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________________ अहिंसा के तीन प्रमुख प्रचारक ●विद्याभूषण श्री हीरालाल जैन 'कौशल' न्यायतीर्थ, __ अध्यक्ष जैन विद्वत्समिति, दिल्ली ईसा से ६०० वर्ष पूर्व का समय विश्व के महान् समर्थक और प्रचारक हुये हैं। उन्होंने अपने इतिहास में महान क्रान्ति का युग था। विचारक ढंग से अहिंसा का प्रचार किया। महावीर और लोग भौतिकवाद के चिन्तन क्षेत्र से निकलकर बुद्ध समकालीन थे। दोनों ने अपने जन्म से बिहार जीवन की समस्याओं तथा आत्मचिन्सन की ओर प्रदेश को सुशोभित किया। पहले इस प्रान्त का झुक रहे थे । विश्व में क्रान्ति की नई लहर सी नाम मगध था । विद्वानों का विचार है कि इनके आ रही थी। भारत में महावीर और बुद्ध के यत्र-तत्र बिहार के कारण ही इस प्रान्त का नाम अतिरिक्त जैनग्रन्थों में उस समय ३६३ तथा बौद्ध- बिहार पड़ गया। इन दोनों ने धार्मिक मान्यताओं ग्रन्थ त्रिपिटक में ६२ मतों के प्रचलन का उल्लेख में क्रान्ति की । तात्कालिक यज्ञादि क्रिया-काण्डो का है । उनमें पूर्ण कश्यप, मक्खली गोशाल, अजित विरोध किया, पारस्परिक भेद-भाव को मिटाकर केशकम्बली, प्रकुथ कात्यायन तथा संजय वेलाट्रि- मानवता के उत्थान का प्रयत्न किया और अहिंसा पुत्त आदि के नाम प्रमुख हैं । भारत से बाहर चीन पर जोर दिया। फिर भी दोनों के दृष्टिकोण में कनफ्युशस और लाओत्से ईरान में जरथुस्त, में पर्याप्त अन्तर है ।। यूनान में पैथोगोरस, फिलस्तीन में मूसा आदि अनेक प्रसिद्ध दार्शनिक और विचारक विश्व के महावीर स्वामी :विभिन्न भागों में अपने-अपने विचारों का प्रचार कर महावीर स्वामी जैन तीर्थंकरों की परम्परा रहे थे । इन सबके उपदेश का रूप मानव के महत्व में चौबीसवें (अन्तिम) तीर्थंकर थे । उनका जन्म तथा सदाचार पर जोर देना था। ईसा से ५६६ वर्ष पूर्व चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को बिहार प्रान्त में वैशाली के पास क्षत्रिय कुण्ड ग्राम जिस प्रकार हम सुख और शान्ति चाहते हैं में गणतन्त्र के नेता सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशलादेवी उसी प्रकार संसार के अन्य प्राणी भी चाहते हैं। के उदर से हरा था। इनका प्रारम्भिक नाम यदि हमें सुई चुभाने से कष्ट का अनुभव होता है वर्द्धमान था । बाल्यकाल से ही यह अत्यन्त तो दूसरों को होना भी स्वाभाविक है। अतः धीर-वीर गम्भीर और शांत प्रकृति थे। अनुपम दूसरों को मारना, सताना या कष्ट पहुंचाना हिंसा वीरता तथा योग्यता के कारण आप वीर, है-पाप है और उसका त्याग अहिंसा है । प्रतिवीर, सन्मति, महावीर आदि अनेक नाम से अहिंसा को सभी विचारकों ने 'अहिंसा परमोधर्मः' । विख्यात हुये। निरीह पशुओं का यज्ञों में होम, के रूप में माना है। मानव-मानव में ऊच नीच का भेद, नारियों की हमारे देश में महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध दुर्दशा तथा धर्म के नाम पर बढ़ता हुआ ढोंग और महात्मा गांधा के रूप में अहिंसा के तीन और आडम्बर देख-देखकर सांसारिक के मोहमाया महावीर जयन्ती स्मारिका 76 2-21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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