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________________ आ. बिश्लेषण तथा निष्कर्ष २०५ ऐतिहासिक हैं। बाद में, शोसूर ने प्रत्येक भाषिक स्थिति में एक स्वयंप्राप्त व्यवस्थित संचरना देखी । फलतः भाषाविज्ञान के दो क्षेत्र स्पष्ट हो गए : ऐतिहासिक तथा संरचनात्मक । इन दोनों के अध्ययन की पद्धतियाँ भी भिन्न होती गई। शोसूर की यह स्थापना भी व्यापक रूप से स्वीकृत हो चुकी है कि परिवर्तन तथा संरचना परस्पर सम्बद्ध एकर्ष भाषाविज्ञान के सिद्धान्तों के परीक्षण के बाह्य मूर्त आधार हो सकते हैं। दूसरी और ऐतिहासिक समाधान प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी भाषाविज्ञान के सिद्धान्तों ने-विशेष कर के वर्तमान सिद्धान्तों ने नहीं उठाई। 2.2 परिवर्तन के सैद्धान्तिक आधार क्या हैं ? भाषिक परिवर्तन नियमित होता है या उसमें वैविध्य पाया जाता है ? एण्टिला ने कहा है कि प्रत्येक अनियमितता के पीछे कोई कारण होता है। कभी कभी तो अनियमितताओं: तथा नियमितताओं का प्रमाण समान होता है। इसके बावजूद ऐतिहासिक भाषाविज्ञानियों को ध्वनिपरिवर्तन की. नियमितता की आधारशिला का ही आश्रय लेना है। पाल किपास्की ने एक प्रश्न यह उठाया है कि पूर्ववर्ती ध्वनिनियम के अनुक्रम में ही क्या नये नियम का स्थान पाना संभव है? जहाँ भी क्रम निर्धारित हो पाया है, ध्वनि-परिवर्तन के अधिकांश नियम अनुपूर्ति के रूप में ही अस्तित्व में आए हैं ? इन नियमों की भूमिका शुद्ध रूप से ध्वन्यात्मक होगी जब कि पूर्ववर्ती काल में अस्तित्व में आ चुके नियम रूपात्मक भूमिका को पहुँच चुके हेांगे। ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के अध्ययन का विस्तार बढ़ा। इसमें गहराई आई इसके साथ ही परिवर्तन की प्रक्रिया बहुआयामी दिखाई देने लगी । इसको समझने का प्रयत्न भी बढ़ा । ___ 2.3 तुलनात्मक तथा आंतरिक पुनर्गठन की पद्धतियाँ भाषिक परिवर्तन के हमारे ज्ञान पर आधारित हैं । परन्तु क्या भाषाओं के इतिहास केवल परिवर्तन के दस्तावेज होते हैं ? जैसा कि विनफ्रेड लेमान कहते हैं परिवर्तित होने के साथ भाषाएँ क्षतिग्रस्त भी होती हैं। Besides changing. languges also under go Loss. क्षति की इस प्रक्रिया को अभी व्यापक रूप से समझने का पुरुषार्थ नहीं हुआ । क्षति या लोप की तरह परिवर्तन के साथ एक और प्रक्रिया देखी जाती है-वृद्धि की। 'धातुकोश' में मूल धातुओं के साथ परवर्ती करूप हई ध्वनियों के शताधिक उदाहरण मिलेंगे। वृद्धि ध्वनि, रूप तथा अर्थगत ही नहीं होती; पूर्णतया शब्दगत भी होती है। विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आया हुआ धातुसमूह इन्हीं घटनाओं का निर्देश . करता है। क्षति की प्रक्रिया का विद्वानों ने अधिक सूक्ष्मता से देखा है। भाषिक सम्बन्धों के क्रम-निर्धारण के लिए शब्दसामग्री में हुई क्षति का कालानुवर्ती अनुपात (रेट) या सुरक्षित शब्दसामग्री का प्रतिशत उपयोग में लिया जाता है। इसे कालानुवर्ती भाषिक परिवर्तन का प्रमाण-ग्लाटोक्रोनोलाजी कहते हैं । ऐतिहासिक हेतुओं के लिए शब्दसमूह के अंकशास्त्रीय अध्ययन की पद्धति का उपयोग होता है। इस व्यापक संज्ञा का शब्दकोशीय सामग्री-संरक्षणशास्त्र---'लेक्सिको स्टेटिस्टिक्स' कहते हैं। लेमान के अनुसार जिन भाषाओं का सम्बन्ध निकट भूतकाल में देखा-परल्या जा सकता है और जो समान सांस्कृतिक विस्तार में बोली जाती हैं उनके विषय में कालानुवर्ती भाषिक परिवर्तन-प्रमाण--'ग्लोटोक्रोनोलोजी' के द्वारा उपयोगी जानकारी प्राप्त हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016001
Book TitleHindi Gujarati Dhatukosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1982
Total Pages246
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationDictionary, Dictionary, & Grammar
File Size15 MB
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