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________________ प्राग्रह से मिलती भी है तो उसका दुरुपयोग मत उपक्रम न करें तो मुद्रा स्फीति रुकेगी और देश करो (जैसा आज कल हो रहा है)। उससे सबको का आर्थिक संकट दूर होगा । पैतृक और पत्निकुल समान रूप से सामाजिक न्याय दो और होने वाली की सम्पत्ति पर कुदृष्टि न रक्खें और उसे प्राप्त उपलब्धियों को सर्व सुलभ करो। अपने ज्ञान गुण करने के लिए छलबल न करें । अपने ही परिश्रम से से जनमानस की सेवा करो। सम्पत्ति प्राप्त हो तो नैतिक आधार पर हुई कमाई पर ही सन्तोष कर उससे प्रभाव तथा लोगों के दारिद्रय को दूर करो। तो गार्ह स्थिक कलह और कटुता भी निःशेष होगी। (जैसा महावीर ने राजकुमार काल में स्वयं किया) औरों की बातों को हम शान्ति से सुनें, उनके दृष्टियदि सामाजिक न्याय सबको समान रूप से कोण को सापेक्ष बुद्धि से समझने का प्रयास करें सुगम और सुलभ होने लगे तो लोग गलत और और दुराग्रह छोड़ उनमें निहित सच्चाई को भ्रष्ट तरीकों को स्वयं ही छोड़ देंगे। स्वीकार करें तो वैचारिक सहिष्णुता जागृत होगी और स्नेह-सौहार्द का मृदुल वातावरण बनेगा। आज भी कारगर-महावीर द्वारा उपदिष्ट यह सर्वोदयी जीवन दर्शन आज भी कारगर है और २५०० वां निर्वाण वर्ष-उन्हीं वीर प्रभु आगे भी रहेगा। अपने को जैनी न कहाने वाला का जिन्होंने मानव को यह अमोघ जीवन दृष्टि दी भी उसे स्वीकारता है। यही तो एक सर्वज्ञ की हमने १३ नवम्बर, सन् १९७४ से ८ नवम्बर, सन् विशेषता है जिसकी ज्ञान दृष्टि में तीनों लोक और १९७५ तक २५०० वाँ निर्वाण वर्ष मनाया देश में तीनों काल झलकते हैं । यदि हम अहिंसा का सञ्चा भी और विदेशों में भी। उसमें हमें शासन का भी स्वरूप समझलें, अपरिग्रहवाद पर चलकर धन-धरा सहयोग मिला । हमने इस वर्ष साहित्य-स्मारिका और सम्पत्ति संग्रह के मोह को त्याग दें और इस प्रकाशन, निर्माण कार्य, सभा-गोष्ठियां, धर्मचक्र शाश्वत सत्य को स्वीकार करते हए कि हमारे यात्राएं और जलसों आदि के अनेक कार्यक्रम अलावा इस जग में अन्यों की भी सत्ता है और उन्हें चलाये । प्रचार कार्य भी बहुविध हुया । कुछ भी हमारी तरह जीने का अधिकार है. उनकी भूख दूरगामी अभूतपूर्व कार्य भी हुए जैसे चारों मान्यऔर पीड़ा को हम अपनी ही भूख और पीड़ा मानें ताओं के सन्तों का एक ही मंच पर एक साथ तो पारस्परिक प्रेम, सद्भाव और सहानुभूति उत्पन्न विराजकर धर्मोपदेश देना, प्राचार्य विनोबा भावे होंगे । यदि हम अपने स्वार्थवश, अकाल, महामारी, की सतत् प्रेरणा से सर्वमान्य सिद्धान्त ग्रन्थ 'समरण भुखमरी, सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं । सुत्त' की रचना, विद्वानों के सम्मान की परम्परा से जनित मानव मुसीबतों से न खेलें और काला- तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों में जैन पीठों की बाजारी, जमाखोरी और कम नाप-तोल जैसी स्थापना । एक बहुत बड़ा काम यह भी हुआ कि घृणित और अमानवीय कार्य कर अनुचित लाभ अजैन जगत् महावीर और उसके उपदेशों की ओर उठाने की कुचेष्टा न करें तो अनाज तथा अन्य आकृष्ट हुआ। वह उससे प्रभावित ही नहीं हुआ जीवनोपयोगी, आवश्यक वस्तुओं का कृत्रिम अभाव बल्कि उसमें सार्वभौमिक मौलिक निखार नहीं हो पायगा और महंगाई को भी बढ़ावा नहीं भी लाया। मिलेगा । वस्तुएँ सर्व सुलभ होने से वर्तमान असन्तोष घटेगा । तस्करी, करचोरी, गलत हिसाब किताब, साहित्य और स्मारक निर्माण आदि तो हमने रिश्वतखोरी तथा कर्तव्य पालन में शिथिलता और पैसे के बल पर खूब किये परन्तु देखना यह है कि कामचोरी जैसे कुकृत्य कर मालामाल बनने का हमने महावीर द्वारा सौंपी गई निधि का अपने प्रात्म महावीर जयन्ती स्मारिका 76/ 1-47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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