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________________ एक जीवापेक्षया नानाजीवापेक्षया मागणा Jain Education International । प्रमाण । प्रमाण प्रमाण गुण स्थान मार्गणा जघन्य उत्कृष्ट अपेक्षा जघन्य जघन्य । अपेक्षा प्रमाण उत्कृष्ट । अपेक्षा ३. नपुंसक वेद १ २०७ निरन्तर २०० । अन्तर्मुहूर्त मूलोधवत २०६ ३३ सा.-६ अन्तम. | २८/ज, ७ वीं पृथिवीमें उपज सम्यक्त्व पा भवके अन्तमें पुनः मिथ्यादृष्टि मूलोधवत २९० || २१० २१० " २-७ २१० उपशमक ८- ६२१० क्षपक ४. अपगत वेद उप. 18-१० २१४ १९ २१८ "क्षपक १-१४ २२१ ६. कषाय मार्गणा मूलोषवद २१० १ समय खीवेदीवव २१२) , मूलोघवव २१५ |, ऊपर चढ़कर गिरे २१६/ - मूलोधवत २२१/ अन्तर्मुहूर्त :: पतनका अभाव मूलोधवत | वेदका उदय नहीं मूलोधवद पतनका अभाव गिरनेपर अपगत वेदी नहीं रहता इस स्थान में वेदका उदय नहीं मूलोघवत् २२१ क्रोध निरन्तर किसीभी कषायकी स्थितिइससे अधिक नहीं : For Private & Personal Use Only मान माया लोभ उपशान्त कषाय :::। कषाय परि. कर मरे, नरकमें जन्म मनु. जन्म व्याघात नहीं ति, जन्म व्याघात नहीं देवजन्म व्याघात नहीं उपशम श्रेणी से उतर पुनः आरोहण पतनका अभाव मनोयोगीवत् २२३ मूलोघवत कुछ कम अर्ध. पु. परि. पतनका अभाव मनोयोगीवन मनोयोगीवद २२३ क्षीण कषाय चारों कषाय उपशमक क्षपक अकषाय ।।।। २२३ 16-१०/२२३ ८-१०/२२३ | ११ २२४ । । । (२२३ २२३ " नीचे उतरनेपर अकषाय नहीं रहता १ समय उपशम श्रेणीके २२५ कारण | - मूलोधवत् २२७/ २२३| नीचे उतरनेपर अकषाय २२६ नहीं रहता मूलोधवत १२-१४२२७ । रण मूलोघवत ७. ज्ञान मार्गणामति, श्रुत अज्ञान निरन्तर 1 ३७ । गुणस्थान परिवर्तन ६६ १३२ सा. सम्यक्त्व के साथ ६६ सा. रह सभ्यग्मि.मैं| जा पुनः सम्यक्त्वके साथ ६६ सा.। । फिर मिथ्या. १०२ असं. पु. परि. । अविवक्षित पर्यायों में भ्रमण १०५ कुछकम अर्ध.पु.परिः सम्यक्त्वसे च्युत हो भ्रमण, पुनः सम्य. पतनका अभाव पतनका अभाव निरन्तर | २२६ निरन्तर १२३१ तर इमगुण स्थान में अज्ञान ही, होता ज्ञान नहीं। विभंग मति, श्रुत,अवधिज्ञान || मनःपर्यय केवल कुमति, कुश्रुत व विभंग १ www.jainelibrary.org पतनका अभाव निरन्तर मूलोधवत् : : । २३० २३०/
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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