SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्मति की खिरती वाणी में भरा विश्व का सार है . कल्याणकुमार जैन 'शशि' - जिनके लिए भटकता फिरता, प्राणी मारा मारा हमने कैद कर रखा है, अपने अन्दर उजियारा घोर अंधेरों के घेरों ने, हमको घेर रखा है अपने प्रात्म तेज को हमने, स्वयम् नहीं परखा है बाहर नागफनी है, अन्दर वृक्ष फलदार है सन्मति की खिरती वाणी में, भरा यही भण्डार है हम निष्ठुर बन किसी दीन को, यदि पीड़ा देते हैं तो यह 'ब्याजू-ऋण' अपने खाते में लिख लेते हैं यदपि दीन-दुखिया-निराश को, सुख पहुंचा पाते हैं तो भविष्य की झोली में, बाँटा-सुख भर लेते हैं प्रात्म शक्ति के क्रय-विक्रय का यही बड़ा बाजार है सन्मति की खिरती वारणी का, यही अनोखा सार है प्राणी, जिस सहयोगी को, बाहर कर रहा तलाश है बाहर क्या रक्खा है, घर में ढूंढ 'स्वयम्' के पास है निज का निग्रह ही, आत्मा का अरूणोदयी प्रकाश है नर से नारायण बनने का, यह प्रारम्भ-प्रयास है खुला हुमा अन्तत्मिा में, लक्ष्य प्राप्ति का द्वार है सम्मति की खिरती वाणी में, बड़ा विलक्षण-सार है अपनी अनमोलो-निधियों को, हम पहिचान न पाये नर्क, निगोद, तिर्यञ्च, भ्रमण के दुख सर्वत्र उठाये आज फिर महा पुण्योदय से, मनुज-यौन में पाये यह मानव-पर्याय कठिन है, फिर न अकारथ जाये मनुज देह ही मोक्ष गमन का एक मात्र प्राधार है सन्मति की खिरती बाणी का आत्म धर्म उपहार है बाजार नसरूल्ला खाँ, रामपुर (उ० प्र०) 1/1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy