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________________ अल्पबहुत्व ३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ मार्गणा सकेत अपमहत्व अल्पमहत्व गुणकार अनन्त गुणी अभव्यxअनन्त नो कृ. सर्व जीव राशि अनन्त १६ असं. गुणी पल्य/असं अनन्तगुणी अनन्तलोक असं. गुणी ज.श्रे./असं. अंगु/असं. पत्य/असं. ज.प्र./असं. पत्य/असं, २. नाना श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाणको अपेक्षा (ध.१४/१.१६६-१७६ तथा २०८-२१२) स्तोक एक संख्या प्रमाण असं. गुणे आ./असं,- अस, लोक २३। २. इन्द्रिय मार्गणा स्वब परस्थानकी अपेक्षा३२१/ चतुरिन्द्रिय | नो. कृ. । स्तोक अव, विशेषाधिक त्रीन्द्रिय अब. बोन्द्रिय नो. कृ. अब. पंचेन्द्रिय मो. कृ. असं. गुणे अव. विशेषाधिक असं. गुणे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय एकेन्द्रिम नो. कृ. | अनन्त गुणे अव. विशेषाधिक ___ असं गुणे नोट- इससे आगेके सर्व स्थान यथायोग्य एकेन्द्रिवत् जानना। ३. अन्य मार्गणाएँ स्व व परस्थानोंकी अपेक्षा३१४ मनः पर्यय ज्ञान | नरक गतिवव क्षायिक सम्यग्दृष्टि संयत सामान्य विशेष अनुत्तरादि विमानोंसे मनुष्य होनेवाले देव तथा अन्य संख्यात राशियाँ ३. तेईस वर्गणाओं सम्बन्धी प्ररूपणाएँ २३ वर्गणाओं के नाम-(प.खं.१४/५,६/सू.७६-६७/५४-१९८) १. एक प्रदेशप्रमाणु वर्गणाः २. संख्याताणु वर्गणा; ३. असख्याताणु वर्गणाः ४. अनन्ताणु वर्गणा; ५. आहारक वर्गणा; ६. अग्राह्य वर्गणा, ७.तेजस शरीर वर्गणा; ८. अग्राह्य वर्गणा; ६.भाषा वर्गणा; १०. अग्राह्य वर्गणाः ११ मनो वर्गणा, १२. अग्राह्य वर्गणाः १३. कार्मण वर्गणाः १४. ध व स्कन्ध वर्गणाः १. सान्तरनिरन्तर वर्गणा; १६.५ व शून्य वर्गणा; १७. प्रत्येक शरीर वर्गणा; १८. ध्रुव शून्य वर्गणा; १६. मादर निगोद वर्गणाः २०. ध व शुन्य वर्गणाः २१. सूक्ष्म निगोद वर्गणा; २२.५ व शुन्य वर्गणा: २३. महा स्कन्ध वर्गणा अनन्त गुणे " -असं.लीक सर्व जीव राशि अनन्त अभव्य अनन्त स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि अनन्त गुणे स्वगुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि वर्ग.सं अल्पबहुत्व गुणकार १. एक श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाणकी अपेक्षा (ध.१४/पृ.१६३-१६६) स्तोक एक संख्या प्रमाण सं. गुणी एक कम उत्कृष्ट संख्या असं. गुणी स्व राशि/असं. अनन्त गुणी स्व राशि/असं. अनन्त उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि जघन्य परीतानन्त सं. गुणे २ कम उत्कृष्ट संख्यात असं. गुणी ध व शून्य वर्गणाओंका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुदगल रूप नहीं है | आकाश रूप है ३. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाणकी अपेक्षा-- (ध.१४/पृ.२१३-२१॥ स्तोक अनन्त गुणे अनन्त लोक अस. गुणे असं.लोक २१ अनन्त गुणे सर्व जीवxअनन्त । स्वअन्योन्याम्यस्तराशि अभव्य अनन्त जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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