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________________ भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट पांच महाव्रत और योग दर्शन के प्रवर्तक महाव पतञ्जलि के बताए पांच यम न केवल नाम और संख्या में साम्य रखते हैं अपितु दोनों का क्रम भी एक ही है। आध्यात्म विद्या का ही प्रपर नाम उपनिषद् विद्या है और उसका ज्ञानी और धारी महायोगी कहलाता है । भगवान् महावीर ऐसे ही महायोगी थे । कैसे ? इसका तुलनात्मक विवेचन पाठकों को प्राप्त होगा प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् की इन पंक्तियों में । इसी कारण भ० महावीर केवल जैनों के ही न होकर प्राणिमात्र के थे । उनका 'औपनिषदिक महायोगी' विशेषण सार्थक ही है । यह एक अद्भुत संयोग ही कहा जायगा कि ईसा पूर्व की छठी शताब्दी विश्व के अनेक देशों में एक सर्वथा नवीन क्रांति की भावभूमि लेकर आई | भारत में यह शती आध्यात्मिक असन्तोष तथा बौद्धिक क्रांति के रूप में विख्यात हुई । चीन में लाओत्से और कन्फ्यूसियस ने यूनान में परमेनाइडस तथा एम्पेडोकल्स ने ईरान में महात्मा जरथुस्त्र ने एवं भारत में भगवान् महावीर तथा महात्मा गौतम बुद्ध ने इस धार्मिक एवं बौद्धिक क्रांति का प्रतिनिधित्व प्रायः समान समय में ही किया । ईसा की ५वीं छठी शताब्दी पूर्व तक भारतीय समाज पर वैदिक कर्म-काण्ड का पूर्ण प्रभाव था, जो समय अन्तराल तथा वामाचार के कारण एक भीषण विकृत अवस्था को पहुंच गया था । यह कर्मकाण्ड बुरी तरह से हिंसा के जाल में फंस गया। था। इसके चारों ओर एक महा भयङ्कर नृशंसता का क्रूर नृत्य हो रहा था । मानव जीवन की पवित्रता नष्टप्रायः हो गई थी । मांसलोलुप यजमान धनलोलुप पुरोहितों से मनमाने रूप में महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International प्र० सम्पादक श्रौपनिषदिक महायोगी भगवान् महावीर स्वामी श्राचार्य रमेशचन्द्र शास्त्री, अजमेर यज्ञों के द्वारा अपनी लोलुपता की तृप्ति करते थे और समाज में उच्च स्थान बनाये हुए थे | क्रूर हिंसा के खेल खेलने पर भी ये दोनों – यजमान : तथा पुरोहित धर्म के उच्च आसन पर विराजमान थे । ऐसी विकृत तथा जटिल परिस्थिति का सामना करने के लिए एक सशक्त व्यक्तित्व की महती आवश्यकता थी और वह व्यक्तित्व प्रकट हुआ भगवान् महावीर स्वामी के रूप में । भगवान् महावीर स्वामी नितान्त रूप से औपनिषदिक महापुरुष थे । आत्मचिन्तन तथा स्वयम् में लीनता उनका सर्वोपरि योग था । यह योग ही उपनिषद्-योग है । भगवान् ने अपने इस योग के पांच माध्यम स्वीकार किये - ( 1 ) अहिंसा ( 2 ) सत्य ( 3 ) अस्तेय (4) ब्रह्मचर्य तथा (5) अपरिग्रह । भारतीय योग दर्शन में इन पांचों को 'यम' नाम दिया गया है। महर्षि पतञ्जलि ने इन पांचों को एक सूत्र में इस प्रकार ग्रथित किया है - अहिंसा-सत्यस्तेया- ब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः ॥ पातञ्जल योगदर्शन ( साधन पाद, ३०) For Private & Personal Use Only 1-21 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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