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________________ नहीं तोड़ रहे ? शहरों की बात छोड़िये, दूर दराज के गांवों में जहां से जैन परिवार तो आगये और वहां के सेवकों ने उन मन्दिरों को अपना घर बना लिया । मूर्तियां उठाकर कहीं जलाशयों में फेंक दी गई या कहीं बेच दी गई, पर हमारी नींद नहीं खुल रही है । हमें अपनी इस व्यवस्था पद्धति पर नये सिरे से विचार करना होगा। मन्दिर जी में से आवासीय व्यवस्था समाप्त करनी होगी, बिना इसे Jain Education International समाप्त किए समस्या का कोई हल नहीं निकल सकता। दिन और रात के लिए निश्चित सेवा नियमों के अन्तर्गत हमें अलग अलग सेवक रखने होंगे । मन्दिरों के अलावा और संस्थानों में भी तो ऐसी व्यवस्था है । अन्त में कहना सही है कि हम समय रहते चेतें और मन्दिरों की पवित्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए कोई कदम उठायें । 515 बोरड़ी का रास्ता, जयपुर - 3 "ए नश्वर मनुष्यों ! अपने शरीर को घृणित आहार से अपवित्र करना बन्द करो । उदार पृथ्वी माता विविध भाँति की विपुल खाद्य सामग्री देती है तथा रक्तपात के बिना मधुर एवं शक्तिप्रद भोजन देती है । ..." तुम मांस छोड़ दो । मांसाहार के दोषों पर ध्यान दो । 4/8 For Private & Personal Use Only पाइथो गोरस www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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