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________________ हमें डाल दिया; हमें ईश्वर बनना सदैव को शेष रह गया। वह ईश्वरजो अपने ईश्वरवय के लिये भक्तों का मोहताज है भक्तों के नास्तिक होने में जिसका ईश्वरत्व खतरे में हैं। महावीर न भक्त बने न ईश्वरवे तो शुद्ध 'स्व' हो गये पर से निरपेक्ष पूर्ण 'स्व' अन्तिम सत्य-स्व। महावीर की आलोचना संभव नहीं क्योंकि शुद्धि का नाम महावीर है और शुद्धि में अशुद्धि का अभाव है। आप भूगोल, इतिहास क्रियाकाण्ड और व्यवहारिक परंपराओं की पालोचना कर सकते है संशोधन कर सकते हैंपर वे महावीर नहीं है, उन्हें पकड़ना महावीर को पकड़ना नहीं हैं उनकी आलोचना को महावीर की मालोचना मानना भूल है। इससे महावीर छोटे नहीं होते। महावीर को कोई न भी माने तो महावीर छोटे नहीं होते। जिसे ततः किम् ततः किम् की जिज्ञासा उत्पन्न हुई है, जो संसार से पार विकार से मुक्त होना चाहता है वह युग की बात नहीं करता समूह को नहीं नापता; उसे वस्तु स्वरूप को कालिकता में उसकी वस्तु परखता में श्रद्धा होती हैवह जानता है कि वस्तु स्वरूप मनुष्यों के विचारों की उपज नहीं है वह उनके समर्थन से मजबूत और कमजोर नहीं होता वह तो वस्तु में गहरा जुड़ा हुमा वस्तु से अभेद्य हैं। अतः वस्तु स्वरूप की बात में युग की, समूह की बात करना will की कमजोरी है श्रद्धा का कच्चापन है। (छ) महावीर को समझना महावीर होना है। महावीर को मानने वाले बहुत कम लोग हैं- - महावीर होना नहीं चाहते डरते हैं। 1/20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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