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________________ समान NITVवामगारमा बातों का कारण इसी स्वामी की सुदृष्टि के प्रताप को समझना चाहिये । कवि अकबर के दयाकी महिमा बतलाने के लिये एक कल्पना करता है, कि किसी व्यक्ति ने दया देवी को उदासीन दशामें देख कर, उस से कुछ सवाल- जबाब किये, जो इस प्रकार के थे। व्यक्तिः - (दया से) 'हे कन्ये ! तूं कौन है?' दयाः - 'मैं दया-कृपा हूं' व्यक्तिः - 'तूं विह्वल क्यों है ?' दयाः - 'मेरे स्वामी कुमारपाल चले गये'.. व्यक्तिः - 'तो फिर क्या हुआ ?' दयाः - 'स्वामी के अभाव में हिंसक मनुष्य मेरा सर्वनाश कर रहे हैं' व्यक्तिः - 'तो अब क्या चाहती है ?' दयाः - 'किसी आश्रयदाता को जो मेरा पालन करे' इस पर व्यक्ति ने कहाः - 'यदि तेरी यह इच्छा है तो समग्र पृथ्वी के स्वामी बादशाह अकबर के पास जा, वह तेरा पालन करेगा।' मतलब यह है कि कुमारपाल राजा के बाद अकबर बादशाह ने ही दया की विशेष पालना की। N कवि बादशाह को उद्देश कर कहता है;- हे नरेश ! दयापरायणता से जीव मात्र को सुखी करने वाले ऐसे तुमारे प्रतापका दीपक शत्रुओं की स्त्रियों के बहुत कम ऐसे निःश्वास - पवन से प्रेरित हो कर मानों चिरकाल तक ठहर गया। । है। (शत्रुओं के नाश हो जाने पर ही विजय का तेज चिरकाल तक प्रदीप्त रह | सकता है । तथा थोड़े से पवन के सहारे से ही दीपक जल सकता है। ) हे राजेन्द्र ! जहां के शत्रुओं को तुमने देशनिकाल दिया है ऐसे नगरों में ऊगी हुई घास की सुलभता को तुम बढा रहे हो यह जान कर ही, मानों स्पर्धा से, तुम्हारे शत्रु घास को मुंह में डाल डाल कर उस की दुर्लबता बढ़ा रहे हैं ।। मतलब कि, शत्रुओं के शहर उज़ड पडे हैं और उन में खूब घास उग रही है। तथा शत्रु निर्वासित होकर जंगलों में घास खाते फिरते हैं । यदि बुद्धिमती चन्द्रपत्नी रोहिणी ने, पहले ही अपने पति चंद्रमा पर निशानी के लिये, काला दाग न बना देती तो अकबर के उज्जवल यश से इस समय जब सारा ही जगत् । । श्वेत हो रहा है तब, वह अपने पति को कैसे पहचान सकती। M IRMIRMIRMAHAainamaAAAAAAAAAAminemama A 77777 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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