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________________ प्राभार प्रदर्शन आज विश्व में हर क्षेत्र में विज्ञापन की महत्ता है--इसके रूप जरूर अलग-अलग हो सकते है, इस माध्यम के आधार से किसी वस्तु का प्रचार जितनी सुव्यवस्थित प्रकार से होगा वह वस्तु उतनी ही अधिक मात्रा में अधिक लोगों द्वारा उपयोग में ली जावेगी-और जो व्यक्तिविशेष उस वस्तु के निर्माण में लगे हुये हैं उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष में अवश्य लाभ होता है । स्मारिकाएँ भी व्यवस्थित विज्ञापन का एक उचित साधन है। समाज की लोकप्रिय संस्था राजस्थान जैन सभा जयपुर गत १३ वर्षों से भगवान् महावीर की पावन जयन्ती पर उनके सन्देशों को जन-जन तक पहुँचाने का महान् कृत्य एवं जैन धर्म की प्रभावना का प्रसार कर रही है, जिसकी प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी प्रशंसा है, सभा की यह स्मारिका केवल नाम से ही स्मारिका है अपितु यह एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसमें सभी समाज, धर्म के अनुयायियों ने जैनधर्म के सिद्धान्तों पर अपने विचार लेखनी द्वारा प्रकट किये हैं । इस महत्वपूर्ण प्रकाशन के लिये निश्चिय ही विशेष अर्थ की आवश्यकता होती है । मुझे प्रसन्नता है कि इस महत्वपूर्ण कार्य की उपयोगिता को समझकर विज्ञापनदाताओं ने हमें सदा इस कार्य हेतु प्रशंसनीय सहयोग दिया है, विशेष कर इस क्षेत्र में जो सहयोग इस वर्ष सभा को प्राप्त हुया है वह अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है-इसके लिये हम समस्त विज्ञापन, दाताओं के अत्यन्त प्राभारी है। इस कार्य हेतु मैं विज्ञापन समिति के सदस्यों के अलावा श्री राजकुमार काला, श्री तेजकरण सौगानी, श्री वीरेन्द्रकुमार पाण्डया, एवं श्री रतनलाल सा० छाबडा श्री रामचरणजी आदि सहयोगियों का अत्यन्त आभारी हूं। जिन्होंने अपने अथक प्रयास और कठिन परिश्रम एवं निस्वार्थ भाव से इस कार्य में पूर्ण सहयोग दिया- मैं अपने उन सभी साथियों एवं सहयोगियों को हृदय से धन्यवाद अर्पण करता हूँ और कामना करता है कि भविष्य में भी इसी प्रकार सहयोग देते रहेंगे। मभिवादन सहित रमेशचन्द्र गंगवाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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