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________________ आयु २७० ७. आयु विषयक प्ररूपणाएं सोम स्व स्व इन्द्रोकी देवियोवद स्व स्व स्वामिवद कथन नष्ट हो गया है कथन नष्ट हो गया है कथन नष्ट हो गया है कथन नष्ट हो गया है ११. वैमानिक इन्द्रों अथवा देवोंकी देवियों सम्बन्धी नोट-उत्कृष्ट आयु दी गयी है । जघन्य आयु सर्वत्र एक पत्य है। संकेत-ऊन-किंचिदून इन्द्रत्रिक इन्द्र सन्बन्धी प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश यह तीन सामन्त लो चतु.- लोकपालों सम्बन्धी प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, पारिषद व अन्य सामन्त प्रकी त्रिक- प्रकीर्णक, अभियोग्य व किल्विषक देव प्रमाण-सारे चार्टका आधार भूत-(ति.प.५२७-५४०) केवल इन्द्रोकी देवियों सम्बन्धी -(मू आ. ११२०-११२१), (ति.प.८/५२७-५३२): (ध. ७/४.१,६६/गा.१३१-३००); (त्रि.सा. ५४२) ____ इन्द्र को देवियाँ इन्द्रत्रिक लोकपाल परिवारकी देवियाँ आत्म-पारिषद अनीको प्रकी, कम नाम स्वर्ग दृष्टि दृष्टि | दृष्टि की रोकी त्रयकी की विककी न.१ नं.२ नं ३ देवियाँ यम वरुण कुबेर |त्रिक देवियाँ देवियों देवियों देवियाँ पल्य पत्य पक्य | पल्य सौधर्म १-१/ २ ऊन १-१/२ ईशान साधिक १-१/२ सनत्कुमार २-२/४२-१/२ | ऊन २-१/२ ४माहेन्द्र २-१/२/ साधिक २-१/२ ब्रह्म ३-१/४/३/१/२ ऊन ३-१/२ ब्रह्मोत्तर ३-१/२ साधिक ३-१/२ ७ लान्तव ऊन ४-११२ कापिष्ठ साधिक ४-१/२ शुक्र ऊन १-१/२ । महाशुक्र साधिक ५-१/२ शतार ६.१/२ । ऊन ६-१/२ । सहस्रार ६-१२ साधिक ६-१/२ १३ आनत । ७-११४७-१/२ ऊन ७-१/२ १४ प्राण त साधिक ७-१/२ १५/ आरण ८१/४-८-१/२ ऊन ८-१/२ १६ / अच्युत ८-१/ २ साधिक ८-१/२) १२. देवों-द्वारा बन्ध योग्य जघन्य आय आरंभ-स.सि. ६/८/३२५/४ प्रक्रम आरम्भ। ध. १/४,१,६६/३०६-३०८ स.सि. ६/१५/३३३/३ आरम्भ' प्राणिपीडाहेतुापार - कार्य करने लगना सो आरम्भ है । (रावा.६/८/४/५१४), (चा.सा.८७/१) प्राणिजघन्य आय योंको दुख पहुँचानेवाली प्रवृत्ति करना आरम्भ है। तियचौकी | मनुष्योंकी रा.वा. ५/१५/२/५२५/२५ हिंसनशीला. हिंस्राः, तेषां कर्म हैंसम् आरम्भ सानत्कुमार माहेन्द्र मुहूर्त पृथक्त्व मुहूर्त पृथक्त्व इत्युच्यते। - हिंसनशील अर्थात हिंसा करना है स्वभाव जिनका वे ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर दिवस दिवस - हिस कहलाते है। उनके ही कार्य हैल कहलाते है। उनको ही लावन्त-कापिष्ठ आरम्भ कहते है। शुक्र-महाशुक्र | पक्ष , ध.१३/५,४,२२/४६/१२ प्राणि-प्राणवियोजनं आरम्भोणाम।-प्राणियोंशतार-सहस्रार के प्राणोका वियोग करना आरम्भ कहलाता है। ६ आनत-प्राणत मास . प्रसा/त.प्र २२१ उपधिसद्भावे हि ममत्वपरिणामलक्षणाया मूळ आरण-अच्युत यास्तद्विषयमप्रक्रमपरिणामलक्षणस्यारम्भस्य. - उपाधिके सद्भाव ८ नव वेयक में ममत्व परिणाम जिसका लक्षण है ऐसी मूर्छा और उपाधि है। अनुदिश-अराजित सम्बन्धी कर्म प्रक्रमके परिणाम जिसका लक्षण है ऐसा आरम्भ-. । १० सम्यग्दृष्टि कोई भी देव आरंभ क्रिया- दे क्रिया ३/२। आयोपाय-भ.आ./मू.४६२ तस्स आयोपायविदंसी खवयस्स ओषपण्णवओ। आलोचेंतस्स अणुज्जगस्स दसेइ गुणदोसे ॥४२॥ आरंभ त्याग प्रतिमा-र के श्रा १४४ सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखा-जो क्षपक उपर्युक्त कारणों से दोषों की आलोचना करने में भययुक्त दारम्भतो व्यु पारमतिाप्राणातिपातहेतोर्योऽसावारम्भविनिवृत्त.१४४॥ होता है उसको आयोपाय दर्शन गुणके धारक आचार्य आलोचना जो जीव हिमाके कारण नौकरी खेती व्यापारादिके आरम्भसे करने में गुण और न करनेमें हानि कैसी होती है इसका निरूपण विरक्त है वह आरम्भ त्याग प्रतिमाका धारी है। (गुण श्रा, ९८०) कहते हैं। (का.आ ३८५); (साध ७/२१) पक्ष मास . जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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