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________________ मार्गणा Jain Education International एक जीवापेक्षया प्रमाण ___ नाना जीवापेक्षया जघन्य अपेक्षा प्रमाण मार्गणा गुण 1 प्रमाण स्थान १ । ३ उत्कृष्ट प्रमाण जघन्य अपेक्षा अपेक्षा । आहारक २३८५१समय | मूलोधवत ३८५ । पत्य/असं. ३८६ । पत्य/असं. मूलोधवत - ३८७ | आहारक काल | २ समय स्थिति वाला सासादन मरकर -२ समय या एक विग्रह से उत्पन्न होकर असंख्यातासं. | द्वितीय समय आहारक हो तृतीय उत. वसर्पिणी | समय मिथ्यात्व में गया । परिभ्रमण कर आहारक काल के अंतमें उप सम्य को प्राप्त हो आहारक कालका एक समय शेष रहनेपर पुनः सासादन । ३ ३८५ समय मूलोधवत् ३८५ पत्य/असं. ३८६ । अन्तर्मुहूर्त । मूलोधवव ३७ For Private & Personal Use Only निरन्तर गुणस्थान परिवर्तन ३१० आहारक काल- | २८/ज देवोंमें उत्पन्न हो सम्यग्मिथ्या, ६ अंतर्मू. या को प्राप्तकर मिथ्यादृष्टि हो आहारक असं उत् अवसर्पिणी काल प्रमाण भ्रमण कर, उपशम पूर्वक सम्यग्मिथ्यात्व धार सम्य. या मिथ्या. होकर विग्रह गतिमें गया। ___ ५ अंतर्मु. " " |, किन्तु संज्ञी सम्मूच्छिम तियं, में | | उत्पन्न कराके प्रथम संयमासंमय ग्रहण कराना। फिर भ्रमण । 1-८ वर्ष-३ अंतर्मू , परन्तु मनुष्योंमें उत्पन्न कराके संयत बनाना । फिर भ्रमण |-८ वर्ष-क्रमशः प्रमत्ताप्रमत्तवव १२,१०,६,८ अंतर्मु, (वें में १२.हवें में १०, १०वें में है ११वे में ८) मूलोधवत् कार्मण काययोगवन - मूलोधवव ३६०/ उपशमक मूलोघवत् ३६१ अन्तर्मुहूर्त मृतोधवत क्षपक अनाहारक कामण योगवत् ३६६ कार्मण काययोगवत् मूलोघवत् ३६७ मूलोधवत् ३६५ ३६७ www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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