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________________ उदय ३८३ ६ कर्म प्रकृतियोंकी उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ स्थान ३-१४ |१०४ । । । ९० | १ मार्गणा | गुण व्युच्छिन्न प्रकृ तयाँ अनुदय । पुन' उदय उदय उदय अनुदय पुनः । कृत व्युच्छि, पुन' | कुत व्यच्छि , | उदय | उदय । ७. ज्ञान मार्गणा--(गो क./म. ३२३-३२५/४६२-४६५) मतिश्रुत अज्ञान उदय योग्य-आहा द्वि., तीर्थंकर, मिश्र. सम्य., इन ५ के बिना सर्व १२२-५- ११७ मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नारक आनु. ६ अनन्तानुबन्धी चतु, १-४ इन्द्रिय, स्थावर गुणस्थान सम्भव नहीं विभग ज्ञान उदय योग्य--१४ इन्द्रिय, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, आन. चतु , आहा. द्वि., तीर्थकर, मिश्र, सम्य, मोह इन १८ बिना सर्व १२२-१८-१०४ मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी चतु | १०३ | ४ गुणस्थान सम्भव नहीं मति, श्रुत, उदय योग्य :-मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, १-४ इन्द्रिय, स्थावर, अनन्ता चतु मिश्र मोह इन अवधिज्ञान १५ के बिना सर्व-१२२-१५- १०७ | ४ मूलोधवत -१७ | तीथ, आ. । | द्वि-३ । --- मूलोघवत मन पर्यय ज्ञान | - | उदय योग्य -१-५ तक के गुण स्थानों में ओघवत् व्युच्छिन्न ४०+ तीर्थकर, आहा- द्वि. व स्त्री नपुंसक वेद इन ४५ के बिना सर्व-१२२-४५-७७ ६ |स्त्यानगृद्धि त्रिक | | । । ७७ | ३ - मुलं घबत् । विशेष इतना कि हमें में एक पुरुषवेद की ही व्युच्छित्ति कहना। केवल ज्ञान -- | उदय योग्य –ोध प्ररूपणाके १३वे १४वें गुणस्थानो में व्युच्छिन्न कुल ४२ ।। १३-१४ - मूलोधवत् । १३वें में तीर्थंकर का पुन उदय न कहना ८. संयम मार्गणा-(गो. क./जी. प्र. ३२४/४६५-४६६) सामायिक | - उदय योग्य .-ओघ प्ररूपणामें कथित ६ठे गुणस्थान में उदय योग्य-८१ छेदोष. - मूलोववव परिहार विशुद्धि उदय योग्य --खी व नपुंसकवेद तथा आहारक द्वि इन ४ के बिना सामायिक सयतय ८१-४-७७ स्त्यानत्रिक, सम्य., ३ अशुभ संहनन उदय योग्य '--ओघ प्ररूपणाके १०वें गुणस्थान में उदय योग्य = ६० सूक्ष्म साम्पराय मूलोधवव उदय योग्य --ओध प्ररूपणाके ११वे गुणस्थानमें उदय योग्य-५६ यथा ख्यात - मूलोधव देश संयत उदय योग्य '--ओघ प्ररूपणाके वे गुणस्थानमें उदय योग्य-२७ - मूलोधवत असंयत उदय योग्य .--तीर्थकर व आहा. द्वि इन ३ के बिना सर्व १२२-३-११६ आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, मिश्र, सम्य-२। मिथ्या. २-४ - मूलोधवत ९. दर्शन मार्गणा-गो क /जी प्र. ६२५/४६९-४७०) चक्षुदर्शन उदय योग्य ----साधारण, आतप, १-३ इन्द्रिय, स्थावर, सूक्ष्म, तीर्थ कर इन के बिना सर्व १२२-८-११४ मिथ्यात्व, अपर्याप्त २ | सम्य., मिश्र, । आ द्वि-४ | अनन्तानुबन्धी ४, चतुरिन्द्रिय -५ | नारकानुपूर्वी मूलोधवत 18 ४ । । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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