SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाग्य विधाता, वीर नहीं महावीर हो गये, + + चौतरफा से पुनः गरजने लगे वहीं हिंसा के बादल, उमड़,-उमड़ कर, घुमड़-घुमड़ कर, डरा रहे हैं सारे जग को, और आपकी सत्य अहिंसा की छतरी में विद्वानों ने छेद कर दिये, हर प्रांखों में फिर से, सावन झांक रहा है, धधक-धधक कर, भमक-भमक कर, अणु-शक्ति से प्रज्वलित फिर से यज्ञ हो गये, कोई नहीं है आज विश्व में सुनने वाला, समझदार 'काका' भी जब बे पीर हो गये, इसीलिये तो आज विश्व की नजरों में तुम, शांति प्रदाता, भाग्य विधाता, वीर नहीं महावीर हो गये। "जैसे तुझे दुःख अच्छा नहीं लगता वैसे ही संसार के अन्य प्राणियों को भी अच्छा नहीं लगता, यह समझ कर सब प्राणियों पर प्रात्मवत् आदर एवं उपयोग-पूर्वक दया करो।" -भगवान् महावीर 1-32 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy