प्रकृति ओघ प्ररूपणा (प. सं./प्रा ३/५ व १३), (पं.सं./सं.४/८६ व २२१) | स्थान | स्थान | प्रकृतियोंका विवरण भंगोंका विवरण स्थान | स्थान | प्रकुति' भन. | प्रति प्रति ६ नाम-नोट · देखो आगे सं.७ वाली पृथक् प्ररूपणागुण | कुल | भगोंका स्थान स्थान प्रकृतियोंका विवरण स्थान | स्थान विवरण ७ गोत्र-(व.सं /प्रा. १४१५-१८); ध. १७/१७); (गो.क./६३५/८३३); प्रकृति भंग (व.सं./सं./२/१८-२२)। सर्व प्रकृति १-५ । १।१।२ दोनोंमें अन्यतमका, अन्यतमोदयसे उदय २ भंग केवल उच्च गोत्रकाx उदय ८ अन्तराय-पं.सं /प्रा. ५.८), (ध. १५/८१), (गो. क. ६३०/८३१), (पं. सं./२/१)। १-१२ | १ | १ पाँचों का निरन्तर ४ उदय ६ मोहनीयकी सामान्य व ओघ उदयस्थान प्ररूपणा १ मोहनीय रहित सर्व -७ १ भंग निकालनेके उपाय १ आयु, नाम, गोत्र, वेदनीय-४ x स्थान उपाय भंग ३. उत्तर प्रकृति ओघ प्ररूपणा क्रोधादि चार कषायों में अन्यतम उदयके साथ अन्यतम वेदका उदय ४४३ -१२ प्रति । प्रति । उपरोक्तवव १२ भंग या तो हास्य रति युगल सहित हों या स्थान | स्थान प्रकृतियौंका विवरण भंगोंका विवरण स्थान स्थान प्रकृति भंग | अरति शोक युगल सहित हो १२४२ ४८ उपरोक्त २४ भग या तो भय प्रकृति सहित हो या जुगुप्सा १ ज्ञानावरणीय-(पं.स./प्रा. ५/८), (घ. १५/८१), प्रकृति सहित हो २४४२ -४८ (गो. क. ६३०/८३१), (पं. सं./स. १६) संकेत--१. अनन्ता आदि ४-अनन्तानमन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्यापाँचों प्रकृतियोंका निरन्तर ख्यान व संज्वलन ये चार प्रकार क्रोध या मान या माया उदय । उदय या लोभ । २ दर्शनावरणी-(पं. स./प्रा. ५/६); (घ. १५/८१); (गो. क./६३०/८३१); २. अप्ररथा आदि ३= अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, सज्वलन ये तीन प्रकार क्रोध या मान या माया या लोभ। (पं.सं./सं ५/६) ३ अपत्या. आदि २-प्रत्याख्यान व संज्वलन ये दो प्रकार १-१२ | १ ४ | १ चक्षु, अचक्षु, अवधि, चारोंका निरन्तर क्रोध या मान या माया या लोभ । जागृत केवल उदय ४. सज्वलन १-संज्वलन यह एक प्रकार क्रोध या मान या सप्त । १ । चक्षुरादि चार+ अन्यतम माया या लोभ। | अन्यतम निद्रा-६ निद्राके उदग्रसे १.कषाय चतुष्क क्रोध, मान, माया, लोभ ये चारों। प्रकृतिके ५भंग ६. दो युगल-हास्य-रति व अरति-शोक । ३ वेदनीय-(पं.सं./प्रा.१/१६-२०); (ध १५/८१), गो क. ६३३ ७. उप.-उपशम सम्यग्दृष्टि, क्षा - क्षायिक सम्यग्दृष्टि । ६३४/८३०); (पं.सं/सं. २३-२४) ८. वेदकम् वेदक सभ्यग्दृष्टि । १-१३ | १ | १ । २ साता असातामें अन्य- अन्यतमोदयसे २. कुल स्थान व भंग तमका हा उदय प्रकृतिक २भग कुल स्थान-१ (पं.सं./प्रा/३०-३२), (ध.१५/८१), (गाक६५. ४ मोहनीय-नोट · देखो आगे नं ६ वाली पृथक् प्ररूपणा ६५६/८४६-८४८), (पं स /सं.६/३८-४१)। ५ आयु-(पं.सं /प्रा. ५/२१-२४); (घ १५/८६). (गो के ६४४/८३८), प्रति | प्रति विवरण (पं.स /सं./२५-३०) स्थान | स्थान सम्यक्त्व प्रकृति भंग विशेषता १-४ १ । १ । ४ । अन्यतम एकका | चारोंमें से अन्ध- प्रकृति भंग स्थान विशेष उदय | तमका उदय अवेदभाग १ । ४ , सज्वलन कषाय होनेसे ४ भग चतु.में अन्यतम ५ १ | १ | २ मनु. व तिर्य मेंसे दोनों में से अन्य । १ । १ ' केवल संज्वलन अन्यतमका उदय तमका उदय लोभ (यह भंग होनेसे २ भग | ऊपर वालों में ही गर्भित है) उदय ९-१२ | १ | ५ | १ | पाँचों प्रकृतियोंका | निरन्तर गुण ६-१४११ | १ केवल मनु आयुका जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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