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________________ भगवान महावीर क्षमता [यह सारा पाख्यान श्वेताम्बर " परम्परानुसार है। --पोल्याका] श्रमण भगवान महावीर की क्षमता मेरू की सरह भडोल थी। संघर्षों के तूफान में भी उनकी साधना की लौ प्रखण्ड जलती रही ! किसी ने ठीक ही कहा हैचट्टानें हिल नहीं सकती, कभी प्रांधी के खतरों से ! कि शोले बुझ नहीं सकते, कभी शबनम के कतरों से!! सचमुच भगवान महावीर की चर्या में घटना. स्मक परिषदों के अनेक संदर्भ बहुत ही रोमांचकारी रहे हैं ! उन सबका विवरण बहुत बड़े ग्रन्थ का रूप ले सकता है । अतः मैं सिर्फ संगम देवता द्वारा प्रदत्त कष्टों की झांकी प्रस्तुत कर रही है। भगवान् महावीर पेढ़ाल गांव के समीपवर्ती पेढ़ाल उद्यान में पीलास नामक चैत्य में महा. प्रतिमा तप कर रहे थे। महावीर की उत्कृष्ट ध्यानविधि को देखकर इन्द्र ने सभा को सम्बोधित करते हए कहा-"भरत क्षेत्र में इस समय महावीर के समान धीर पुरुष अन्य कोई नहीं है । कोई भी शक्ति उन्हें विचलित नहीं कर सकती। देवों में हर्ष हुआ, पर संगम का खून खौल उठा । उसने इन्द्र के कथन का प्रतिवाद किया और कहा-"मैं उन्हें विचलित कर सकता हूं।" अपने दुर्विचार को क्रियान्वित करने हेतु वह पोलास चैत्य में पहुंचा। __ महावीर को लक्ष्य से चलित करने के लिए एक ही रात्रि में एक के बाद एक उनको बीस प्रकार के कष्ट दिये, जिनकी तालिका निम्न प्रकार की रही है1. प्रलय-काल की तरह धूल की भीषण वर्षा की । महावीर के कान, नेत्र, नाक आदि उस मिट्टी से सर्वथा सन गये। साध्वीश्री धनकुमारी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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