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________________ कटोरी,42 मीट्टी के कलश43 प्रादि का प्रयोग भी प्रचलित था। राजा सुकेतु जुए में देश, धन, बल, प्रचलित था। रानी सब कुछ हार गये थे ।56 राजा रानियां भी आमोद-प्रमोद--इस समय प्रामोद-प्रमोद के परस्पर द्यूत-क्रीड़ा करती थी। अनेक साधन प्रचलित थे। राजाओं की विलासिता शिक्षा एवं साहित्य-समकालीन भारत में ने विभिन्न कलानों को जन्म दिया। राजानों के शिक्षा और साहित्य के सम्बन्ध में निम्न जानकारी मनोरंजन के मुख्य साधन मृगया, जल विहार,45 प्राप्त होती हैसंगीत-नृत्य,48 साहित्यिक गोष्ठियां, द्यूत क्रीडा47 (i) ब्राह्मणों की शिक्षा-दीक्षा प्राचीन पाश्रम आदि थे । पुराणकार ने उस समय के प्रचलित पद्धति पर निर्भर थी। परन्तु प्राश्रमों का कोई जल विहारों का सुन्दर वर्णन किया है । उल्लेख नहीं है । विद्यार्थी गुरु के घर पर ही शिक्षा सामन्त लोग अपने मनोरंजन के लिए पानी ग्रहण करते थे । कुछ स्थानों पर कन्याओं के लिए की भांति धन व्यय करते थे। उनके स्नान कुण्डों घर पर शिक्षा करने के उल्लेख भी हैं। श्रति, की भितियों तथा स्तंभों को रत्नादि से अलंकृत स्मृति, वेद, कथा, व्याकरण और ज्योतिष आदि किया जाता था। राजा वज्रायुध अपनी रानियों की पारम्परिक शिक्षा शिष्यों को प्रदान की के साथ सुदर्शन सरोवर में जलक्रीड़ा किया जाती थी। करते थे ।48 ___ (2) जैन-बालकों की शिक्षा गुरुत्रों के घर पर ___ राजदरबारों में कलाकार नर्तकियां, कवि, जैन साहित्य में होती थी। परन्तु व्याकरण, चित्रकार, संगीतज्ञ तथा विदुषक रहते थे । किसी- निघण्टू, काव्य, छन्द तथा दर्शन एवं तर्कशास्त्र किसी राजा को शिकार का भी शौक होता था। की शिक्षा सबके लिए समान रूप से प्रचलित थी। वे शिकार सामान्यतः धनुष वाण से किया करते बड़े घरानों के युवकों को हस्तिशिक्षा, अश्वशिक्षा, थे।49 युद्ध-कलादि विद्याओं का अभ्यास कराया जाता था। उस काल में संगीत प्राज की भांति विकसित (3) धनवान, कुलीन घरानों में कन्याओं को था । नगरों में संगीत शालाएं होती थीं। संगीत भी शिक्षा दी जाती थीं और सामान्य शिक्षा के शालाओं में नृत्य-गान होते थे 150 स्त्रियों को नृत्य अतिरिक्त उन्हें वाद्य-वादन, गायन, नृत्य की भी की शिक्षा दी जाती थी।51 मन्दिरों में नर्तकियां शिक्षा प्रदान की जाती थी। होती थी। नाट्य शालाओं में नाटक हुआ करते धार्मिक स्थिति-वस्तुतः इस युग में तीन थे । वाद्य प्रतियोगिताएं भी होती थी।52 उस मुख्य धर्म थे-ब्राह्मण, जैन तथा वौद्ध । इनमें समय के वाद्य यन्त्रों में नंगाड़े,58 चार प्रकार की ब्राह्मण तथा जैन दक्षिण भू-भाग में विशेष महत्त्व वीणा, तम्बू, तन्त्री एवं तुम्बा,54 मृदंग विशेष के थे। राज्य की ओर से सभी धर्मों को अपना रूप से प्रचलित थे। स्वाभाविक विकास करने की स्वतन्त्रता थी । उनके शतरंज तथा चौपड़ के खेलों द्वारा भी लोगों अपने अपने मन्दिर थे। साधू-महात्मा स्वतन्त्रता से का बड़ा मनो-विनोद होता था। घृत-क्रीडा भी घूम-घूम कर अपने मतों तथा सिद्धान्तों का प्रचार प्रचलित थी परन्तु यह केवल समृद्ध लोगों में ही किया करते थे। ( 3/42 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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