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________________ ३. स्फुट काव्य : जैनेतर कवियों में अनूप शर्मा और मूलदास (१) 'वीरायण'-धन्यकुमार जैन 'सूधेश' ( सन् मोहनदास नीमावत के महाकाव्यों का विशेष महत्व १६५२) है। हिन्दी साहित्य के इतिहास तथा तत्सम्बन्धित शोध प्रबंधों में सिर्फ अनूप शर्मा के 'वर्द्धमान' की (२) भगवान् महावीर-प्राचार्य विद्याचन्द्र सूरि। ही चर्चा मिलती है-शेष कृतियों का नामोल्लेख (३) भगवान् महावीर-पन्नालाल जैन, दिल्ली। भी नहीं मिलता। (४) महावीर-कमलकुमार 'कुमुद', खुरई । स्थानकवासी, मुनिश्री की प्रेरणा से सौराष्ट्र (५) महावीर-वीरेन्द्र कुमार जैन । के कन्त्रि मूलदास ने अनेक वर्षों के अथक परिश्रम (६) हे निर्ग्रन्थ-लक्ष्मणसिंह चौहान 'निर्मम', एवं साधना से 'रामचरितमानस' की शैली पर सागर। 'वीरायण' नामक महाकाव्य लिखा परन्तु इसका (७) महावीर चालीसा-मुनि श्री कन्हैयालाल । जैन-समाज में विशेष प्रचार-प्रसार नहीं हो सका । (८) महावीर-दोहावली-मुनि श्री नवरत्नमल । धन्यकुमार जैन 'सुवेश' का 'परम ज्योति महाकाव्यों में तीर्थङ्कर महावीर : महावीर' इन्दौर की फूलचंद जवरचंद गोधा जैन हिन्दी में भगवान् महावीर स्वामी पर प्रथम ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ है। महाकाव्य बुन्देलखण्ड के कविवर नवलशाह ने वीरेन्द्र कुमार जैन के 'तीर्थङ्कर भगवान् लिखा था । नवलशाह और उनके पुत्र ने मिलकर महावीर' में पाठ सर्गों में काव्य विभक्त है। इसके प्राचार्य सकलकीति के वर्धमान-पुराण के आधार दो सचित्र संस्करण श्री अखिल विश्व जैन मिशन, पर अपने महाकाव्य की रचना की थी। उस समय अलीगंज से प्रकाशित हो चुके हैं। महाराज छत्रसाल के पौत्र और रामसिंह के पुत्र हिन्दुपति का शासन था। इनके पिता का नाम श्वेताम्बर यति मोतीहंस के 'तीर्थङ्कर महावीर' सिंघई देवाराय और माता का नाम प्रानमती था। में एकादश सर्ग हैं परन्तु सम्प्रति सिर्फ प्रथम दो प्रस्तुत ग्रन्थ में सोलह अधिकार मिलते हैं। इसके सर्ग प्रकाशित हो पाये हैं। प्रथम सर्ग च्यवन अनुशीलन से नवलशाह की काव्य-प्रतिभा और __ कल्याणक ७५ पद्यों तथा द्वितीय सर्ग जन्म कल्याण सिद्धान्त-ज्ञान का सम्यक् बोध होता है। वे कवि ११५ पद्यों का है। इसका शुरू का अश श्री जैन होने के अतिरिक्त चारों अनुयोगों के निष्णात श्वेताम्बर संघ, भोपाल से प्रकाशित हुआ है । कवि पण्डित थे। ग्रन्थ के अंत में प्राप्त प्रशस्ति के ने पण्डित कल्याण विजय के 'श्रमण महावीर' को अनुसार वे गोलापूर्व जाति के थे और उनका बैंक अपनी रचना का आधार बनाया है। चंदेरिया और गोत्र बड़ था। इसके सम्पादन, पाठालोचन तथा प्रस्तुतीकरण का श्रेय सागर के ललितपुर के कवि हरिजी का महाकाव्य न तो डा. पन्नालाल साहित्याचार्य को है। पहले यह पूर्ण है और न प्रकाशित ही। ग्रन्थ सूरत से प्रकाशित हुअा था परन्तु हाल ही में राजस्थान के श्री गणेश मुनि शास्त्री का फिर से हिन्दी अनुवाद-सहित सचित्र रूप में आचार्य 'विश्वज्योति महावीर' प्रकाशित हो चुका है । देशभूषण के 'भगवान् महावीर और उनका तत्वदर्शन' नामक विशाल ग्रन्थ में प्रकाशित हुआ है। हिन्दी के जाने-पहिचाने रससिद्ध कवि रघुवीरमहावीर जयन्ती स्मारिका 76 2-27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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