SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 "सदसन्नित्यानित्यादिसर्वर्थकान्त प्रतिक्षेप लक्षरणोऽनेकान्तः " प्रष्ट श. (अष्ट स) पृ. 286 जैन न्याय पृ. 326 " प्रवरोप्पर सावेक्ख गय विसयं ग्रह पमारण विसयं वा । ते सावेक्खं तत्त रिणखेक्खं तारण विवरीयं । " नय चक्र 1-70 विश्वशांति का चक्र चतुर्दिश अखिल विश्व में ग्राम-ग्राम में, नगर-नगर चला एक संदेश सुनाने'जिओ और सबको जीने दो ।' सब का मन है सबका तन है सब को धन की अभिलाषा है किन्तु किसी का मन न दुखाओ किन्तु किसी का तन न दुखाओ पर धन की अभिलाषा छोड़ो सबको धर्मामृत पीने दो । जब जब दुनियां के नर-नारी मानवता से विमुख हो गये Jain Education International 11 "अनेकान्तात्मदृष्टिस्ते 12 महावीर का जीवन-दर्शन श्री नेमीचन्द्र गोंदवाले शिवपुरी “स्याद्वादः सकलादेशो नयो विकल संकथा लघीयस्त्रय 62 सती शून्यौ विपर्ययः ।" स्वयंभू स्तोत्र श्लोक 98 दृष्टव्य :- तत्त्वार्थंश्लोकवार्तिक पृ. 137 जैन न्याय 322 कोटि-कोटि भौतिक जीवन में मानव का विश्वास मर गया तब तब पुण्य- पुरुष धरती पर महावीर बनकर आये थे आज उन्हीं के पथदर्शन का जीवन मात्र अधिकारी बनकर चल कर पावन - सत्य मार्ग पर परम हिंसा - ज्योति जलती अनुशासित जीवन अनुप्राणित यही धर्म का परमाभूषण महावीर का, वर्धमान का परमपूज्य जीवन-दर्शन है । For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy