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________________ IMA जा रही थी। बादशाह ने यह देख कर अपने नौकरों से पूछा कि यह कौन हैं - और कहां पर जा रही है ? जवाब में नौकरों ने अर्ज़ की कि यह कोई जैन श्रीमन्त श्राविका' है जिसने छः महिने के कठिन उपवास किये हैं। इन उपवासों ।। में केवल गर्म पानी पीने के सिवा – सो भी दिन ही में - और कोई भी चीज मुंह में नहीं डाली जाती है। आज जैनधर्म का कोई त्यौहार (पर्व) है इस लिये, | यह बाई अपने जैनमंदिर में दर्शन करने के लिये इस उत्सव के साथ जा रही है।।। बादशाह को यह सुन कर आश्चर्य हुआ; परंतु इस बात पर विश्वास नहीं आया। उसने तुरन्त बाई को अपने पास बुलाया और उसकी आकृति तथा वाणी का ध्यान पूर्वक निरीक्षण किया । यद्यपि बाई के तेजस्वी वदन और निर्दोष वचन को देख-सुन कर उसे, उस के विषय में बहुत कुछ सत्य प्रतीत हुआ तथापि पूरी जाँच करने के लिये उस ने बाई को अपने ही किसी एकांत मकान में रहने की आज्ञा दी। साथ में विश्वासु नौकरों को यह सूचना दी गई कि इस की दिनचर्या का बडी सावधानी के साथ अवलोकन किया जाये और यह क्या खाती-पीती है इस की पूरी तलास ली जायें । कोई महिना डेढ महिना इस तरह की जाँच-पडताल करते निकल गया, परंतु उस तपस्विनी की विशुद्ध वृत्ति में किसी प्रकार की दंभ का स्वप्न भी न आया । यह जान कर अकबर के आश्चर्य का पार नहीं रहा । वह उस श्राविका के पास प्रेमपूर्वक जाकर, प्रणाम के साथ बोला कि – 'हे माता ! तू इतना कठिन तप क्यों और कैसे कर सकती है ?" तपस्विनी ने केवल इतना ही उत्तर दिया कि- “महाराज ! यह तप केवल आत्महित के लिये किया जाता है और साक्षात् धर्म की मूर्ति समान महात्मा हीरविजयसूरि जैसे धर्मगुरुओं की सुकृपा का एक मात्र फल है।' बादशाहने अपने अपराध की क्षमा मांग कर अच्छे आदर के साथ उस तपस्विनी श्राविका को अपने स्थान पर पहुँचाया । अकबर बडा सत्यप्रेमी और तत्त्वरसिक था । | इस लिए वह क्या हिंदु और क्या मुसलमान, क्या खीस्ती और क्या पारसी; | सभी धर्मों के ज्ञाताओं को अपने दरबार में बुलाता और उन के धर्म और तत्त्व LAMILITARITAINMINMMITTPUTAMITRAUMARमानामा । । * इस का नाम अन्यान्य प्रबंधों में 'चंपा' लिखा है और शेठ थानसिंह, जो अकबर का मान्य साहुकार था, के घराने में से बताई गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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