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________________ प्रकाशकीय राजस्थान जैन सभा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्ववंद्य भगवान् महावीर के सिद्धान्तों के प्रचार की दृष्टि से महावीर जयन्ती के अवसर पर जिज्ञासु पाठकों के समक्ष यह स्मारिका अंक प्रस्तुत कर सन्तोष का अनुभव करती है। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में भगवान् महावीर के सिद्धान्तों पर निरन्तर चिन्तन कर दिशाबोध प्राप्त किये जाते रहने की महति आवश्यकता है । जब जब मानव भगवान महावीर के सिद्धान्तों से भटका है तब तब इतिहास का कलेवर दुष्कृत्यों से कलंकित हुआ है और उस सन्त्रास से मुक्ति मिली है तो महावीर के सिद्धान्तों को मानव द्वारा अपनाएं जाने पर ही मिली है। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच के अतिरिक्त मनुष्य के दैनिक जीवन में भी बिना महावीर के सिद्धान्तों को समझे अन्धकार को हटा कर प्रकाश में नहीं लाया जा सकता। अत: यह स्मारिका जहां हमें सामुहिक जीवन में सम्यक् दिशा बोध देगी वहां अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सन्तोष और शान्ति की और हमें अग्रसर करेगी। सभा द्वारा स्मारिका का प्रकाशन की प्रवृति स्व० पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ की प्रेरणा से प्रारम्भ की गई थी। अब तक की सभी स्मारिकानों का प्रकाशन पाठकों द्वारा प्रशंसनीय रहा है। इस अंक में भी हमने पूर्व का गौरवपूर्ण स्तर बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया। पाठक स्वयं इसका मूल्यांकन कर अवगत करावेंगे। जिन लेखकों ने अपनी रचनाएं भेजकर समय पर स्मारिका का प्रकाशन सम्भव बनाया है वे धन्यवाद के पात्र है । हमें पूरी आशा है कि उनकी लेखनी पाठकों को सन्तुष्ट करेगी और साधुवाद प्राप्त कर कृतार्थ होगी। . धन्यवाद के पात्र इस पुष्प के प्रधान सम्पादक श्री भंवरलाल पोल्याका है जिन्होंने सारी सामग्री को व्यवस्थित कर इस रूप में रखा है। सर्व विदित है कि यह कार्य लम्बा एवं श्रम साध्य है जिसे श्री पोल्याकाजी जैसे सेवाभावी विद्वान ही पूरा कर सकते है । इस अवसर पर विभिन्न विज्ञापनदाताओं को भी धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते जिन्होनें उदारतापूर्वक हमें विज्ञापन प्रदान कर इस अंक के प्रकाशन को आर्थिक रूप से सम्भव बनाया है । साथ ही इस सम्पूर्ण सामग्री को जुटाने में जो अथक परिश्रम करके आशातीत सफलता प्राप्त की है उसके लिये विज्ञापनसमिति के संयोजक श्री रमेशचन्दजी गंगवाल के प्रति अत्यन्त आभारी है। सर्वश्री महेशचन्दजी काला, अरूण सोनी आदि ने भी इस कार्य में सहयोग दिया है उस हेतु उनके भी अत्यन्त आभारी है। ___ अन्त में सुन्दर छपाई मनमोहक आवरण पृष्ट हेतु धन्यवाद के पात्र नव अल्पना प्रिन्टर्स एण्ड स्टेशनर्स के व्यवस्थापक श्री सुरेश काला है। -मन्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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