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________________ अलाभ १३९ अल्पबहुत्व १६७। इसने कृष्ण के छ भाइयों को अपने छ मृत पुत्रोके बदले में पाला था। ३५-३६। अलाभ-दे लाभ। अलाभ परिषह-स. सि./६/६/४२५ वायुवदसंगादनेकदेशचारिणोऽभ्युपगतेककालसभोजनस्य वाच यमस्य तत्ससमितस्य वा सकृत्स्वतनुदशनमात्रतन्त्रस्य पाणिपुटमात्रपात्रस्य बहुषु दिवसेषु बहुषु च गृहेषुभिक्षामनवाप्याप्यस क्लिष्टचेतसो दातृविशेषपरीक्षानिरुत्सुकस्यलाभादप्यलाभो मे परम तप इति सतुष्टस्यालाभविजयोऽवसेय । वायुके समान नि सग होनेसे जो अनेक देशो में विचरण करता है, जिमने दिनमे एक बारके भोजनको स्वीकार किया है, जो मौन रहता है या भाषा समितिका पालन करता है, एक बार अपने शरीरको दिखलाना मात्र जिसका सिद्धान्त है, पाणिपुट ही जिसका पात्र है, बहुत दिनो तक या बहुत घरोमे भिक्षा न प्राप्त हानेपर जिसका चित्त सक्लेशसे रहित है, दाताविशेषकी परीक्षा करने में जो निरुत्सुक है, तथा लाभसे भी अलाभ मेरे लिए परम तप है, इस प्रकार जो सन्तुष्ट है, उसके अलाभ परिषहजय जानना चाहिए। (रा वा/8/8/२०/६११/१८) (चा सा/१२३/४)। अलेवड-भ आ/वि /७००/८८२/७ अलेवड अलेपसहित, यन्न हस्ततल विलिम्पति। -अलेवड-हाथको न चिपक्नेवाला माड ताक वगैरह। अलोक-अलोकाकाश-दे आकाश १,२ । अलौकिक-दे. लोकोत्तर । अलौकिक गणना प्रमाण-दे प्रमाण ५ । अलौकिक शुचि-दे शुचि । अल्पतर बंध-दे. प्रकृति बध१॥ अल्पबहत्व-पदार्थाका निर्णय अनेक प्रकारसे किया जाता हैउनका अस्तित्व व लक्षण आदि जानकर, उनकी सरव्या या प्रमाण जानकर तथा उनका अवस्थान आदि जानकर। तहाँ पदार्थोकी गणना क्योकि सख्याको उल्लघन कर जाती है और असख्यात व अनन्त कहकर उनका निर्देश किया जाता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किसी भी प्रकार उस अनन्ता असख्यमें तरतमता या विशेषता दर्शायी जाय ताकि विभिन्न पदार्थाकी विभिन्न गणनाओ का ठीक-ठीक अनुमान हो सके। यह अल्पबहूत्व नामका अधिकार जैसा कि इसके नामसे हा विदित है इसो प्रयाजनकी सिद्धि करता है। २. षट् द्रव्योका षोडशपदिक अल्प बहुत्व । ३ जीव द्रव्यप्रमाणमे ओघ प्ररूपणा। १ प्रवेशको अपेक्षा। २. सचयकी अपेक्षा। ३ सम्यक्त्वमें संचयकी अपेक्षा । ४. गतिमार्गणा १-२. पाँच गति ब आठ गतिकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ३-६, चारो गतियोकी पृथक्-पृथक् सामान्य, ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ। ५ इन्द्रिय मार्गणा १. इन्द्रियोकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । २ इन्द्रियोमे पर्याप्तापर्याप्तकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ३ ओघ व आदेश प्ररूपणा। ६. काय मार्गणा १ त्रस स्थावरकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । २ पर्याप्तापर्याप्त सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । ३. बादर सूक्ष्म सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ४ बादर सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्तको अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । ५ ओध व आदेश प्ररूपणा । ७. गति इन्द्रिय व कायको सयोगी परस्थान प्ररूपणा । ८ योग मार्गणा १ सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररुपणा। २ विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ३ ओध व आदेश प्ररूपणा । ९ वेद मार्गणा १ सामान्यको अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । २. विशेषको अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ३ तीनो वेदोकी पृथक-पृथक ओघ व आदेश प्ररूपणा । १० कषाय मार्गणा १ कषाय चतुष्ककी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । २ कषाय चतुष्ककी अपेक्षा ओघ व आदेश प्ररूपणा। ११. ज्ञान मार्गणा १. सामान्य प्ररूपणा। २. ओघ व आदेश प्ररूपणा। १२ संयम मार्गणा १ सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा । २ विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ३. ओघ व आदेश प्ररूपणा । १३. दर्शन मार्गणा १. सामान्य व २. ओघ व आदेश प्ररूपणा । १४. लेश्या मार्गणा १ सामान्य व २. ओध व आदेश प्ररूपणा । १५. भव्य मार्गणा १ सामान्य व २. ओघ व आदेश प्ररूपणा। १६ सम्यक्त्व मार्गणा १ सामान्य व २. ओघ व आदेश प्ररूपणा। १७. संज्ञी मार्गणा १ सामान्य व २. ओघ व आदेश प्ररूपणा। १. अल्पबहत्व सामान्य निर्देश व शकाएँ १ अल्पबहुत्व सामान्यका लक्षण । २ अल्पबहत्व प्ररूपणाके भेद । ३. संयतकी अपेक्षा असयतकी निर्जरा अधिक कैसे । ४. सिद्धोके अल्पबहुत्व सम्बन्धी शका। ५ वर्गणाओके अल्पबहुत्व सम्बन्धी दृष्टिभेद । ६. पचशरोर विस्र सोपचय वर्गणाके अल्पबहुत्व दृष्टिभेद । ७. मोह प्रकृतिके प्रदेशाग्रो सम्बन्धी दष्टिभेद । २. ओघ आदेश प्ररूपणाएँ * प्ररूपणाओ विषयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार-पर गणना करनेकी विधि । दे सख्या/२ । १. सारणीमे प्रयुक्त संकेतोके अर्थ । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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