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________________ मागणा Jain Education International माना जीवापेक्षया प्रमाण अपेक्षा एक जीवापेक्षया प्रमाण उत्कृष्ट मार्गणा ण | प्रमाण जघन्य प्रमाण जघन्य अपेक्षा अपेक्षा ।१२। मति-श्रुतज्ञान ४ २३२ । निरन्तर (२३० ... २३३ २३५ २४० ११/२४१ १ समय मुलोधवत् २४२ उपशमक क्षपक अन्तर्मुहूर्त । गुणस्थान परिवर्तन |२३४ पू.को.-४ अन्तर्मु. २८/ज सम्मूच्छिम पर्याप्तकों में उपज ४थे ५वें में रहकर मरे देव होय ६६ सा.-३ पू.को. २८/ज. मनुष्य हो वाँ ६ठा धार उत्कृष्ट -८ वर्ष ११ अन्तर्मु | स्थिति पश्चात् देव हुआ। वहाँसे चय मनुष्य हो छठा धार पुनः देव हुआ। वहाँ से चय मनुष्य हो श्वाँ फिर ६ठा धार मुक्त हुआ |३३ सा. + पू. को. | ६ठेसे ऊपर जा मरा, देव हो, मन हुआ।। -३१३५१ अन्तर्मु. भवके अन्तमें पुनः ठा। २४४६६सा +३ पू. को. | श्रेणी परि.कर नीचे आ असंयत हो मनुष्य | मूल ओघवत् -स्वर्ष २६ अन्तर्मू. | अनुत्तर देवोंमें उपजा । वहाँसे मनु.संयत, । पुनः अनुत्तर देव । फिर मनु. उप. । पीछे नीचे आ क्षपक हो मुक्त हुआ गुणस्थान परिवर्तन २३४ १५.को.-५ अन्तर्मु. मतिज्ञानवद(सम्य.के साथ अवधिभो हुआ) २३७ ६६ सा. + ३पू.को. |-वर्ष १२ अन्तर्मु. मति-श्रुतवत् २३६ मतिश्रुतवत् पतनका अभाव पतनका अभाव मूलोधवत् मूलोघवद अन्तर्मुहूर्त - गुणस्थान परिवर्तन अन्तर्महूर्त ठेसे ७वा और वेसे ठा २५२। पू. को -८ वर्ष उप.श्रेणीप्राप्त मनुष्य गुणस्थान परि कर -क्रमशः १२, १०, भवके अन्त में पुनः श्रेणी चढ़ मरे, देव हो ६.८ अन्तर्मु. पतनका अभाव २५५|| पतनका अभाव मूलोषक्त २५६ मूलोषवद अवधिज्ञान निरन्तर २३२] " २३ For Private & Personal Use Only ६-७ २३८॥ ८-११ २४५ ८-१२ २४५ २४५/ उपशमक क्षपक मनापर्यय उपशमक मति-श्रुतवत १ समय ऐसेजीवकमहोतेहै, २४५ मूलोधवत २४५ निरन्तर २४६ मूलोधवत् २५० २४५ २४६ ८-११ २४६ ८-१२ २५३ २५४ क्षपक केवलज्ञान ८. संयम मार्गणाः'सयम सामान्य सामायिक छेदो परिहारविशुद्धि निरन्तर अन्तर्मुहूर्त / असंयत हो पुनः संयत सूक्ष्म साम्प हो पुनः सामासामा. छेदो. हो पुनः परिहार विशुद्धि उपशान्तकषाय हो पुनः सूक्ष्मसाम्पराय पतनका अभाव ११० कुछ कमअर्ध.पु.परि. ११० , . अन्तर्मु. . उप. सम्य. व संयमका युगपत ग्रहण ११० " -३०वर्ष-अन्तर्मु. सम्य.के ३० वर्ष पश्चात परिहार विशुद्धि का ग्रहण ११३, अर्ध पु.परि.-अंत उप. सभ्य. व संयमका युगपत ग्रहण । तुरत श्रेणी। गिरकर भ्रमण । पुनः श्रेणी।। पतनका अभाव सुक्ष्मसाम्पराय उप. ४४ ६ मास ट www.jainelibrary.org " क्षप.
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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