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________________ जैन पत्रकारों की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने धन की अपेक्षा नैतिकता व प्रामाणिकता को महत्व दिया । जो लिखा वह विवेकसंगत, धर्मसंगत व ज्ञानसंगत लिखा और समस्त विश्व को सुमार्ग पर लाने के लिए लिखा । जैन पत्रकारों की यह भी विशेषता होती है कि वह मात्र रोटी-रोजी के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में नहीं पाता । मैं जैन पत्रकार को वक्त की पावश्यकता के रूप में अनुभव करता है। आज न केवल भारत ही अपितु सारा संसार हिंसा, वैर-विद्वेष और घृणा की आग में जल रहा है। वर्णवाद, जातिवाद, क्षेत्रीयवाद और सम्प्रदायवाद के नाम पर मनुष्य को मनुष्य से काटा जा रहा है, सारी मानवजाति नेतृत्वहीन जैसी हो गई है। मानव जो समाज व राष्ट्र का निर्माण करता है, दिशाहीन है । अतः इस विकट स्थिति में सही नेतृत्व देने के लिए त्यागी जैन संतों, जैन विद्वानों और कर्मठ जैन पत्रकारों की जरूरत है। मैं अपने तीस वर्षों के सक्रिय पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर दृढ़तापूर्वक दावा कर सकता हूँ कि हमारे समाज में अनेक ऐसे योग्य व कर्मठ पत्रकार हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न कर सकने में समर्थ है। जैन पत्रकार भली प्रकार जानते हैं कि धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन के इस दौर में धर्म की पवित्रता व प्रतिष्ठा को खतरा उत्पन्न होता जा रहा है। ब्रिटेन और अमरीका आदि पश्चिमी देशों की संस्कृति से वैभव व भौतिक साधन मिले होंगे, परन्तु शांति, प्रेम व सद्भावना के मूल्य पर जैन पत्रकार मानव समाज को दुःख, शोषण व अन्याय से इसलिए मुक्ति दिला सकता है, क्योंकि वह मनुष्यता की खूबसूरती से परिचित है और इसे और अधिक खूबसूरत बनाने की योग्यता रखता है। इसके बावजद वर्तमान जैन पत्र-पत्रिकाएं राष्ट्रीय धारा से अलग-थलग पड़ी दिखाई दे रही हैं। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना में आज के जैन पत्रकार चाहते हुए भी सार्थक भूमिका नहीं निभा रहे हैं। इसके अनेक कारण हैं, परन्तु सबसे मुख्य कारण है अपने ही समाज की उपेक्षा, असहयोग और संकीर्णता । समाज पूर्णतया समर्थ होते हुए भी जैनपत्रकारों को प्रकाशन के समुचित साधन उपलब्ध कराने की दिशा में पूर्णतया उदासीन है । पिछले एक सौ वर्षों में सैकड़ों ऐसे विचारवान व अनुभवी जैन पत्रकार अपने हृदय की सम्पूर्ण उमंग के साथ इस क्षेत्र में पाये लेकिन समाज के संकीर्ण चिन्तन के कारण उन्हें गांठ का पैसा और पत्नी का जेवर लुटा कर हटना पड़ा। उन्हें कितना शारीरिक व मानसिक कष्ट व अपमान सहना पड़ा होगा, इसकी कल्पना कर कई योग्य पत्रकार चाहते हुए भी जैन पत्रकारिता में अपना योगदान नहीं कर पाते । मैं अपने समाज का पूर्ण सम्मान करते हुए विनम्रतापूर्वक निवेदन करना चाहता हूँ कि पं० गोपालदास जी बरैया और पं० नाथलाल जी जैन जैसे मनीषी पत्रकारों को भले ही आज हम कितनी ही ऐतिहासिक प्रतिष्ठा देवें, लेकिन उन्हें तत्कालीन समाज से उतनी सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त हई, जितनी की उन्हें मिलनी चाहिए थी। वर्तमान में जैन विचारधारा के पत्र-पत्रिकाओं से जो पत्रकार जुड़े हुए हैं, मुझे उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता ब प्रतिभा में संदेह नहीं है। मुझे अपने जैन पत्रकारों पर अभिमान है कि वे 59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014037
Book TitleInternational Jain Conference 1985 3rd Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages316
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size12 MB
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