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________________ आम्नाय आम्नाय -मसि ६/२५ / ४२३/५ घोषशुद्ध' परिवर्तनमाम्नाय । उच्चाकी शुद्धिपूर्वक पाठको पुनपुन दोहराना आम्नाय है । ( तसा ७ /११ ), ( अन ध. ७/८७/७१६) रावा. १/२५/२/६२४/१६ मतदाचारस्पेस कि निर पेक्षस्य द्रुतविलम्बितादिवाविशुद्ध परिवर्तनमाम्नाय इत्युपदिश्यते । - आचारपारगामी व्रतीका लौकिक फलकी अपेक्षा किये बिना द्रुतविलम्बितादि पाठ दोषोसे रहित होकर पाठका फेरना, घोखना आम्नाय है । (चासा १५३ / ३) आय - १ आयका वर्गीकरण - दे. दान । २. सब गुणस्थानों व मार्गणा स्थानो में आयके अनुसार व्यय । - ये मार्गणा । आयत- -१. आयत चतुरस्राकार - ( ज प / प्र.१०५ ) Rectangular २ तिर्यक् आयत चतुरस्र - ( ज प / प्र १०५ ) Cuboid | ३ आयत सामान्य - ऊर्ध्वता सामान्य अर्थात् एक द्रव्यकी सर्व पर्याय में रहनेवाला एक अन्वय सामान्य । दे. क्रम ६ । आयतन १. आयतन व अनायतनका लक्षण बो.पा/म. ५-७ मणवयण कायदव्वा आसता जस्स इंदिया विसया । आयदण जिणमग्गे णिद्दिट्ठ सजय रूवं ॥५॥ मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता पचमहन्वयधरा आयदण महरिसी भणिये ॥ सिद्ध जस्स सदस्य विशुद्धावस्स पाजुत्तरस सिद्धायवणं सिद्ध मुविश्वसहस्स मुविदस्थ ॥७५ जिन मार्ग वि सयम सहित मुनिरूप है सो आयतन कहा है। कैसा है मुनिरूपजाकै मन, वचन, काय तथा पचेन्द्रियो के विषय अधीन है अर्थात् जो इनके वश नहीं है परन्तु यह ही जिनके वशीभूत है ॥५॥ जाकै मद, राग, द्व ेष, मोह, क्रोध और माया ये सर्व निग्रह के प्राप्त भये है, बहुरि पाँच महाव्रतोको धारण करनेवाले है ॥ ६ ॥ जाकै सदर्थ अर्थात् शुद्धात्मा सिद्ध भया है, जो विशुद्ध शुक्लध्यान कर युक्त है। जिन्हे केवलज्ञान प्राप्त भया है, जो मुनिवर वृषभ अर्थात् मुनियोमे प्रधान है ऐसे भगवान् भी सिद्धायतन है ॥७॥ १६ दानामायतनं गृहमावास आश्रयआधारकरण निमितमायतन भग्यते तद्विपक्षभूतमनाशनमिति । = सम्यक्त्वादि गुणोका आयतन घर आवास- आश्रय (आधार) करने का निमित्त, उसको 'आयतन' कहते हैं और उससे विपरीत अनायतन है। २ बौद्धके द्वादश आयतन निर्देश बो.पा./टी. ६ / ७५ पर उधृत "पचेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषया. पञ्चमानसं । धर्मायतनमेतानि द्वादशायतनानि च । - बौद्ध मतमें आयतनका ऐसा लक्षण है - पाँच इन्द्रिय, शब्दादि पाँच विषय, मन व धर्म इस प्रकार १२ आयतन होते हैं । ३. षट् अनायतन निर्देश स.टी ४९/१६६/२ अथानायतनप कथयति । मिथ्यादेवी, मिथ्यादेवाराको मिथ्यातपो मिध्यातपस्वी मिध्यागमो मिथ्यामधरा. पुरुषाश्वयुक्तलक्षणमनायतनषट्कं । - अब छह अनायतनोंका कथन करते है-मिथ्यादेव मिध्यादेके सेवक मिध्यात मिध्यात वस्वो, मिथ्याशास्त्र और मिथ्याशाखोके धारक, इस प्रकारके छह अनायतन सरागसम्यग्दृष्टियोको त्याग करने चाहिए। पाटो ६२४पर भूत "देवगुरुशाखाणां तद्भक्तानां गृहे गतिः। षडनायतनमित्येवं वदन्ति विदितागमा ||१|| प्रभाचन्द्रस्त्वेवं वदति मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्राणि त्रीणि त्रयं च तद्वन्त पुरुषा' षडनायनानि अथवा अस सर्वज्ञायतनं, २ असा अस ३ Jain Education International १ २५१ आयु 1 ज्ञानसमवेत पुरुष, ४ असर्वज्ञानुष्ठान ५ असर्व ज्ञानुष्ठानसमवेत पुरुषश्चेति । कुदेव, कुगुरु, व कुशास्त्रके तथा इन तीनोके उपासको के घरों में आना-जाना, इनको आगमकारोने षडनायतन ऐसा नाम दिय है ॥१॥ प्राचन्द्र आचार्य ऐसा कहते है कि मिध्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र ये तीन तथा इन तीनो के धारक अर्थात् मिथ्यादृष्टि, मिथ्याज्ञानी व मिथ्या आचारवान् पुरुष, यह छह अनायतन है । अथवा १ असर्वज्ञ, २ असर्वज्ञ देवका मन्दिर, ३ असर्वज्ञ ज्ञान, ४ असर्वज्ञ ज्ञानका धारक पुरुष, ५ असर्वज्ञज्ञानके अनुकूल आचार, ६ और उस आचारके धारक पुरुष यह छह अनायतन है। आयाम—१ Length (ज. १०५) २. गुणहानि आयाम । प / प्र । - दे. गणित II / ६ / २ । ३ गुणश्रेणी आयाम - दे. सक्रमण ८ । - जीवकी किसी विवक्षित शरीर में टिके रहनेकी अवधिका नाम आयुही आयु है। इस आयुका निमिचकर्म आयुकर्म कहलाता है। यद्यपि गतिकी भाँति वह भी नरकादि चार प्रकारका है, पर गति में और आयुर्गे अन्तर है। गति जीवको हर समय मंधती है, पर आयु बन्धके योग्य सारे जीवन में केवल आठ अवसर आते है जिन्हें अपकर्ष कहते है। जिस आयुका उदय आता है उसी गतिका उदय आता है अन्य गति नामक कर्म भी उसी रूप से संक्रमण द्वारा अपना फल देते है । आयुकर्म दो प्रकारसे जाना जाता है- भुज्यमान व अध्ययान । वर्तमान भव में जिसका उदय आ रहा है वह भुज्यमान है और इसीमे जो अगले भवकी आयु बॅधी है सो बध्यमान है । भुज्यमान द्वायुका तो बदलीपात आदिके निमित्त केवल अपकर्षण हो सकता है उत्कर्षण नही पर बध्यमान आयुका परिणामोके निमित्त से उत्कर्षण व अपकर्षण दोनों सम्भव है। किन्तु विवक्षत आयुकर्मका अन्य आयु रूपसे सक्रमण होना कभी भी सम्भव नहीं है। अर्थात् जिस जातिकी आयु बँधी है उसे अवश्य भोगना पडेगा । १ भेद व लक्षण १ आयु सामान्यका लक्षण २ आयुष्यका लक्षण ३ आयु सामान्यके दो भेद ( भवायु व अद्धायु) ४ आयु सत्त्वके दो भेद (भुज्यमान व बद्धधमान) ५ भवायु व अद्धायूके लक्षण ६ भुज्यमान व बड्यमान आयुके लक्षण कर्म सामान्यका लक्षण ७ आयु * / ★ आयु कर्मके उदाहरण दे प्रकृतिबन्ध २ ८ आयुकर्मके चार भेद (नरकादि) ९ आयुकर्मके असंख्यात भेव १० आयुकर्म विशेष के लक्षण २ आयु निर्देश १ आयुके लक्षण सम्बन्धी शंका २ गतिबन्ध जन्मका कारण नही आयुबन्ध है। ३ जिस भवकी आयु बँधी नियमसे वही उत्पन्न होता है * विग्रह गतिमे अगली आयुका उदयदे, उदय ४ ४ देव नारकियोको बहुलताको अपेक्षा असंख्यात वर्षायुष्क कहा है जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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