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________________ महावीर के उपदेशों को ..... प्राशु कवि : शर्मनलाल “सरस" सकरार (झाँसी) महावीर के उपदेशों को, अगर विश्व फिर से अपनाये, सत्व अहिंसा की भाषा को, फिर से नई उमर मिल जाये। जब करूणा रवि अस्त हो गया, छाई थी हिंसा की राका खंड खंड हो रहा धर्म था, फहरी थी पाखंड पताका अट्टहास कर रही क्रूरता, जन स्नेह पाने को तरसे त्रिशलानंदन महावीर तब, करूणा के बादल वन वर्षे हिंसा के सिंहासन पर, फिर छवि अहिंसा की बिठला दी . भौतिकता पर एक बार फिर विजय प्रात्मा को दिखलादी कठिन नहीं है अगर प्रादमी, दृढ़ होकर कदम बढ़ाये सत्य अहिंसा की भाषा को, फिर से नई उमर मिल जाये। सोच रहा अव भो मेरा कवि, सचमुच थी वह घड़ी निराली मधुवन का भी पता न चलता, अगर रोक लेती वैशाली बन्धु ! अगर माँ के आँसू पर, वीर कहीं पानी हो जाते ? राज महल के सेजों पर, जो महावीर सोचो सो जाते तो-हम तुम जो बात कर रहे, सचमुच इतने पास न होते सत्य अहिंसा मानवता के जीवित फिर इतिहास न होते हिंसा ने इतनी चतुराई से, अपने पर फैलाये ____ सत्य अहिंसा की भाषा को, फिर से नई उमर मिल जाये। द्वार द्वार पर दुराचार ने, अब वैसा फिर डाला डेरा हिंसा के तम गमके द्वारा, अस्त हो रहा सत्य सवेरा सयंम का स्वर है समाप्त, अब जला रही ज्वाला की भाषा रण की भूख बढ़ रही भू पर, भाई है भाई का प्यासा औरों से कहने के पहले, अपना फर्ज निभाना होगा अगर बदलना है यह सब, तो खुद ही कदम बढ़ाना होगा भला नहीं सुबह का भूला, अगर शाम को 'सरस' दिखाये। सत्य अहिंसा की भाषा को फिर से नई उमर मिल जाये। 1/33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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