SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज विश्व युद्ध के भय से माक्रान्त है । विज्ञान ने जहां मानव को चांद तक पहुंचने की क्षमता प्रदान की वहां उसने हाइड्रोजन बम से भी भयंकर अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया जिससे एक स्थान पर बैठे बैठे ही मानव सुदूर देशों की जनता को महाविनाश की ताण्डवलीला दिखा सकता है। वर्गभेद , वर्णभेद, रंगभेद, वादभेद आदि ने मानव-मानव को शत्र, बना दिया है। यह इस युग की महती त्रासदी है। अशांति और भय के इस संत्रास से यदि कोई मानव को छुटकारा दिला कर भयहीन बना सकता है तो वे हैं जनकल्याणकारी भेदभाव विहीन भगवान महावीर के पावन उपदेश जिनमें अहिंसा, अपरिग्रह और स्याद्वाद का मुख्य स्थान है। भगवान् महावीर के उपदेश आज के संदर्भ में भी किस प्रकार प्रात्मशांति प्रदान कर सकते हैं यह पढ़िये विद्वान् लेखक की इन पंक्तियों में। प्र० सम्पादक भगवान महावीर के उपदेश आज के सन्दर्भ में : आत्मशान्ति । .डॉ० जयकिशनप्रसाद खण्डेलवाल प्रागरा आज से लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व भगवान् न थीं , किन्तु वे वीर नहीं वरन् महावीर थे। महावीर क्रांतिकारी महान् व्यक्तित्व लेकर अवतीर्ण उन्होंने आत्म-साधना के द्वारा आत्मोत्थान किया हुए । उन्होंने अपने युग की विषम सामाजिक, और फिर अपने निर्मल एवं सुव्यवस्थित चिन्तन धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों को के द्वारा समाज को एक ऐसा मार्ग दिखाया जिसमें देखा; अनुचिन्तन किया और विषमता को दूर सबके उदय की भावना निहित थी। उनका यह करने का उपाय ढूढ़ा । उस युग में धार्मिक जड़त्व मार्ग अथवा जीवन-दर्शन सर्वोदय तीर्थ या धर्मएवं अन्धश्रद्धा ने समाज को पुरुषार्थहीन बना तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । उनका सर्वोदय रखा था और धर्म के नाम पर हिंसा का बोल-बाला वर्मोदय के विरुद्ध एक वैचारिक क्रांति है । सामाथा। आर्थिक विषमता भी अपने पूर्ण उभार पर जिक जीवन में जब तक विषमता विद्यमान है, थी । जातिभेद एवं सामाजिक विषमता से समाज कभी भी कोई व्यक्ति या वर्ग सुखी और शांत नहीं त्राहि-त्राहि कर उठा था। स्त्रियों को भी समाज रह सकता । दूसरों का बुरा चाह कर कोई अपना में उचित स्थान प्राप्त नहीं था । गतानुगतिकता भला नहीं कर सकता। का छोर पकड़ कर ही सब चल रहे थे। ऐसे महावीर का क्रांतदर्शी व्यक्तित्व मानव को विषम एवं चेतना रहित परिवेश में राजकुमार जागृत करने के लिए प्रादुर्भूत हुआ । उन्होंने व्यक्ति वर्द्ध मान का दायित्व और भी बढ़ गया था। तथा समाज को भूलभुलैया से बाहर निकालकर उन्होंने राजघराने में जन्म लिया था किन्तु उनकी उनका सहा दिशा-निर्देश ही नहीं किया वरन् आत्मा तो मानव की सेवा में ही समस्त सुख ढूढ़ उसका मार्ग भी प्रशस्त कर दिया। रही थी । वे जिस बिन्दु पर व्यक्ति और समाज आज के युग में जो आपा-धापी एवं अशान्ति दिखाई को ले जाना चाहते थे, उसके अनुकूल परिस्थितियां पड़ती है, उसका विश्लेषण करने पर स्पष्ट पता चलता महावीर जयन्ती स्मारिका 76 1-77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy