SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । जल्दी जल्दी जो स्वकीय स्थानों की ओर दोडी जा रहीं हैं; यह सब दयामूर्ति इस अकबर बादशाह की दया ही का परिणाम है । इस बादशाह ने अपनी अपार । उदारता से जगत् के जीवों को जीवन-सुख प्रदान करते हुए जो महत्पुण्य ।। उपार्जन किया है उस के प्रभाव से यह सम्राट अपने प्रिय पुत्रों के साथ। चिरकाल तक अभ्युदय को प्राप्त करें - (यही शुभाशीष हैं।) Imp nia । अंत में कवि अपने इस ग्रंथ के द्वारा जो जो कार्य हुए उनका बहुत संक्षेप में उल्लेख करते हुए कहता है- इस बादशाह ने जो जजिया कर माफ किया, उद्धत मुगलों से जो मंदिरों का छुटकारा हुआ, कैदमें पडे हुए कैदी जो बन्धन रहित हुए, साधारण राजगण भी मुनियों का जो सत्कार करने लगा, साल भर में छः महिने तक जो जीवों को अभयदान मिला और विशेष कर गायें, भैंसें, बैल और पाडे आदि जो पशु कशाई की प्राणनाशक छुरि से निर्भय हुए; इत्यादि । | शासन की समुन्नति के- जैनधर्म की प्रभावना- के जगत्प्रसिद्ध जो जो कार्य हुए। उन सब में यही ग्रंथ (कृपारस कोश) उत्कृष्ट निमित्त हुआ है - अर्थात् इसी | ग्रंथ के कारण उपर्युक्त सब कार्य बादशाह ने किये हैं। कृतज्ञ लोगों के प्रति । प्रार्थना है, कि वे निर्मत्सर हो कर इस ग्रंथ का संशोधन, पाठन और प्रचार | करें-किं बहुना ? इसे सर्वथा हृदय में धारण करें। मागासराला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy