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________________ त्राता महावीर . श्री अनोखीलाल अजमेरा, इन्दौर ओ, विद्रोही, महावीर, उन सब विलासिता के वैभव को, न रोक सका, तुमको जग सारा, तुमने था तृणवत ठुकराया । चल पड़े त्रसित मानव को देने, पर परिग्रह परिजन, को तज, सत्य अहिंसा का नारा । भेष दिगम्बर व्रत को धारा । भूले भटके, फिरते थे जो, सुख के आडम्बर तो क्या, हिंसा का कर झूठा प्रदर्शन । उपसर्ग अनेकों कष्ट उठाये । मिथ्या दर्शन से भरा ज्ञान था, पर किसकी सामर्थ जो तुमको, अहं भाव का था वह दर्शन । दृढ़ निश्चय से दूर हटाये । घटा टोप हिंसा का नर्तन, करुणा दया, क्षमा, सत्य का, न देख सके वैशाली नन्दन । तुमने था शृगार बनाया । हृदय पसीजा तोड दिये सब, निकल पड़े जिस वसुधा पर, राग द्वेष के झूठे बंधन । उस भूमि को था तीर्थ बनाया। राज, महल न रोक सके, आदि पुरुष से अन्त वीर ने, __ न रोक सकी माता की ममता, अहिंसा का वरदान दिया था। गर्भ गृह आते ही जिनके, उसी अनोखी याद लिये, की नभ से रेत्नों की वर्षा । ___ गांधी ने संकल्प किया था। जन्मोत्सव पर हर्षित हो सुर ने, सहस बरस तो क्या बीते, पांडुक शिल पर अभिषेक किया था। युग न भूल सकेगा नाता । इन्द्रादिक, देवों ने मिलकर, त्राता तुम तो मुक्त हुये । सेवा का संकल्प किया था । पर तुम को जगत है शीस नमाता । 1-24 माहवीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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