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________________ के समय में हजारों जैन मन्दिर व मूर्तियाँ भष्ट करते ही हैं । जिस प्रकार अन्य लोगों के किसी करदी गई । जैन साधु जीतेजी घाणी में पिलवा कार्य में सफलता मिलती और किसी में असफलता दिये गये, वर्तमान समय में कलकत्ता में जैन मुनि मिलती है इसी प्रकार मनोतियां करने वालों को पर उपसर्ग पाया, पुरलिया काण्ड भी हमा, यदा- भी किसी मनोती में सफलता और किसी मनोती कदा अरहंत भगवान की प्रतिमानों की चोरियां में असफलता मिलती है। यदि, देवी देवता वास्तहोती रहती हैं कि जिनके रक्षक वे शासन देव . विक हैं वमूर्तियां चमत्कार पूर्ण हैं तो मनोतियां माने जाते हैं परन्तु कभी किसी शासन देव या देवी करने वालों को, अन्य लोगों के समान अपनी बुद्धि ने पाकर संकट दूर नहीं किया। इससे सिद्ध है का उपयोग व प्रयत्न किये बिना ही तथा जो-जो कि शासन देवों की मान्यता मिथ्या है, धर्म व भी मनोतियां की हैं उन सभी में उन्हें सफलता धर्मात्माओं की रक्षक पद्मावती, क्षेत्रपाल या कोई मिलनी चाहिए । परन्तु ऐसा होता नहीं, मनोती भी और शक्ति नहीं है । शासन देव पूजा तो करने वालों को भी बुद्धि का उपयोग व प्रयत्न मध्यकाल में, भट्टारकों द्वारा चालू की गई थी। करना ही पड़ता है और अशुभ कर्म का उदय होने तेरहवीं शताब्दी से पहले नहीं थी। भट्टारकों ने पर उनकी कई मनोतियां असफल भी होती हैं। हिन्दू देवी देवताओं की नकल पर जैन शास्त्रों में किसी भी देवता या अरहंत प्रतिमा का ऐसा कोई शासन देवों की कल्पना कर उनकी पूजा का विधान भी भक्त नहीं है कि जिसकी सभी मनोतियां पूरी कर दिया कि अरहंत भगवान तो किसी को कछ हो जाती हों। इसीलिए लोग परहंत प्रतिमा को देते नही, परन्तु शासन देव तुम्हारी सब कामनाएं छोड़कर जैन देवताओं की मनोती करने लग जाते पूरी कर देंगे। हैं और उन्हे भी छोड़कर जैनेतर देवताओं की मनोतियां कैसे परी होती हैं-यहां यह प्रश्न मनोती करने लग जाते हैं । परन्तु क्या प्रजन पैदा होता है कि यदि शासन देवों का अस्तित्व ही देवताओं के भक्तों की भी सभी मनोतियां पूरी हो नहीं है, तीर्थंकर प्रतिमाओं में भी अतिशय या जाती है ? नहीं होती। देश के चुनावों के समय चमत्कार नहीं है तो उनकी मनोतियां करने से हम देखते हैं कि कई उम्मीदवार विद्यवासिनी देवी. लोगों की कामनाएं कैसे पूरी हो जाती हैं, अन्य वैष्णव देवी, तिरुपति आदि की मनोतियां करते हैं धर्म वाले देवतायो की मनोतियां भी कैसे पूरी हो फिर भी चुनाव में हार जाते हैं । इस प्रकार देवीजाती है ? इसका उत्तर है कि जो लोग इनकी देवताओं या तीर्थकर प्रतिमा की भी मनोती करने मनोतियां नही करते, क्या उनके काम सिद्ध नही से सांसारिक कामनाएं पूरी होती हैं यह सर्वथा होते ? मनोतियां करने वालों में भी किसी के देवता मिथ्या मान्यता है। अतः जैसाकि प्राचार्य अमित हिन्द हैं, किसी के जैन हैं, कोई पीरजी की मनोती गति ने कहा है "पहले जैसे कर्म स्वयं तुने किये हैं करता है, कोई किसी कब्र की करता है । हिन्दू उनका अच्छा या बुरा फल भोगना ही पड़ेगा।" हता है कि देवता मेरे ही वास्तविक है और सब "इस देहधारी के स्वयं द्वारा किये कर्मों के अतिकल्पित । इसी प्रकार और भी अपने अलावा रिक्त और कोई दूसरा कुछ नही दे सकता।" यह दूसरों के देवताओं को कल्पित कहते हैं, तो सबकी आवश्यक है कि प्ररहंत भगवान की उपासना से ही मनोतियां कैसे पूरी हो जाती हैं ? वास्तविकता इष्ट वियोग अनिष्ट संयोग जनित सब दुःखों को यह है कि मनोतियां न करने वालों की तरह समता भाव पूर्वक सहने की शक्ति मिलती है, मनोतियां करने वाले लोग भी अपनी-अपनी बुद्धि वे दुःख ही नहीं प्रतीत होते । का उपयोग करके कार्य सिद्धि के लिए पूरा प्रयत्न 2/33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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