SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त ४. वस्तुमें विरोधी धर्मोका निर्देश १. वस्तु अनेको विरोधी धर्मोसे गुम्फित है । २ वस्तु भेदाभेदात्मक है। ३ सत् सदा अपने प्रतिपक्षीकी अपेक्षा रखता है । ४. स्व सदा परकी अपेक्षा रखता है । ५. विधि सदा निषेधकी अपेक्षा रखती है । ६ वस्तुमे कुछ विरोधी धर्मोका निर्देश । ७ वस्तुमे कचित् स्वपर भाव निर्देश । ५. विरोधमें अविरोध * वस्तुके विरोधी धर्मो मे कथंचित् विधि निषेध व भेदाभेद । - दे सप्तभगी ५। * अनेकान्तके स्वरूपमे कथंचित् विधिनिषेध | - दे सप्तभ्रंगी ३ । १. विरोधी धर्म रहनेपर भी वस्तुमे कोई विरोध नही पडता । २ सभी धर्मो मे नही बल्कि यथायोग्य धर्मो मे ही अविरोध है । ३. अपेक्षाभेदसे विरोध सिद्ध है। ४. वस्तु एक अपेक्षासे एकरूप है और अन्य अपेक्षासे अन्यरूप । ५. नयोंको एकत्र मिलानेपर भी उनका विरोध कैसे दूर होता है । ६. विरोधी धर्मो में अपेक्षा लगाने की विधि । ७ विरोधी धर्म बतानेका प्रयोजन । * अपेक्षा व विवक्षा प्रयोग विधि । - दे. स्याद्वाद । * नित्यानित्य पक्षमे विधि निषेध व समन्वय । -दे उत्पाद, व्यय धौव्य २ । * व अद्वैत अथवा भेद व अभेद अथवा एकत्व व पृथक्त्व पक्षमे विधि निषेध व समन्वय । - दे द्रव्य ४ । १. भेद व लक्षण १. अनेकान्त सामान्यका लक्षण ध. १५/२५ / १ को अयंतो णाम । जच्चतरतं । अनेकान्त किसको कहते हैं। जाय्यन्तरभावको अनेकान्त कहते हैं (अर्थाद अनेक धर्मो या स्वादोंके एकरसात्मक मिश्रणसे जो जात्यन्तरपना या स्वाद उत्पन्न होता है, वही अनेकान्त शब्दका वाच्य है) । " B. सा./आ./परि यदेन तत्तदेवाय देवैकं देवाने यदेव त देवासव, देव नित्यं तदेवानिष्यमित्येकवस्तुनि स्तुत्वनिष्पादक पर स्परविरुद्वतियप्रकाशनमनेकान्त जो तद है वही अतय है. जो एक है वही अनेक है, जो सत् है वही असत है, जो नित्य है वही अनित्य है, इस प्रकार एक वस्तुमें वस्तुत्वकी उपजानेवाली परस्पर विरुद्ध दो शक्तियोंका प्रकाशित होना अनेकान्त है (और भी देखो आगे सम्यगनेकान्तका म 1 Jain Education International १०५ अनेकान्त = न्या. दी /३/९७६ अनेके अन्ता धर्मा सामान्यविशेषपर्याया गुणा यस्येति सिद्धोऽनेकान्त' । - जिसके सामान्य विशेष पर्याय व गुणरूप अनेक अन्त या धर्म है, वह अनेकान्त रूप सिद्ध होता है । ( स.भ. /३० / २) २. अनेकान्तके दो भेद - सम्यक् व मिथ्या रा. वा / १/६,७/३५/२३ अनेकान्तोऽपि विविध सम्यगमेकान्तो मिथ्याऽनेकान्त इति । अनेकान्त भी दो प्रकारका है- सम्यगनेकान्त व मिथ्या अनेकान्त । ( स भ त / ७३ / १०) । ३. सम्यक् व मिथ्या अनेकान्त के लक्षण सम्यगनेकान्तका लक्षण रा. वा / १/६ ०/३५/२६ एकत्र सप्रतिपक्षानेकधर्मस्वरूपनिरूपण युवा गमाभ्यामविरुद्ध सम्यगनेकान्स युक्ति व आगमसे अविरुद्ध एक ही स्थानपर प्रतिपक्षी अनेक धर्मोके स्वरूपका निरूपण करना सम्यगनेकान्त है । (स. भ त / ७४ /२) । २. मिथ्या अनेकान्तका लक्षण रा. वा./१/६,७/३५/२७ तदतत्स्वभाववस्तुशून्य परिकल्पितानेकात्मकं केवल वाग्विज्ञानं मिथ्यानेकान्त' । तत् व अतव स्वभाववस्तुसे शून्य केवल वचन विलास रूप परिकल्पित अनेक धर्मात्मक मिथ्या अनेकान्त है। ( स भ त / ७४ /३) । ४. क्रम व अक्रम अनेकान्तके लक्षण साता/६४९/२००/ चिया तिर्यक्सामान्यमिति विस्तारसामान्यमिति अक्रमनेका सामान्य मित्यायतसामान्यमिति कमानेकान्त इति च भव्यते। - तिर्यक्प्रचय, तिर्यक सामान्य विस्तार सामान्य और अकमानेकान्त यह सब शब्द तिर्यक् प्रचयके नाम हैं और इसी प्रकार ऊर्ध्व प्रचय, ऊर्ध्व सामान्य, आयतसामान्य तथा क्रमानेकान्त ये सब शब्द ऊर्ध्व प्रचयके वाचक है। ( अर्थात् वस्तुका गुणसमूह अक्रमानेकान्त है, क्योंकि गुणोको वस्तुमें युगपत् वृत्ति है और पर्यायका समूह कमानेकान्त है, क्योंकि पर्यायोंकी वस्तुमें क्रम वृद्धि है। २. अनेकान्त निर्देश १. अनेकान्त छल नहीं है .. = रावा./१/६.८/३६/१ स्याम्मत तवास्ति तदेव नास्ति तदेव नियं तदेवानित्यम्' इति चानेकान्तप्ररूपणं छलमात्रमिति, तन्नः कुत' । छललक्षणाभावात । छलस्य हि लक्षणमुक्तम्- "वचनाविघातोऽर्थविपश्यत यथा नयकम्बलोऽयम् इत्यविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभिप्रायादर्थान्तरकल्पनम् नवास्य कम्बला न चत्वार इति नवो वास्य कम्बलो न पुराण" इति नवकम्बल । न तथानेकान्तवाद । यक्ष उभयवधानभावापादितापितानतिव्यवहारसिद्धिविशेषलाभप्रायुक्तिपुष्कलार्थ अनेकान्तवाद' प्रश्न यही वस्तु है और वही वस्तु नहीं है, वही वस्तु नित्य है और वही वस्तु अनित्य है. इस प्रकार अनेकान्तका प्ररूपण छल मात्र है ? उत्तर- अनेकान्त छल रूप नहीं है, क्योकि, जहाँ रक्ताके अभिप्रायसे भिन्न अर्थकी कल्पना करके बचन विधात किया जाता है, वहाँ छल होता है । जैसे 'नवकम्बलों देवदत्त" यहाँ 'नव' शब्द के दो अर्थ होते है । एक ६ संख्या और दूसरा नया तो 'नूतन' विवक्षा कहे गये 'नव' शब्दका सख्या रूप अर्थ विकल्प करके बाके अभिप्रायसे भिन्न अर्थ - की कल्पना छल कही जाती है । किन्तु सुनिश्चित मुख्य गौण क्षा सम्म अनेक धर्मोका निर्णीत रूपसे प्रतिपादन करनेवाला अनेकान्तवाद घल नहीं हो सकता, क्योकि इसमें बचनविघात नहीं किया गया है, अपितु यथावस्थित वस्तुतत्त्वका निरूपण किया गया है । ( स भ त / ७१ / १०) । २. अनेकान्त संशयवाद नहीं है रा. वा / १/६, ६-१२/३६/८ स्यान्मतम् - सशय हेतुरनेकान्तवाद । कथम् । एकत्राधारे विरोधिनोऽनेकस्यासम्भवात । तच्च नः कस्मात्। विशेष जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy