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________________ जैनदर्शन में मृत्यु विषयक अवधारणा डॉ० श्रीमती शान्ता भानावत संसार में जो मनुष्य जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। जन्म के साथ मृत्यु और मृत्यु के साथ जन्म का अनादि सम्बन्ध है, ठीक वैसे ही जैसे प्रकृति में प्रातःकाल के बाद संध्या का प्रागमन । संसार में सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। प्रश्न यह उठता है कि जीवन और मृत्यु आखिर हैं क्या ? उत्तर है-आयुष्य पूरी होने पर आत्मा का शरीर से अलग होना अथवा शरीर से प्राणों का निकलना मरण कहलाता है और पुन: नई स्फूर्ति प्राप्त करना जीवन । जीवन और मरण का यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि प्रात्मा समस्त कर्मों के बंधन से मुक्त नहीं हो जाती । मुक्ति रूपी मंजिल को प्राप्त करने की यात्रा में जीवन-मरण पड़ाव के रूप में हैं । जिस प्रकार यात्री निरन्तर चलने के बाद तद्जन्य थकान को मिटाने के लिए सराय प्रादि में रात्रिकालीन विश्राम करता है, उसी प्रकार की स्थिति मृत्यु की है। मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है । वह जीवन को नई स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करने वाली प्रक्रिया है। जिस प्रकार रात्रिकालीन विश्राम करने के बाद जब पथिक प्रातःकाल अपनी यात्रा प्रारम्भ करता है तब उसको विशेष प्रकार की ताजगी और स्फूति परिलक्षित होती है, यही स्थिति मृत्यु के बाद पुन: जीवन धारण करने की है। । मृत्यु जीवन का चिरंतन सत्य है उसका वरण हमें एक न एक दिन करना ही होगा तो फिर हम उससे क्यों तो हरें और क्यों घबरायें ? जिन्होंने जीवन-दर्शन को समझा है उन्हें सुखद लगता है। प्राणिशास्त्री विलियम हण्टर ने मरने से पूर्व मन्द मन्द स्वर में कहा था-यदि मुझ में लिखने की ताकत होती तो विस्तार से लिखता कि मृत्यु कितनी सरल और सुखद होती है । मृत्यु के समय मनुष्य कसा अनुभव करता है ? उसको कितनी पीड़ा या कष्ट का अनुभव होता है या वह मृत्यु के बाद किस प्रकार का जीवन प्राप्त करेगा ? इन सबके लिये सम्बद्ध व्यक्ति की मृत्यु के समय की मानसिक स्थिति और भावना उत्तरदायी है। (1) यदि मृत्यु के समय व्यक्ति की प्रात्मा क्रोध, मान, माया, लोभादि कषायों से घिरी हुई, तनावपूर्ण स्थिति में रहती है, तो 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014037
Book TitleInternational Jain Conference 1985 3rd Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages316
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size12 MB
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