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________________ मर्मान्तक वेदना से हार नहीं मानी। वे चल पड़े समस्या थी। उसमें भी लाखों का खर्च था । वे दक्षिण की ओर । कर्नाटक प्रदेश में कौंकल के यह भी चाहते थे कि प्रतिष्ठा के दिन जन हित निकट मंगलपादे नामक पहाड़ी से दूसरा उपयुक्त का कोई ऐसा काम भी किया जाय जिससे लाखों शिला-खण्ड मिल गया । वही सुप्रसिद्ध शिल्पी अभावग्रस्त लोग लाभान्वित हों। गति न्यारी सेठजी श्रीरेंजाल गोपाल रोण की देख रेख में मूर्ति का की नृशंस हत्या । निर्माण पुनः प्रारम्भ हो गया। लगभग डेढ़ वर्ष में परन्तु कर्मन की वह शुभ दिन वे देख ही नहीं ३५ कुशल कारीगरों द्वारा वह पूरी हुयी। इस पाये । १२-१३ जनवरी १९७६ की काली रात्रि में निर्माण कार्य के लिए दो लाख रुपये न्यौछावर के उस श्रावक-शिरोमणि उत्तर भारत के चामुण्डराय रूप में दिये गये। एवं ग्लास किंग ऑफ इन्डिया की निर्मम हत्या हो गई । सारा नगर विलखता रह गया। मूर्ति जब बन गई और उस विराट कार्य का एक भाग पूरा हुआ तब दूसरी महती समस्या थी सेठजी की विरासत-सेठजी अपनी विरासत उसे कार्कल से फिरोजाबाद लाने की। लगभग में बहुत कुछ छोड़ गये हैं। विशाल चल अनल साढ़े तीन हजार मन भारी ४५ फुट लम्बी इस सम्पति, अनेक जनोपयोगी संस्थाये और लोक विशाल मूर्ति को २५०० कि. मी. की लम्बी यात्रा कल्याणकारी भावनायें। उत्तराधिकारी के रूप में कराकर सुरक्षित ले आना कोई खेल नहीं था। छोड़ गये हैं । विमल कुमार जैसे योग्य होनहार बड़े ही जोखिम और श्रम साहस का काम था वह । व्यक्तित्व को प्राशा हैं वे उनकी कीति को सरसेठजी की सूझ बूझ और उनके पुण्य प्रताप से वह सब्ज और अक्षुण्ण बनाये रखेंगे। बिमल बाबू काम भी पूरा हुआ और १२ जून सन् १९७५ को उस अथाह शोक से सम्हलते ही इस विराट जटिल मूर्ति फिरोजाबाद सही सलामत ले पाई गई, जहां काम में लग गये। उनके अथक परिश्रम से २ मई उसका अभूतपूर्व ऐतिहासिक स्वागत हपा। रेल १६७६ को वह मूर्ति निर्धारित वेदिका पर भाड़े के रूप में ही दो लाख दस हजार रुपए खर्च सुरक्षित खड़ी करदी गई। इस कार्य पर भी कई हुए जबकि रेलमंत्री श्री कमलापतिजी त्रिपाठी लाख रुपए खर्च हुए हैं। केवल मूर्ति को खड़ा ने भाड़े में ४०% की छूट देने की कृपा करदी थी। करने का ठेका ही बंबई की एक प्रसिद्ध फर्म को सड़क मार्ग के किराये, स्वागत और रख रखाव रख रखाव दो लाख रुपयों में दिया गया। उसे खड़ा करने के आदि पर ढाई तीन लाख रुपए और व्यय हए। लिए जो भीमकाय ढाँचा बनाया गया उसी में इसे कार्कल से मेंगलोर तक और हिरनगांव से कान्सट्रेक्शन के अनुसार २५ लाख रुपये लग गये। फिरोजाबाद तक लाने के लिए १३० टन वजन उसके लेजाने का खर्च अलग। उस दिन सेठजी तक ४५"४१३" के आकार की ६४ पहियों की का सुखद स्वप्न भी साकार होगया। अब केवल एक विशेष विशाल ट्राली तैयार कराई गई जिसे मूर्ति की प्रतिष्ठा शेष रह गई है। आशा है वह २५०-२५० हार्स पावर के चार ट्रकों ने मिलकर भी हो जायेगी । खींचा था। उस घड़ी सेठजी की प्रसन्नता का पारा- . सेठजी का पार्थिव शरीर भले ही नहीं रहा, वार न था। अब वे उसे यथास्थान खड़ी कराने और परन्तु उनकी कीर्ति अमर होगई । उनके पुण्य-पौरुष तत्पश्चात् उसे प्रतिष्ठित कराने की योजना पर ने उनकी क्रीड़ा और कर्मस्थली फिरोजाबाद को विचार करने लगे। इस विशाल मूर्ति को सही- भारत के नवोदित प्रमुख जैन केन्द्र के रूप में सदा सलामत खड़ा करादेना तीसरी महान् जटिल सदाके लिए प्रतिष्ठापित कर दिया है, धन्य थे वे । 415 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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