SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज जनतंत्रीय शासन-प्रणाली को सबसे सार्थक शासन व्यवस्था माना जाता है, यह जैन धर्म की ही देन है । जैन परम्परामों में इसका उल्लेख है । भगवान महावीर ने लोगों को सहयोग, प्रेम, अहिंसा और त्याग के रास्ते पर चलने के लिये प्रेरित किया। महावीर व गौतम के संवाद विश्वपत्रकारिता को जैनधर्म की अनपम देन है। पत्रकारिता की दृष्टि से यह विश्व का सबसे पहला व लम्बा साक्षात्कार माना जा सकता है। जैन सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने सबसे पहली राष्ट्रीय स्वतंत्रता, अखण्डता व धार्मिक सहिष्णुता की न केवल कल्पना ही की, अपितु अपने अभियान में सफलता भी प्राप्त की। चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार, पौत्र अशोक द्वारा लगाये गये शिलालेख तत्कालीन इतिहास के अमर स्मारक के रूप में आज भी मौजूद हैं। ये शिलालेख उस यूग के समाचार-पत्र ही माने जाने चाहिए। भारतीय संस्कृति, सभ्यता और इतिहास को समृद्धिशाली बनाने में जैनधर्म का उल्लेखनीय योगदान रहा है। प्राचीनकाल के इतिहास की सही स्थिति हमारे मंदिरों, शिलालेखों, आगमों या ग्रंथों से जानी जा सकती है। लिखने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि हमने संसार को न केवल लिपि या वाणी ही दी, अपितु जनतंत्र, स्वाधीनता, अखण्डता और समन्वयवाद के सिद्धांत भी दिये। जिसकाल में तीर्थंकर की वाणी का उद्घोष होता है, मंदिरों का निर्माण होता है, शिलालेख गाड़े जाते हैं, साहित्य की रचना की जाती है और समाचार-पत्र का प्रकाशन होता है, उसीसे उस समय के जीवन की झलक देखने में सहायता मिलती है। आज जिस रूप में भारत जीवित है, उसे जीवित रखने के लिए हमारे पूर्वजों को न केवल अथक प्रयास करने पड़े हैं, अपितु अनेक बलिदान भी देने पड़े हैं। हाल के वर्षों में देश पर अंग्रेजों का आधिपत्य था और पाश्चात्य संस्कृति के विरुद्ध जबरदस्त मुहिम चल रही थी, हमारे तत्कालीन जैन विद्वान व पत्रकार अपने-अपने तरीके से अग्रणी भूमिका निभा रहे थे। "जैन बोधक" पत्र का लगभग एक सौ वर्ष पूर्व प्रकाशन प्रारम्भ हुअा था, जो आज तक जारी है, इसने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में आदर्श भूमिका निभाई है। इसी प्रकार उन्हीं दिनों बाबू ज्ञानचन्द जी जैन लाहौर से "जैन पत्रिका" का प्रकाशन करते थे। वे साहसी व निर्भीक पत्रकार थे और समाज सुधार का अखण्ड यज्ञ चला रहे थे । भावनगर से श्वे. मूर्तिपूजक पत्र "जैनधर्म प्रकाश" प्रकाशित होता था, अहमदाबाद से एक स्थानकवासी विद्वान पत्रकार श्री बाड़ीलाल मोतीलाल शाह "जैन हितुच्छु" पत्र प्रकाशित करते थे। दिल्ली से "जैन गजट" का प्रकाशन होता था। "जैन मित्र" भी हमारा पुराना प्रतिष्ठित समाचार पत्र है, जिसके सम्पादक पद पर पं० गोपालदासजी बरया, पं० नाथूलाल जी प्रेमी व श्री मूलचन्द किशनदास कापड़िया जैसे तपोनिष्ठ पत्रकार रहे हैं । स्वदेशी आन्दोलन के समर्थक होने के कारण इन सभी पत्रकारों को कितनी विकट मुसीबतों का सामना करना पड़ा होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है । "जैन बोधक" के सम्पादक वयोवृद्ध एवं वरिष्ठ जैन पत्रकार माननीय श्री जी. के. पाटील इसी गौरवशाली परम्परा के प्रतीक के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं। 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014037
Book TitleInternational Jain Conference 1985 3rd Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages316
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy