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________________ 1-20 वाचिका-यह तो पहचान का बाह्य लक्षण है । वाचक-पहचान का प्रान्तरिक लक्षण तो यही है कि सभी तीर्थंकर अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त शक्ति और अनन्त सुख के धनी होते हैं। हां, बीच के बाईस तीर्थंकर चार महाव्रत रूप धर्म की प्ररूपणा करते हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह का उपदेश देते हैं । उनके साधु सरल-स्वभावी और बुद्धिमान होते हैं। इसके विपरीत प्रथम और अन्तिम तीर्थकर पांच महावत रूप धर्म की देशना करते हैं; वे ब्रह्मचर्य व्रत की अलग से महत्ता प्रतिपादित करते हैं। क्योंकि पहले तीर्थंकर के साधु ऋजु जड़ होने के कारण तत्व को पूरी तरह हृदयंगम नहीं कर पाते हैं और अन्तिम तीर्थंकर के साधु वक्रजड़ होने के कारण धर्मानुरूप माचरण नहीं कर पाते हैं। इसीलिए वर्द्धमान महावीर ने 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के चार व्रतों के स्थान पर पांच व्रतों की प्रतिष्ठा की। वाचिका-महावीर को वर्धमान क्यों कहा जाता है ? वाचक-महावीर का जन्म नाम वर्धमान ही है। जब ये माता के गर्भ में आये तब चारों ओर .. सुख-समृद्धि की वृद्धि हुई । इनके जन्म लेते ही परिवार में अनन्त वैभव बढ़ा । इन्हीं लक्षणों के आधार पर ज्योतिषियों ने इनका नाम वर्धमान रखा। पाचिका-तो फिर महावीर नाम से ये लोक प्रसिद्ध क्यों हुए ? बाचक-इस नाम का सम्बन्ध उनकी बचपन की एक घटना से है। एक बार ये अपने समवयस्क बालकों के साथ एक उद्यान में खेल रहे थे। अचानक एक भयंकर सांप पाया। सारे बालक साथी उसे देखकर डर गये। इधर-उधर भाग निकले पर वर्धमान तनिक भी विचलित न हुए। वे निर्भय होकर खिलौने की भांति उससे खेलने लगे । इसी घटना के - कारण वे लोक में वीर अथवा महावीर नाम से प्रसिद्ध हुए। साधना काल में इन्होंने सम भाव पूर्वक कठोर उपसर्ग सहन किये इस कारण भी ये महावीर कहे गये । याचिका- क्या इनके पौर भी नाम हैं ? वाचक यों तो इनके अनेक नाम हैं, पर एक प्रसिद्ध नाम सन्मति भी है। इस नाम का सम्बन्ध भी उनकी बालपन की एक घटना से है। एक बार संजय और विजय नाम के दो महर्षियों को सूक्ष्म पदार्थों में कुछ शंकायें उत्पन्न हुई। वे कुमार वर्द्ध मान के पास प्राये और उन्हें देखते ही उनकी शंकाओं का समाधान हो गया। उसी दिन से लोग उन्हें सन्मति कहने लगे। वाचिका-और ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्हें कोई साधना नहीं करनी पड़ी ? वाचक-उन्हें कठोर साधना करनी पड़ी। तीस वर्ष की भरी जवानी में राजसी वैभव को लात मार कर वे बीक्षित हुए । दीक्षा लेने के बाद साढ़े बारह वर्षों तक भयानक जंगलों में घूमे, भूखे रहे, प्यासे रहे, कभी माराम की नींद न ली। सर्दी, गर्मी और वर्षा के उपसर्ग भी उन्होंने समभाव पूर्वक सहन किये। माधिका-वे थे तो बड़े सेजस्वी, उनकी किसी ने सहायता नहीं की ? वाचक-वे किसी की सहायता पर निर्भर नहीं थे । पूर्ण पुरुषार्थी थे । अपने ध्यान में निरन्तर लीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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