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________________ मन्दिर दूनी के शास्त्र भण्डार में संगृहीत है। करने वाले थे । कवि का यह प्रथम काव्य है । इसमें इसमें 11 परिच्छेद हैं । कवि ने अपने को 10 संधियां तथा 246 कडवक हैं । काव्य की हरियारणा निवासी प्रकट किया है । इस काव्य में कथा का आधार प्राचार्य गुणभद्र का उत्तरपुराण कवि ने गुणभद्र के उत्तरपुराण की परम्परा को एवं असग कवि का महावीर चरित्र है । कवि ने ही मुख्य रूप से अपने काव्य का प्राधार महावीर के बचपन की जिन घटनाओं का वर्णन बनाया है। किया है उनमें दो चारण मुनियों की दर्शनमात्र से शंका का निवारण तथा भगवान् को सन्मति नाम जयमित्रहल तीसरे अपभ्रश कवि हैं जिन्होंने से सम्बोधित करना. देव द्वारा दश फणधारी वर्तमान काव्य नाम से काव्य लिखा । इस कृति भयंकर नाग का रूप धारण कर महावीर के की प्रतियां जयपूर, नागौर एवं ब्यावर के शास्त्र वीरत्व की परीक्षा लेना और उसमें सफल होने पर भण्डारों में उपलब्ध होती हैं । इस काव्य में भी महावीर नामकरण आदि का वर्णन किया गया 11 संधियां हैं । लेकिन इस काव्य में मगध के है। महावीर 30 वर्ष तक कुमारावस्था में ही रहे शिशूनाग वंशी सम्राट बिम्बसार अथवा श्रेणिक और उन्होंने विवाह नहीं किया। मंगसिर कष्णा के जीवन का अधिक वर्णन किया गया है । एवं दशमी को खांडवबन में उन्होंने मुनि दीक्षा धारण भगवान महावीर के जीवन पर अत्यधिक संक्षिप्त कर ली । पुष्पदन्त के समान रइधू ने भी अपने रूप से प्रकाश डाला गया है । यह 15 वीं शताब्दि इस काव्य में महावीर का प्रथम प्राहार राजा कूल की रचना है। के यहां होना लिखा है। चतुर्थ कृति नरसेन की है । इस का नाम सम्मइजिणचरिउ में महावीर की कैवल्य वर्धमान काव्य है । कृति का दूसरा नाम जिन- प्राप्ति के पश्चात् भी जब दिव्यध्वनि नहीं खिरी रात्रिविधान भी है । जिस रात्रि में भगवान् तो इन्द्र उसका कारण जान कर ब्राह्मण का वेश महावीर ने अविनाशी पद प्राप्त किया उसी रात्रि धारण कर इन्द्रभूति गौतम के पास पोलाणपुर का 14 वर्ष तक व्रत करने से अपार पुण्य की पहुँचा । कवि ने उसे शांडिल्य द्विज का पुत्र लिखा प्राप्ति होती है। कृति में इस व्रत के विधान की है। ब्राह्मण वेषधारी इन्द्र ने गौतम से निम्न विधि दी गयी है। इसमें लिखा है कि उस रात्रि गाथा का अर्थ पूछाको जागरण कराना चाहिये, अगर, धूप खेना चहिये । फूल एवं कुसुम चढ़ाने तिक्कालं छहदव्वकायसटकं पंचत्यिकायारणव । का भी उल्लेख किया गया है । यह एक लघु सारा सुद्ध पमत्थ तिण्णिरयणा लिस्सा बया तत्र बा। कृति है जिसमें एक संधि है तथा 27 कडवक गुत्ती भुत्ति गइसु पंच समिदि एयाह जो सद्धदे हैं । इस कृति में 11 गणधर थे तथा 14000 फासे सुद्ध मई रूई प कुरूदे सद्दिट्ठि सो भूयले ।।6115 जिन मुद्रा को धारण करने वाले थे। रइधू ने 1500 शिष्यों के साथ महावीर महाकवि रइवू पांचवें कवि हैं जिन्होंने सम्माइ- के समवशरण में जाना लिखा है जबकि पुष्पजिनचरिउ निबद्ध कर इस दिशा में महत्वपूर्ण दन्त ने 500 शिष्यों की संख्या दी कार्य किया । रइधू 15 वीं शताब्दि के कवि थे है। इसी तरह वीर सूत्र के संघ का कवि ने तथा अपभ्रंश भाषा में सबसे अधिक कृतियां निबद्ध बहुत ही सुन्दर एवं सांगोपोग वर्णन किया है । महावीर जयन्ती स्मारिका 76 2-43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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