SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर की अन्तःक्रान्ति भगवान महावीर अध्यात्म पुरुष थे । उनका सम्पूर्ण जीवन अध्यात्म से अोतप्रोत था। उनकी हर क्रिया अध्यात्म की परिणति थी। उनका मौन अध्यात्म के लिए था और उनका संभाषण भी अध्यात्म के लिए । स्वाध्याय और ध्यान, गमनयोग और स्थिरयोग सर्वत्र अध्यात्मक की प्रतिध्वनि थी। आध्यात्मिकता का प्रासाद वास्तविकता की नींव पर खड़ा है। वास्तविकता का बिन्दु व्यक्ति है समाज नहीं । बूद यथार्थ है सागर कल्पित है । अरणु यथार्थ है स्कन्ध कल्पित है। रजकरण यथार्थ है पहाड़ कल्पित है। ब'द सागर को नकार सकती है सागर बूद को नहीं, अणु स्कन्ध को नकार सकता है, स्कन्ध अणु को नहीं। रजकण पहाड़ को नकार सकता है, पहाड़ रजकण को नहीं। सागर के प्रभाव में बूद, स्कन्ध के प्रभाव में अणु और पहाड़ के अभाव में रजकरण पूर्णतया सुरक्षित है । बूद के गुण सागर में, अण के गुण स्कन्ध में और रजकरण के गुण पहाड़ में प्रतिबिम्बित है । समाज व्यक्ति की प्रक्रिया है। व्यक्ति का निर्माण समाज का निर्माण है। व्यक्ति की क्रान्ति समाज की क्रान्ति है। व्यक्ति स्वनिष्ठ और समाज व्यक्ति निष्ठ है। भगवान महावीर का दर्शन स्व का दर्शन है। भगवान महावीर का धर्म न इहलोक का धर्म है न परलोक का, वह प्रात्म धर्म है । भगवान महावीर का तप न इहलोक का तप है न परलोक का तप है वह स्व का तप है, प्रात्मा का तप है। भगवान महावीर ने बारह वर्ष तक कठोर साधना की। उनकी साधना का केन्द्र अध्यात्म था और परिधि भी प्राध्यात्ममयी थी। साधना काल में भीतर से तब्बी श्री. संघमित्राजो... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy