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________________ जओ - २. दानस्वरूपवर्णनाधिकारे द्रोणाद्याख्यानकम् एवमवरोप्परं पहु पउत्ति संपायण पद्रियहं । अक्कमइ कोइ कालो ता निर्माणह तत्थ जं जायं ॥ ७१ ॥ गंभीरतूरघोस ते पंचनंदिगेहम्मि । सवियक्केणं दासी पट्टचिया तप्पउत्तिकए ॥ ७२ ॥ नाउं समागया सा साहइ जह अज्ज वरणयं जायं । दिन्ना कन्ना कन्न उजवासिवरदत्तसेट्टिस्स ॥ ७३ ॥ जायं वद्धावणयं वज्जिरवरतूरबहिरियदियंतं । गिज्जंतमंगलसरं सिंगारियवालियासत्थं ॥ ७४ ॥ करकलियअक्खवत्तयपविसिरचरनारिनियर रमणीयं । निस्सरिरपवरकुंकुमदिन्नमुहालेवरमणियणं ॥ ७५ ॥ तं सोउं सो पडिओ मुच्छाविहलंघलो धरणिवीढे । सीयलजलेण सित्तों सचेयणो चितए एवं ॥ ७६ ॥ तग्गय ! तयागुरत्तय ! तम्सुक्कंटलय ! तभ्गुणदृहत्त ! | तब्बिरवज्जनिहणिय ! हियय । तए किह विणोइस्सं ? ॥७७॥৷ अच्छीणि ताव तं पेच्छिराइ रोयंतु अहब फुट्ट तु । हियय ! तए किं विहियं जमवत्थं वहसि मरणसमं ? ॥ ७८ ॥ हे हियय ! जइ नसक्का तं मोत्तु ता ममं परिच्चयसु । वारियवामेण तए सद्धि को मज्झ वावारो ? ॥ ७९ ॥ हियय ! निहुयं किलम्ममु निच्चं चिय खिज्जवेसु अत्ताणं । परवसजणाणुलगिर ! बहुयं खु तए सहेयवं ॥ ८० ॥ रे हियय ! किं विसूरसि ? किं तम्मसि ? किं खु भग्ग ! कलमलसि ? | दुल्लहलंभम्मि जणे अणुबंधे एरिसं होइ ॥ ८१ ॥ हा हियय ! निरंतरनेहपेसले माणुसम्मि चोलीणे । कह विसहिसि विरहुप्पन्न दुक्खकरवत्तकप्परणं ? || ८२ ॥ दुक्खेमु जड़ बिराओ जड़ राओ सोक्खजीवियन्वम्मि । तुह हियय ! हियं भणिमो तम्मि जण मुयमु पडिबंधं ॥ ८३॥ इय सो वसंतदेवो झूरंतो जाव चिट्टए तत्थ । एत्थंतरम्मि पत्ता पियंकरा पेसिया तीए ॥ ८४ ॥ सत्थीकाऊ तयं साहइ सा तीए तम्स संदेसं । खिज्जेयव्वं न तए जायं जं वरणयं मज्झ || ८५ || वाणुराय विसरिसमणुचिट्टिस् न नाह ! मरणे वि । किंतु मह चित्तभावं न य जाणइ गुरुयणो जेण ॥ ८६ ॥ वज्जित तुमं भत्ता नन्नो मह होइ इह भवे नाह ! । जइ एयमन्नहा कह वि होइ पविसेभि ता जलणे ॥ ८७ ॥ तं सोउं सो हरिसिय हियओ एवं पयंपिउं लग्गो । एस गई अम्हाण वि भणिऊणं तं विसज्जेह ॥ ८८ ॥ एवं च ताण पइदिणसमागमोवा यदिन्नहिययाण । जा जाइ कोइ कालो ता पत्ता तत्थ जन्नत्ता ॥ ८९ ॥ तत्तो वसंतदेवो वीवाहं सुणित्त दुक्खत्तो । नयराओ नीहरिओ उज्जाणगओ विचिंतेइ ॥ ९० ॥ अन्यथैव विचिन्त्यन्ते पुरुषेण मनोरथाः । देवा [दा] हितसद्भावाः कार्याणां गतयोऽन्यथा ।। ९९ ।। ता पेच्छ केरिसमिणं संजोयं कम्मपरिणइवसेण ? | मह दंसिऊण दइया दइवेणुद्दालिया जेण ॥ ९२ ॥ अवरं च पुचपडिवन्नभावओ तीए जा न अमणुन्नं । आयन्नेमि सयं चिय ता मह् मरणं हवउ सरणं ॥ ९३ ॥ इय चिंतिऊण उबंधिऊण अप्पा असोयसाहाए । जा मुक्को ता भमियं अजसेण समं दिसाचकं ॥ ९४ ॥ लोणजुयलेण समं निमीलियं तम्स सयलभुवणयलं । रुद्धो गलसरणिपहो सद्धिं सिव-सम्गमम्गेण ॥ ९५ ॥ एत्थंतरम्मि मा साहसं ति मा साहसं ति भणिरेण । उल्ललिऊणं केणइ छिन्नो छुरियाए तप्पासो ॥ ९६ ॥ वत्थंचलानिलेणं सत्थीकाउं पयंपए एसो । भद्द ! तए किं विहियं जं जुत्तं विलयवम्गस्स ? ॥ ९७ ॥ अलमेत्थ मह कहाए सुपुरिस ! सप्पुरिसकयविरायाए । गुरुदुक्खजलणजाला कलावकचलणसरूवाए ॥ ९८ ॥ भणियं पुणो वि तेणं जइ एवं भद्द ! तह वि मह कहसु । विनायत स्सरूवो जेण उवायं विचितेमि ॥ ९९ ॥ कहिओ वसंतदेवेण तम्स उवयाररंजियमणेण । सव्वो वि केसराए वृत्ततो भगह तो इयरो ॥ १०० ॥ अन्थि उवाओ तुह जेण होइ निच्चं पि दंसणं तीए । मज्झ अहन्नस्स पुणो न उवाओ दंसणं नेय ॥ १०१ ॥ न परिचयामि पाणे तह वि अहं जेण पावए भद्दं । जीवंतो एत्थ नरो केइया वि जओ इमं भणियं ॥ १०२ ॥ सत्या लोकश्रुतिरियं जीवन् भद्राणि पश्यति । वासुदेवसहायोऽपि यो मृतो मृत एव सः ॥ १०३ ॥ १. संजायइ कम्म० रं० । २. कयाइ वि रं० । Jain Education International For Private Personal Use Only २७ www.jainelibrary.org
SR No.016006
Book TitleAkhyanakmanikosha
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages504
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Story
File Size13 MB
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