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________________ समर्पित है । खम्भों को पार करने पर गुफा का जो अवशिष्ट आधा भाग रह जाता है उसे गर्भगृह कहा जा सकता है । सामने ही भूमितल से लगभग एक फुट ऊंची वेदी के ऊपर तीन फुट ऊंचे मूल नायक तीर्थंकर विराजमान हैं । यहाँ चिन्ह अथवा शासनदेवी-देवता का पृथक से अंकन नहीं होने के कारण अलग से इस मूर्ति की पहचान का कोई साधन नहीं है । मण्डप की अम्बिका का आधार लेकर ही इन्हें नेमिनाथ कहा जा सकता है । मूलनायक के दोनों और एक-एक खड्गासन तीर्थंकर दो फुट की अवगाहना के विराजमान हैं । पीछे अत्यन्त सादा भामण्डल और एक कमल आकृति का आधार बना कर उस पर तीन छत्र अंकित किये गये हैं । छत्रों के बीच से लटकते हुए मंगलपत्र सुन्दर बन पड़े हैं । पार्श्व में दो-दो विद्याधर, संभवत युगल, बनाये गये हैं जिनके हाथ में पुष्पमाल हैं । इस रचना के ऊपर आम के पत्र और गुच्छक अलग से लटकते दिखाये गये हैं जो मूलनायक के नेमिनाथ होने का प्रमाण कहे जा सकते हैं । इस सम्पूर्ण परिकर के दोनों श्रोर दो और पद्मासन प्रतिमायें यहाँ बनी हुई हैं। इनकी प्रव गाहना सवा दो फुट की है। ये पांचों ही तीर्थंकर प्रतिमायें कला, शैली और प्राचीनता में लगभग एक समान हैं और ईसा की नवीं दसवीं शताब्दी को इनका निर्माण काल निर्धारित किया जा सकता है । गुफा के भीतरी दाहिने कोने में पार्श्ववर्ती दीवार पर छह फुट ऊंचे एक तीर्थंकर कायोत्सर्ग आसन में उत्कीर्ण हैं । इनके दोनों प्रोर भुजात्रों के आसपास दो-दो पद्मासन तीर्थंकर भी बने हैं परन्तु उनकी ऊंचाई केवल छह इन्च है । यहाँ चामरधारी 1-58 Jain Education International इन्द्र, भामण्डल के पार्श्ववर्ती दिखाये गये हैं । ऊपर अशोक वृक्ष और छत्रावली के साथ मृदंग सहित उद्घोषक का भी अंकन है । यह प्रतिमा विशाल होने पर भी कला की दृष्टि से कुछ बाद की मालूम पड़ती है । ऊपर छत्रवाला भाग जिस प्रकार छत में घुसता हुआ बनाया गया है उससे भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह रचना गुफा बनाने के बाद की गई है । इसी कोने में एक कोठरी भी बनी है जो संभवतः पूजा अर्चना की सामग्री और उपकरण रखने के काम में प्राती रही होगी । गर्भगृह की बायीं ओर की दीवार पर तीन उपवेदिकायें बनी हैं जो खाली पड़ी हैं । या तो प्रारम्भ से ही इनमें उत्सवविग्रह आदि की स्थापना रही जो कालान्तर में इधर उधर हो गये या फिर ऐसी मूर्तियां रहीं जो नष्ट हो गई । इस गुफा के भीतर रेडियो या ट्रान्जिस्टर अपने आप निष्क्रिय हो जाते हैं । यह नागार्जुन गुफा चालीस गांव जिले की एकमात्र जैन गुफा है । इसे प्रकाश में लाना समाज का कर्त्तव्य है । यथाशीघ्र गुफा तक पहुँचने का सुगम मार्ग बनवाया जाना चाहिये तथा आसपास मेला, यात्रा तथा अन्य अनुष्ठान प्रायोजित करके इतिहास के इस गौरवपूर्ण कलात्मक स्थल को विकसित करने के प्रयत्न करने चाहिये । नीचे पाटनदेवी के प्रांगण में स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती नाम के एक सुसंस्कृत और सदाचारी युवा, सनातनी साधु विराजते हैं । धर्म सम्बन्धी उनकी सहिष्णुतापूर्ण विचारधारा सराहनीय है । यह विश्वास किया जा सकता है कि इस गुफा के विकास में उनका प्रभाव और मार्गदर्शन भी सहकारी होगा । For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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