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________________ । प्रास्ताविक कथन ।। भारतवर्ष के मुसलमान बादशाहों में अकबर के जैसा प्रजाप्रिय बादशाह और कोई नहीं हुआ। इस महान् मुगल-संम्राट् के राज्य-चातुर्य और । विचार-औदार्य से शिक्षित जगत् सम्यक् तया परिचित है । इस के ऐश्वर्यशाली और प्रतापवान् जीवन का थोडा बहुत परिचय भारत के प्रत्येक विद्यार्थी को । अवश्य कराया जाता है । इसी महान् नृपति के उदार-हृदय-मंदिर में दया-देवी की शाश्वत स्थापना करने के लिये, देवी के परम-उपासक और जैनश्वेताम्बर । संप्रदाय के प्रभावक आचार्य श्रीहीरविजयसूरि के सुप्रतिष्ठित विद्वान् शिष्य श्रीशान्तिचन्द्र उपाध्याय ने, कृपा-करुणा रूप रस-अमृत के कोश-निधि समान । इस 'कृपारसकोश' की रमणीय रचना की है । अकबर के समान श्रीहीरविजयसूरि का भी जीवन, धार्मिक-दृष्टिसे, बडा ऐश्वर्यशाली और तेजोमय | था । विद्वानों का समुदाय सूरिमहाराज के पवित्र चरित्र से भी बहुत कुछ परिचित है-नहीं तो होना चाहिए। बादशाह अकबर के और आचार्य श्रीहीरविजयजी के चरित्र के विषय में अधिक उल्लेखन करने की यहां पर जगह नहीं है, तो भी प्रस्तुत पुस्तक के कृपारस-कोश के साथ संबंध रखने वाले इतिहास का "प्रास्ताविक कथन'' कहे विना पाठकों को इस दया रस के सुंदर सरोवर की मंद और मधुर लहरों का पूर्ण आनन्द नहीं आ सकता; इस लिये, इस शीर्षक नीचे वही लिखा जाता है। जगद्गुरुकाव्य * में लिखा है कि- अकबर बादशाह एक दिन फतहपुर के शाही महल में बैठा हुआ राजमार्ग का निरीक्षण कर रहा था। इतने में एक बडा भारी जुलूस उस की नज़र नीचे हो कर निकला जिसमें एक स्त्री सुन्दर वस्त्र पहने हुए और फलफूलादि के कुछ थाल सामने रक्खे हुए, पालखी में सवार हो कर indianRINimminiuILLLLLLL 74 * यह काव्य, श्रीहीरविजयसूरि अकबर के दरबार से वापस लौट कर जब गुजरात की ओर आ रहे थे, तब उन के आगमन के समाचार को सुन कर पंडित पद्मसागरगणि ने, काठियावाड के मंगलपुर (मांगलोर) में - संवत १६४६ के आस पास - रच कर, सूरिजी को भेंट के रूप में अर्पण किया था। न TMmmRALALP Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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